अमरेन्द्र सुमन, दुमका, नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिन प्रभु श्री राम के लम्बावधि वनवास की समाप्ति के बाद वापस अयोध्या लौटने का अलौकिक वर्णन व अयोध्या में रामराज्य की महिमा का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया गया। श्री रामकथा समिति, शिवपहाड़़, दुमका के तत्वावधान में दिन शनिवार को आयोजित भक्तिमय कार्यक्रम में प्रवचनकर्ता राजकुमार हिम्मतसिंहका ने उत्तरकांड की संपूर्ण कथाा का वर्णन किया। रामराज्य की महिमा का वर्णन करते हुए प्रवचनकर्ता राज कुमार हिम्मतसिंहका ने कहा कि जिस प्रकार श्री राम आदर्श महापुरुष थे उसी प्रकार उनका राज्य भी आदर्श था। उनके राज्य में न कोई दुखी, न दरिद्र , न कोई दीन और न ही कोई पीड़ा होती थी। किसी को भी दैहिक, दैविक व भौतिक ताप नहीं सताता था। सब मनुष्य परस्पर प्रेम से रहते थे और वेदों में बतलाएं तरीके से अपने-अपने धर्म का पालन किया करते थे । कथा में प्रवचनकर्ता ने आगे कहा कि जीवात्मा के बड़े भाग्य जागते हैं तो उसे भगवान मनुष्य शरीर प्रदान करते हैं। मनुष्य शरीर प्रदान कर भगवान यह आशा करते हैं कि मनुष्य इस प्रकार अपना कर्म करें, भगवान की प्रेम पूर्वक भक्ति करें जिससे उसे मोक्ष प्राप्त हो और वह जन्म्म-मरण के चक्र से छुटकारा प्राप्त कर सकें। कर्म व भक्ति के मामले में भगवान ने मनुष्य को स्वतंत्र कर दिया है। भक्ति को तो इतना सरल कर दिया है कि हम यदि कुछ ना भी कर सकें सिर्फ भगवान के गुण समूह एवं लीलाओं का प्रेम पूर्वक गायन अथवा श्रवण करें, बिना परिश्रम के ही वह संसार रूपी समुद्र से तर जााएगा।
कलियुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर विश्वास ।
गायी रामगुन गन विमल, भव तर बिनही प्रयास ।।
सबों की मंगलकामना करते हुए अंत में आयोजन में सहयोग करने वाले तमाम लोगों को धन्यवाद देते हुए नौ दिवसीय संपूर्ण श्री राम कथा को विराम दे दिया गया।
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