रक्षाबंधन: डोर से बंधी है... खुशियां जिंदगी की - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 25 अगस्त 2018

रक्षाबंधन: डोर से बंधी है... खुशियां जिंदगी की

भारत एक खुबसूरत देश है। खुबसूरत इसलिए, क्योंकि हर त्योहार की रौनक यहां दिखाई देती है। त्योहार कोई भी हो उसका जश्न धर्म, सम्प्रदाय, जाति और सामाजिक स्तर के भेदभाव से उपर उठकर दिखाई देता है। राखी भी एक ऐसा ही पर्व है, जिसमें रिश्ते खून से बढ़कर भरोसे, प्रेम, स्नेह और आत्मीयता के डोर से बंधे होते है। इस बार 26 अगस्त को श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा। खास यह है कि इस बार रक्षाबंधन के दिन भद्रा सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए लोगों के पास रक्षाबंधन का त्योहार मनाने का भरपूर समय होगा। नहीं रहेगा भद्रा का साया। सावन माह की पूर्णिमा तिथि 25 अगस्त, शनिवार को शाम 03ः16 से शुरू हो जाएगी। जिसका समापन 26 अगस्त, रविवार को शाम 05ः25 पर होगा। राखी बांधने का शुभ मुहूर्त: सुबह 05ः59 से शाम 17ः25 तक है 

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रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन का पार्व है। बहन भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है। उसके लंबे उम्र की कामना करती है। भाई अपनी बहन को वचन देता है कि वह ताउम्र उसकी रक्षा करेगा। इसे सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि अन्य धर्म के लोग जैसे कि सिख, जैन और ईसाई भी हर्षोल्लास के साथ इसे मनाते हैं। रक्षा के नजरिये से देखें तो, राखी का ये त्योहार देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा तथा लोगों के हितों की रक्षा के लिए बाँधा जाने वाला महापर्व है। जिसे धार्मिक भावना से बढकर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहने सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वंय की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। हमारे देश में राष्ट्रपति भवन में तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में भी रक्षाबंधन का आयोजन बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भाई-बहन के बीच प्रेम का ऐसा झरना बहता है, जो आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देता है। इस रिश्ते का डीएनए ही कुछ ऐसा है कि मुसीबत के वक्त जब कहीं से मदद की उम्मींद नहीं होती है, तब भी कलाई पर बंधा स्नेह जिन्दगी की डोर थामने के लिए खड़ा हो जाता है। अर्थात रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच वह रिश्ता है जिसमें गंगाजल की तरह बहनें धारा तो भाई कल-कल। बहनें टहनी तो भाई श्रीफल, बहने स्नेहिल तो भाई वत्सल या यूं कहें भाई-बहनों के सभी सवालों का जवाब है रक्षाबंधन। या यूं कहें भाई-बहन का नाता स्नेह, ममता, वात्सल्य, करुणा और रक्षा के भावों के ताने-बाने में बुना होने से अनूठा ही है। यह नाता जितना स्नेहमय है उतना ही शालीन और पावन भी। क्योंकि इसमें जुड़ी होती है बचपन की यादें। साथ खेलना, झगड़ना, शरारतें और भी बहुत कुछ। जन्म से जुड़ा ये रिश्ता वक्त के साथ मजबूत होता जाता है। 

