हिन्दू कालेज में छबीला रंगबाज का शहर का मंचन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

हिन्दू कालेज में छबीला रंगबाज का शहर का मंचन

  • नाटक में यथार्थ की पहचान - झा 

chhabila-rangbaz-played-in-hindu-collegeदिल्ली (राहुल कसौधन) ।  'छबीला रंगबाज का शहर' केवल आरा या बिहार की कहानी नहीं है अपितु इसमें हमारे समय की जीती जागती तस्वीरें हैं  जिनमें हम यथार्थ को नजदीक से पहचान सकते हैं। राज्यसभा सांसद और समाजविज्ञानी मनोज झा ने हिन्दू कालेज में छबीला रंगबाज का शहर के मंचन में कहा कि पढ़ाई के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भी हिन्दू कालेज की गतिविधियां प्रेरणास्पद रही हैं। झा यहाँ हिंदी नाट्य संस्था अभिरंग के सहयोग से 'आहंग' द्वारा मंचित नाटक में बोल रहे थे।

युवा लेखक प्रवीण कुमार द्वारा लिखित इस कहानी को रंगकर्मी - अभिनेता हिरण्य हिमकर ने निर्देशित किया है। कैसे हुए निर्देशन और चुस्त अभिनय के कारण लगभग दो घंटे लम्बे इस नाटक को यहां दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा। कहानी का बड़ा हिस्सा इस शहर के अनूठे अंदाज को बताने में लगता है। तभी घटनाएं होती हैं और एक दिन तनाव के मध्य अरूप अपने किसी रिश्तेदार किशोर को ऋषभ के घर रात भर ठहरा लेने के अनुरोध से छोड़ जाता है। बाद में अरूप बताता है वह छबीला सिंह था जो जेल से भागा था। वही छबीला सिंह जिसके नाम से शहर कांपता था। विडंबना यह है कि यह छबीला स्वयं शोषण और अत्याचार का शिकार है। असल में कहानी बिहार की जातिवादी संरचना के मध्य बन रहे आधुनिक समाज का जबरदस्त चित्र है।

नाटक में सूत्रधार शहर की भूमिका में तमन्ना शर्मा, अरूप की भूमिका में विजय कुमार, छबीला की भूमिका में खुमेश्वर विजय चायवाला एवं  मुमताज़ मियां की दोहरी भूमिका में  राहुल शर्मा और ऋषभ की भूमिका में अजितेश गोगना ने अपने प्रभावशाली अभिनय से दर्शकों की भरपूर सराहना प्राप्त की। वहीं अन्य भूमिकाओं में विनीत सिंह, विनय तोमर ,गुफरान, आशीष चौधरी (जेरी), अनीश शर्मा, अमोघ मिश्रा, भारती, रविकांत, आर्यन गुप्ता, हेमन्या, वंदना, यज्ञश्री सिसोदिया तथा  डॉ. हिरण्य हिमकर  भी मंच पर थे। मूल कहानी में रंगमंच की आवश्यकता के अनुसार कुछ परिवर्तन कर निर्देशक ने कहानी को और अधिक समीचीन तथा अविरल बनाने की कोशिश की। नाटक के अंत में लाश मिलने की सूचना दर्शकों को बेचैन कर देती है वहीं कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न छोड़ जाती है कि आखिर क्यों निर्दोष नागरिक व्यवस्था के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू कालेज के खचाखच भरे विशाल आडिटोरियम में नाटक को देखने के लिए कालेज तथा बाहर से दर्शकों की बड़ी मौजूदगी सार्थक रंगमंच की जरूरत को सिद्ध करने वाली थी।

अंत में कालेज की प्राचार्या डॉ अंजू श्रीवास्तव ने नाटक में अभिनय करने वाले सभी कलाकारों को स्मृति चिह्न भेंट किये। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने सभी का आभार व्यक्त किया। समापन सत्र का संयोजन आँचल बावा का ने किया। 

कोई टिप्पणी नहीं: