पूर्णिया : आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है गढ़बनैली का दुर्गा मंदिर स्थान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 7 अक्तूबर 2018

पूर्णिया : आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है गढ़बनैली का दुर्गा मंदिर स्थान

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पूर्णिया : शक्ति पूजा के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध गढ़बनैली का ऐतिहासिक माता दुर्गा मंदिर 18 वीं शताब्दी से भक्तजनों के लिए श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक बना हुआ है। इस ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से इस दरबार में माता से फरियाद करते हैं माता उन भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूरा करती हैं। मंदिर का इतिहास कुछ ऐसा है कि जब बनैली स्टेट के राजा कलानंद सिंह के पुत्र राजा कुमार रामानंद सिंह को शिकार करने के दौरान गढ़बनैली का यह मनोरम स्थल काफी भा गया था। राजा कुमार रामानंद सिंह की प्रसिद्धि के साथ साथ गढ़बनैली स्थित माता दुर्गा मंदिर की प्रसिद्धि भी पड़ोसी देश नेपाल सहित पूरे कोशी क्षेत्र में थी। विराट राजा के घराने से भी राजा कुमार रामानंद सिंह के आमंत्रण पर गढ़बनैली मेला घूमने आया करते थे। वर्ष 1920 में राजा कुमार रामानंद सिंह ने दुर्गा मंदिर में भक्तों की उमड़ती भीड़ एवं माता के अटूट श्रद्धा एवं विश्वास को देख दुर्गा मंदिर का भव्य निर्माण कराया था। उसी साल से दुर्गा पूजा के अवसर पर मेला लगना शुरू हुआ था। यहां काफी दूर से लोग माता दर्शन को आते थे।

...इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गया है गढ़बनैली का दशहरा मेला : 
गढ़बनैली दशहरा मेला ने जो भी शोहरत हासिल की थी वह कालांतर में इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई। आज जिस मेला की कल्पना से लोग रोमांचित हो जाते हैं। खास अंदाज में यह मेला बिहार में अपना वजूद रखता था। लेकिन परिस्थिति एवं जमाने की हवा ने इसे लोगों से काफी दूर कर दिया। गढ़बनैली दशहरा मेले की शुरुआत 1920 में स्व राजा कुमार राजा रामानंद सिंह के द्वारा की गई थी। पूजा एवं मेला के शौकीन राजा साहब के द्वारा दुर्गा मंदिर का निर्माण एवं मेला साथ साथ लगाए गए। पूजा विशेष अनुष्ठान तांत्रिक विधि से किया गया तथा उसी समय में राजा ने इस विधि के अनुरूप बलि प्रथा का भी व्रत लिया। जो आज भी चल रहा है। पूजा का स्वरूप मेला से जोड़ा गया। जिससे सिद्धपीठ के रूप में काफी प्रसिद्ध मिली और दूरदराज में इस पीठ के मनोकामना सिद्धि होने की बात फैलाई गई। लोग अपनी मनोकामना प्राप्ति के साथ साथ मेले का आनंद लेने गढ़बनैली पहुंचने लगे। पड़ोसी देश नेपाल के लोग काफी संख्या में पहुंचते थे। हिंदू राष्ट्रों में इनकी चर्चा काफी होती थी। कहा जाता है कि राजा साहब ने दुर्गा सप्त ग्रंथ बनवाने के लिए 1920 में अपने निजी स्तर पर प्रसिद्ध व्याकरण आचार्य संस्कृत आचार्य साहित्य आचार्य को बुलाया था। गढ़बनैली दशहरा मेला की याद लोग भुला नहीं पा रहे हैं क्योंकि लोगों को जरूरत के सामान एक ही जगह मिल जाया करती थी। स्व राजा कुमार रामानंद सिंह के द्वारा लगाए गए मेले की प्रसिद्ध को देखते हुए विश्वविख्यात साहित्यकार शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु ने गढ़बनैली मेला पर कहानी लिखी और इसी पर आधारित बनी तीसरी कसम फिल्म व उसके गीत मारे गए गुलफाम को काफी प्रसिद्ध मिली।

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