बेशक, कहने को राखी सिर्फ एक पतले से धागे को कलाई पर बांधने का त्योहार है। लेकिन, इस महीन सी डोर में जीवन को संबल व दिशा देने वाली कितनी शक्ति है, ये तो वे ही बता सकते हैं जिनके मन में बहन के प्रति प्यार बसा है। भाई-बहन का यह भाव प्राचीन काल से हमारे यहां रहा हैं। इस संबंद्ध को लेकर सबसे प्राचीन विमर्श ऋुग्वेद के यम-यमी सुक्त मिलता है। यम और यमी दोनों विवस्वान यानी सूर्य की संतानें है, दोनों जुड़वा भाई-बहन है। यम अपनी बहन को इस संबंध की मर्यादा का बोध कराते हैं। भाई-बहन के बीच परस्पर रक्षा का संबंध भी एकतरफा नहीं है, केवल भाई ही बहन की रक्षा नहीं करता, बहन भी आड़े वक्त में भाई को बचाती है। रक्षाबंधन का पर्व और राखी के धागे इस पारस्परिक रक्ष्य-रक्षक संबंध के प्रतीक हैं। यूं तो नारी, मां, बेटी या पत्नी के विभिन्न रुपों में पुरुषों से जुड़ती है पर उन सब में अपनत्व और अधिकार के साथ-साथ, कहीं न कहीं कुछ पाने की लालसा रहती है। नारी का सबसे सच्चा स्वरुप बहन के रिश्ते में ही प्रकट होता है। मां-बाप भले ही लड़के-लड़कियों में भेद करें पर बहन के मन में ऐसा करने का चाव होता है जिससे भाई के जीवन में खुशहाली रहे। यही वजह है कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन यानी रक्षा की कामना लिए कच्चे धागों का ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि में रक्षा के आग्रह और संकल्प के साथ बांधा और बंधवाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके लिए मंगल कामना करती हैं। तो वहीं, भाई भी अपनी बहनों को इस पवित्र बंधन के बदले उपहार देने के साथ ही उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं। कहा जा सकता है रक्षाबंधन के पर्व का संबंध रक्षा से है। देखा जाए तो रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन का त्योहार नहीं है बल्कि ये इंसानियत का पर्व है। यह अनेकता में एकता का पर्व है, जहां जाति और धर्म के भेद-भाव को भूलकर एक इंसान दूसरे इंसान को रक्षा का वचन देता है और रक्षा सूत्र में बंध जाता है। रक्षा सूत्र के विषय में श्रीकृष्ण ने कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। बहनों का स्नेह, प्यार और दुलार भाइयों के लिए उनके सुरक्षा कवच का काम करता है। वहीं बहनों का मान-सम्मान भाइयों की प्राथमिकता होती है। आजकल बहनें ज्यादा सजग हो गई हैं। अब वे भाइयों के पीछे नहीं, उनके बचाव में सबके सामने खड़ी होने लगी हैं। शायद इसी सेवा भाव के रिश्ते को नमन करते हुए चिकित्सा परिचर्या में लगी महिलाओं को सिस्टर कहा जाता है। वो लोग बड़े खुशकिस्मत होते हैं जिनके बहनें होती हैं क्योंकि जीवन में यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जिससे आप बहुत कुछ सिखते हैं। पुरुषों के चारित्रिक विकास में मां-बाप से भी ज्यादा एक बहन का संवाद ज्यादा असर करता है। बहन से संवाद से ना केवल पुरुष के नकारात्मक विचारों में कमी आती है बल्कि उसके अंदर नारी जाति के लिए आदर भ्ज्ञी पनपता है।  रक्षाबंधन पर्व की भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। गुरुकुल परंपरा के अंतर्गत शिक्षा पाने वाला युवा जब शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था, तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बांधता था, जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि वह भावी जीवन में अपने ज्ञान कासमुचित ढंग से प्रयोग करे। मौजूदा समय में पूजा आदि के अवसर पर बांधा जाने वाला कलावा भी रक्षा-सूत्र का ही प्रतीक होता है, जिसमें पुरोहित और यजमान एक-दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए एक-दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं। रक्षा-बंधन का पर्व हमारे सामाजिक ताने-बाने में इस प्रकार रचा-बसा हुआ है कि विवाह के बाद भी बहनें भाई को राखी अवश्य बांधती हैं, फिर चाहे उनका ससुराल मायके से कितनी ही दूर क्यों न हो। या तो वे भाई के घर इसी विशेष प्रयोजन से स्वयं पहुंचती हैं अथवा भाई उनके घर आ जाते हैं। अगर आना-जाना संभव न हो, तो डाक से राखी अवश्य भेज दी जाती है। आज के दौर में महिलाओं पर जो अत्याचार बढ़ रहे हैं, उसका मूल कारण यही है कि लोग बहन की अहमियत भूलते जा रहे हैं। बेटों का वर्चस्व बढ़ने और बेटियों को उपेक्षित करने से समाज खोखला होता जा रहा है। गौर कीजिए एक समय, बहन जी शब्द में अपार आदर छलकता था और लोग किसी भी बहन के लिए न्योछावर होने के लिए तत्पर रहते थे। आज इन रिश्तों की सामाजिक अहमियत कम होने के कारण ही महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। जबकि सच यह है कि बेटियों में छिपा बहन का प्यार ही स्वस्थ समाज की बुनियाद गढ़ पायेगा। 

