बेगूसराय : बिहार बेगूसराय मंझौल अनुमंडल का माता जयमंगला का स्थान। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

बेगूसराय : बिहार बेगूसराय मंझौल अनुमंडल का माता जयमंगला का स्थान।

शारदीय नवरात्र में शक्ति पीठ माँ जय मङ्गला स्थान में वर्ष के चारो नवरात्र में रहती है अपार भीड़,जहाँ होती है श्रद्धालुओं की कामना पूर्ण। यहाँ माँ के सिद्धिदात्री व मंगल स्वरूप की होती है पूजा अर्चना।
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बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) बिहार बेगूसराय जिला अंतर्गत मंझौल अनुमंडल का माता जयमंगला का स्थान देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है।माना जाता है कि माता जयमंगला की पूजा आदि काल से होती आ रही है।यहाँ देवी सती का वाम स्कंध गिरा था।पूरे नवरात्र यहाँ सप्तशती का पाठ पंडित तथा तंत्र साधकों द्वारा चलता रहता है।जिसकी पूर्णाहुति हवन से होती है।

संपूर्ण सप्तशती पाठ का नवरात्र में दुर्गा पूजा का बड़ा महत्व है। 
शारदीय नवरात्र और वासंतिक नवरात्र में कलश स्थापना के पश्चात प्रत्येक दिन पंडितों के समूह द्वारा संपुट सप्तशती पाठ यहाँ किया जाता है।स्थानीय श्रद्धालु भी मंदिर परिसर में संकल्प के साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं।यहाँ0 विधि विधान के साथ बिल्व निमंंत्रण एवं बलि दी जाती है।इसके पश्चात जागरण के बाद माँ का दर्शन के लिए पट खुलता है।तब मां का महिलाओं द्वारा खोंइछा भरने का कार्य प्रारंभ होता है ।अंत में हवन के पश्चात कार्यक्रम का संपादन पंडित के द्वारा किया जाता है। यहाँ मान्यता है कि माता जी मङ्गला स्वत: प्रकट हुई थीं। जय मङ्गला गढ़ स्थित माता,जय मङ्गला मङ्गल कारिणी के रूप में पधारी हैं। जयमंगला गढ़ स्थित माता जयमंगला परिसर के भग्नावशेषों व शिलालेखों से अनुमान यह लगाया जाता है,कि यहाँ का मंदिर काफी पुराना है।इस मंदिर के गर्भगृह में माता जयमंगला की मूर्ति है।कहा जाता है कि भगवती सती के वाम स्कंध का पात यहाँ पर गिरा था।जिससे यह सिद्ध स्थल नवदुर्गा के नवम् स्वरूप में विद्यमान है तथा सिद्धि की कामना करनेवालों साधकों को सिद्धि प्रदान करती हैं माँ। कहा जाता है कि मंगला स्वरूपा माता जयमंगला किसी के द्वारा स्थापित नहीं,अपितु स्वतः प्रकट हुई हैं ।यहाँ देवी दानवों के निग्रह एवं भक्तजनों के कल्याण के लिए स्वतः निर्जन वन में प्रकट हुई थी। यहाँ पूजा के नाम पर माता मात्र पुष्पाक्षत से ही प्रसन्न होती हैं।यहाँ पर पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ बलि प्रथा नहीं है।यहाँ ऐसी भी बात नहीं थी कि यहाँ बलि प्रथा थी ही नहीं,आज से पिछले कुछ ही वर्षों की बात है सिमरिया काली स्थान व माता अष्टभुजी स्थान के साधक रुदौली निवासी पंडित, साधक श्री चिदात्मन जी महाराज के द्वारा बलि प्रथा को बन्द करवा दिया गया।जिसमें काफी विवाद भी हुआ और अंततः बलि प्रथा बन्द हो ही गई। यहाँ रक्त रहित पूजा स्वीकार है माता को। माता जयमंगला पुष्प, जल ,अक्षत तथा दर्शन पूजन से ही प्रसन्न होती हैं।बलि देने की प्रथा यहाँ नहीं है। नवरात्रा में मंदिर परिसर में जप,पाठ,पूजन से मनोवांछित फल मिलता है।पुष्प,अक्षत,जल से माता का पूजा सभी भक्तजन करते हैं। सालों भर यहाँ पर सप्ताह में 2 दिन मंगलवार और शनिवार के दिन बैरागन का दिन होता है। जहां माता जय मंगला मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए विशेष रुप से श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।

 ऐसे पहुंचे माता जयमंगला  मंदिर के स्थान पर : --
 माता जयमंगला के मंदिर स्थल पर पहुंचने का रास्ता बिल्कुल आसान है।बेगूसराय मुख्यालय से एसएस -55 मंझौल पथ के रास्ते नित्यानंद चौक मंझौल पहुँचे यहाँ से फिर गढ़पुरा पथ से 3 किलोमीटर की दूरी पर बनी भव्य द्वार जो मुख्य सड़क से बायीं तरफ है,जो सड़क सीधे माता जयमंगला के मंदिर तक जाती है।वहाँ से उत्तर थोड़ी ही दूरी पर माता जयमंगला का मंदिर अवस्थित है। हसनपुर गढ़पुरा पथ के रास्ते से भी जयमंगला माता के मंदिर तक आने का रास्ता है।माता जय मंगला मंदिर  के पुजारी श्यामा कांत झा बताते हैं कि,शारदीय नवरात्र में मां जयमंगला माता की पूजा व दर्शन का विशेष महत्व रखता है।यहाँ पर आने वाले हर श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।अन्य जिलों व प्रांतों के श्रद्धालुओं की भी भीड़ जय मंगला माता के दर्शन करने के लिए विजयादशमी के समय में पहुँचते हैं।माता के दरबार में नियमित रुप से आने वाले भक्तों का कहना है कि यहाँ आ कर मन्नतें मांगने वालों की सारी मुरादें माता जयमंगला अवश्य ही पूरी करती हैं।नवरात्र में तांत्रिकों के द्वारा विशेष रूप से पूजा कर सिद्धि की प्राप्ति यहाँ पूजा अर्चना कर प्राप्त करते हैं।इसलिए यहाँ के माता जयमंगला का पूजन करने का विशेष महत्व है।

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