न्यायालय का सात रोहिंग्याओं को वापस म्यामां भेजने के सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप से इंकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

न्यायालय का सात रोहिंग्याओं को वापस म्यामां भेजने के सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप से इंकार

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 नई दिल्ली चार अक्टूबर, उच्चतम न्यायालय ने असम में अवैध रूप से आए सात रोहिंग्याओं को उनके मूल देश म्यामां भेजने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से गुरुवार को इंकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुये कहा कि उनके देश म्यामां ने उन्हें अपने देश के मूल नागरिक के रूप में स्वीकार कर लिया है। पीठ ने कहा, ‘‘अनुरोध पर विचार करने के बाद हम इस संबंध में किये गये फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। याचिका खारिज की जाती है।’’  इन रोहिंग्याओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह जीवन का मामला है और इस न्यायालय की यह जिम्मेदारी है कि रोहिंग्याओं के जीवन की रक्षा हो। हालांकि, पीठ भूषण के तर्क से सहमत नहीं थी और उसने कहा, ‘‘आपको हमें हमारी जिम्मेदारी याद दिलाने की जरूरत नहीं है। हम अच्छी तरह से अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।’’  पीठ ने कहा, ‘‘उनके मूल देश ने उन्हें अपने नागरिक के रूप में स्वीकार किया है।’’ पीठ ने म्यामां भेजे जाने के लिये असम के सिलचर में एक हिरासत शिविर में रखे गये सात रोहिंग्याओं में से एक की अर्जी अस्वीकार कर दी। इस रोहिंग्या ने केन्द्र सरकार को उन्हें म्यामां भेजने से रोकने का अनुरोध किया था। इस बीच, केन्द्र सरकार ने न्यायालय को बताया कि ये सात रोहिंग्या गैरकानूनी तरीके से 2012 में भारत में आये थे और उन्हें विदेशी नागरिक कानून के तहत सजा हुयी थी।



केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि म्यामां ने इन रोहिंग्याओं को वापस भेजने की सुविधा प्रदान करने के लिये उनकी पहचान का प्रमाण पत्र और एक महीने का वीजा भी दिया है। गृह मंत्रालय ने बुधवार को कहा था कि इन रोहिंग्याओं को गुरुवार को मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर म्यामां के अधिकारियों को सौंप दिया जायेगा। जफरूल्लाह नाम के एक रोहिंग्या ने पहले से ही न्यायालय में लंबित जनहित याचिका में एक आवेदन दायर कर किसी भी तरह के दबाव में उन्हें म्यामां नहीं भेजने का अनुरोध किया था क्योंकि वे म्यामां में हुये ‘‘नरसंहार’’ की वजह से भी पलायन करके आये हैं। इस आवेदन में आवेदनकर्ता के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि इससे पहले म्यामां सरकार ने इन रोहिंग्याओं को अपने नागरिकों के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि म्यामां में बहुत ही बदतर तरीके का नरसंहार हुआ है जिसमें दस हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे। भूषण ने कहा, ‘‘ये गैरकानूनी आव्रजक नहीं बल्कि शरणार्थी हैं। न्यायालय को संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त या उनके प्रतिनिधि को इन रोहिंग्याओं से बातचीत के लिये भेजने का निर्देश देना चाहिए ताकि उन्हें किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं भेजा जाये। पीठ ने कहा कि वह फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहेगी और आवेदन खारिज कर दिया।

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