शुभ मुहूर्त 
इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया नही रहेगा जिसके चलते सुबह से लेकर शाम तक राखी बांधने के लिए काफी समय मिलेगा। लेकिन रक्षाबंधन के दिन कुछ समय जैसे अशुभ चैघड़िया, राहुकाल और यम घंटा पर ध्यान देना होगा। ज्योतिष गणना के अनुसार  25 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट से पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी जो 26 अगस्त की शाम 5 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। इस बार रक्षाबंधन पर धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा और पंचक प्रारम्भ हो जाएगा लेकिन इसका असर राखी बांधने में कोई नहीं रहेगा। पंचक में शुभ कार्य किया जा सकता है। 

राखी बांधने का ये समय अशुभ रहेगा
राहुकाल- सुबह 5.13 से 6.48 बजे
यम घंटा -दोपहर 3.38 से 5.13 बजे
काल चैघड़िया दोप-दोपहर 12.28 से 2.03 

पौराणिक मान्यताएं 
रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। इतिहास का एक दूसरा उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने  राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। 

बढ़ती है साझेदारी 
हर रिश्ते में अब बदलाव आ रहा है। भाई बहन का रिश्ता भी और सहज और सजग हुआ है। इस बात की प्रमाणिकता पर तो मनोवैज्ञानिकों ने भी अपनी मुहर लगा दी है। आजकल आपसी रिश्तों में बिखराव तो आ रहा है पर उनमें लगाव कम भी नहीं हुआ है। कामकाजी माता-पिता हर घर की जरूरत बन चुके हैं और इसके चलते बच्चों में साझेदारी बढ़ी है। घर में बच्चों को मिल रहे खुलेपन से उनमें अपनी बात रखने का हौसला भी बढ़ा है। आपसी बातचीत से बच्चों में विकास जल्दी होता है।

जिम्मेदारी का अहसास होना है जरूरी
आजकल के बच्चे ज्यादा समझदार और परिपक्व हो रहे हैं। इसका एक फायदा ये भी हुआ है कि वो आपस की जिम्मेदारियों को भी पहले से कहीं अधिक समझने लगे हैं। बहनों ने भाईयों के साथ रिश्तों की इन जिम्मेदारियों को बांटना शुरू किया है। प्यार और सुरक्षा का भाव मैच्योरिटी लाने में सहायक हुआ है। इसी से रिश्ता मजबूत होता है।

फ्रंट नहीं बैक सपोर्ट बनें
हमेशा हर बात का बचाव करना भी सही नहीं होता। कई बार बहनों का सपोर्ट और प्यार भाईयों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए जब भी घर में ऐसा माहौल बने तो भाई को समझाएं कि वह घर के बड़ों की बात को समझे और उसे फॉलो करे। इससे उनके मन में खुलकर मनमर्जी करने का भाव नहीं आएगा और आपकी इज्जत और प्यार में इजाफा होगा।

