बिहार से पलायन करने वाले लोग सहरसा रेलवे स्टेशन पर सोकर व जागकर जन सेवा ट्रेन पकड़ने के लिए इंतजार करते, और मनरेगा भी मजदूरों का पलायन रोकने में अक्षम
सहरसा: हरेक दिन गांव के लोगों को टाटा-बाई-बाई कहकर पौने नौ बजे वाली गाड़ी से चले जाते हैं. जी हां यही स्थिति है अपना बिहार की. यह मौसमी पलायन है.बिहार की श्रमशक्ति से आबाद होती है अन्य प्रदेश की खेती.दूरदूर गांव से ट्रेन पकड़ने लोग आते है कही ट्रेन छूट न जाए.मजदूरी को लेकर पलायन करने वाले लोग सहरसा रेलवे स्टेशन पर आकर सो जाते हैं. बेहतर सुविधा के अभाव में भी कोई सोकर व तो कोई जागकर जन सेवा ट्रेन पकड़ने के लिए इंतजार करते हैं. बताते चले कि कृषक मजदूरों की मजदूरी में भेदभाव है.पुरूष को अधिक और महिलाओं को कम मजदूरी है.केवल 100 रू.ही दिया जाता है.इस समय मनरेगा में काम नहीं होने लोग चले जाते हैं.इसमें मजदूरी भी कम है.
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