दुमका (अमरेन्द्र सुमन) श्रीराम कथा समिति, शिवपहाड़ के तत्वावधान में आयोजित नवाह परायण के तीसरे दिन प्रवचनकर्ता राजकुमार हिम्मतसिंहका ने कहा कि गीता हमें योग सिखाती है। इसके मुख्य विषय ज्ञान योग, कर्मयोग व भक्ति योग आदि हैं । श्रीमद् भागवत हमें मुख्य रूप से बिछुड़ना अर्थात मरना सिखाती है। संसार तो एक संयोग है (अर्थात संयोगों से परिपूर्ण) किंतु जन जन का प्यारा रामचरित मानस तो एक प्रयोग है । मानस प्रयोगात्मक व आशीर्वादात्मक ग्रंथ है जो मुख्य रूप से जीवन की वास्तविकताओं से हमें अवगत कराता है। मनुष्य अत्यंत सरलता व सहजता पूर्वक अपने जीवन और आचरण में इसे उतार सकते हैं । प्रवचनकर्ता राजकुमार हिम्मतसिंहका ने कहा कि मानस की पंक्तियों में मंत्र की शक्ति समाहित है । संतों का ऐसा मत है कि वैदिक मंत्र न तो सर्व सुलभ है और न ही साधारण मनुष्य वैदिक मंत्रों का सही-सही उच्चारण ही कर सकते हैं। गलत उच्चारण मात्र से ही अर्थ का अनर्थ हो जा सकता है। परंतु मानस के मंत्र सर्व सुलभ हैं। गलत उच्चारण की संभावना इसमें ना के बराबर है। थोड़ा बहुत गलत उच्चारण हो भी जाए तो वह क्षम्य है। कथा के क्रम में श्री हिम्मतसिंहका ने कहा कि जनकपुर की पुष्प वाटिका में सीता जी की सखी ने जब श्रीराम व लक्ष्मण की सुंदरता देखी तो वह अचंभित व बावली सी हो गई। माता सीता व अन्य ने उसकी यह दशा देखकर पूछा सखी.... ! तुम्हारी ऐसी अवस्था क्यों हो गई है ? सखी ने उत्तर दिया कि बाग में दो राजकुमार आए हैं। एक सावंले और एक गोरे रंग के हैं । उनके सौंदर्य का मैं है कैसे बखान करूं। वाणी बिना नेत्र की है और नेत्रों के पास तो वाणी नहीं है।
श्याम गौर किमि कहौं बखानी ।
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।।
हिम्मतसिंहका जी ने कहा कि मानस के अनेकों प्रसंगों में श्री राम, लक्ष्मण व जानकी जी की सुंदरता का वर्णन है। फोटो में भगवान जितने सुंदर हमें दिखलाई पड़ते हैं वास्तव में वे उससे (फोटो से) लाखों गुना अधिक सुंदर होंगे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। परंतु हम मनुष्यों को तो अपनी अपनी भावना के हिसाब से ही भगवान दिखते हैं ।
जिन्ह कै रही भावना जैसी ।
प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी ।।
20 अगस्त को श्रीराम वन गमन की कथा सुनाई जाएगी।
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