रिश्तों में न आ जाए खटास
बहनों का प्यार एक तरफ तो भाईयों का सहारा बन जाता है, वहीं दूसरी तरफ घर के लोगों के बीच बातचीत का विषय भी। वैसे ऐसी आशंका कम ही होती है कि माता-पिता अपने ही बच्चों से बैर करें। पर हर समय का बीच-बचाव मां-बाप से अनबन जरूर करा सकता है। इसलिए हमेशा उनकी जगह और सम्मान का भी ध्यान रखें। हर चीज की अति खतरनाक साबित होती है। फिर चाहे वह प्यार ही क्यों न हो।

भाई भी दें इन बातों पर ध्यान
मम्मी-पापा के अलावा घर में बहन का सपोर्ट मिल जाना, किसी वरदान से कम नहीं होता। पर इस सपोर्ट का नाजायज फायदा न उठाएं। बहन को कभी-कभी स्पेशल फील कराएं और अपना कुछ समय उनके साथ बिताएं। सिर्फ अपना फायदा न देखें। अपनी बहन की जरूरतों का भी ध्यान रखें। अपनी बहन की उपलब्धियों को सराहें और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करें। अपनी हर बात को बहन से शेयर करें और उसे भाई-बहन की दोस्ती का अहसास कराएं। 

बहनों के लिए कुछ सुझाव
जब भी भाई कुछ गलत करे तो उसकी गलती पर पर्दा न डालें। बल्कि उसे सही-गलत का फर्क करना सिखाएं। बड़ों के बीच में कभी न बोलें और न ही अपने भाई को ऐसा करने दें। प्यार को कमजोरी न बनने दें। कभी-कभी हम अति लगाव की वजह से अपने ही लोगों की आदतें खराब कर देते हैं। ऐसा करने से बचें। अपने भाई को हमेशा एहसास दिलाती रहें कि आप सब कुछ नहीं संभाल सकती हैं ताकि उसके मन में मम्मी-पापा का भय बना रहे। भावनात्मक और सामाजिक तौर पर अपने भाई को मजबूत बनाने में उसका साथ दें ताकि वो अपनी बात कहना खुद सीखे। 

दुनिया के सारे संबंध ‘मोह के धागे‘ से हैं जुड़े
यशराज बैनर की फिल्म ‘दम लगा के हईशा‘ का एक गीत है, ‘ये मोह-मोह के धागे।‘ बड़ा प्यारा गीत है। इसे नायक-नायिका नहीं गाते, यह नेपथ्य में बजता है। पर है यह रुमानियत से संबंधित गीत। मगर मोह शब्द सिर्फ इतने में ही सीमित नहीं है। दुनिया के सारे संबंध मोह के धागे से ही जुड़े हैं। मोह के अर्थ भी तो कई हैं और प्रकार भी कई। मोह के कुछ प्रकारों को निरर्थक मोह में गिना जाता है तो कुछ प्रकारों को सार्थक मोह में। मसलन किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से मोह की अति, मोह में उससे चिपके रहना, उसे सांस लेने का अवसर न देना, अनुपयोगी वस्तुओं का संग्रह इत्यादि नकारात्मक व निरर्थक मोह की श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर सार्थक और जरूरी किस्म का मोह तो जीने का आकर्षण होता है, यह न हो तो व्यक्ति निर्जीव दीवार के समान हो जाए। इस प्रकार के मोह में हर प्रकार का लगाव, प्यार, स्नेह, ममता और अपनापन आता है। मोह का यह धागा दिखाई नहीं देता, बस महसूस होता है। इसकी सुगंध स्वार्गिक होती है। वह मोह जिसे अपनापन कहते हैं, इंसान के भावनात्मक जीवन के लिए ऑक्सीजन होता है, यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मोह में जाने क्या होता है कि वो आपमें जीने की ललक बनाए रखता है। मोह न हो तो जीवन रेगिस्तान हो जाए। यह वह मोह है जो गोंद नहीं, रुई का शुभ्र-श्वेत फाहा होता है जिस पर, जिससे आप प्यार करते हैं उसी का रंग चढ़ता जाता है। 



--सुरेश गांधी --

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