बदनामी की मोटी चादर ओढ़ कर माता कैकेयी ने प्रभू श्री राम को वन भेज दिया, जिससे प्रभू श्रीराम का अवतार कार्य संपूर्ण हो सका। वन में लक्ष्मण जी ने निषाद राज को मित्र बनाकर हम मनुष्यों को यह शिक्षा दी कि न ही कोई किसी को सुख देता है और न ही कोई दुख। चौरासी लाख योनियों में जितने भी प्राणी हैं वे सभी अपने-अपने कर्मों के हिसाब से सुख या दुख पा रहे हैं। भगवान ने मनुष्य को कर्म के मामले में स्वतंत्र छोड़ दिया है। फल देने का विभाग उन्होंने अपने पास रख लिया ताकि सभी के साथ समान न्याय हो सके। श्री रामकथा समिति शिव पहाड़, दुमका के तत्वावधान में आयोजित संपूर्ण राम कथा पर संगीतमय प्रवचन के चौथे दिन प्रभूू श्रीराम भक्त व प्रवचनकर्ता राजकुमार हिम्मतसिंहका ने श्री राम वन गमन प्रसंग पर व्यााख्य के क्रम में उपरोक्त बातें कही। प्रभु श्रीराम भक्त श्री हिम्मतसिंहका ने कहा कि मानस एक ऐसा दर्पण है जो हमारे भीतर के गुण दोष को सामने रख देती है। मानस कहती है कि जब तक हम साधना के बल पर, अपने भीतर के निर्गुण निराकार ब्रह्म को सगुण-साकार में परिवर्तित नहीं कर लेते तब तक हमारे जीवन की दीनता, हीनता, मलिनता, दुख-दर्द दूर नहीं हो सकते। बाल्मीकि जी ने इसके 14 उपाय बताए जिनमें सरलतम उपाय कथा श्रवण रति को बताया। कल की कथा का मुख्य विषय श्री राम भरत मिलाप होगा।
सोमवार, 20 अगस्त 2018
दुमका : ईश्वर को पाने का सरलम मार्ग कथा श्रवण: राजकुमार हिम्मतसिंहका
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