बेगूसराय : लखनपुर दुर्गास्थान में लगभग चार सौ वर्षों लागातार होते आ रही है पूजा अर्चना। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

बेगूसराय : लखनपुर दुर्गास्थान में लगभग चार सौ वर्षों लागातार होते आ रही है पूजा अर्चना।

लखनपुर दुर्गा स्थान की महिमा ही निराली है,यहाँ आनेवाले श्रद्धालुओं की कामना होती है पूरी।

lakhanpur-durgasthaan-begusarai
बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) बेगूसराय जिले के प्रसिद्ध शक्तिपीठ के नाम से चर्चित भगवानपुर लखनपुर वाली दुर्गा माताजी भक्तों के हर मन्नतो को पूरा करती हैं। बेगूसराय जिला के भगवानपुर प्रखंड में पिछले लगभग 400 वर्षों से लगातार माँ दुर्गा माता का पूजा-अर्चना बंगाल के तर्ज पर लखनपुर शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर में होते आ रहा है।प्रकृति का यह महिमा है कि लखनपुर गांव के तीन तरफ बलान नदी और एक तरफ दक्षिण की दिशा में पूरा बहियार है । दुर्गा मंदिर भी बिल्कुल बलान नदी के तट पर अवस्थित है।बेगूसराय जिला का सबसे प्रसिद्ध यह शक्तिपीठ के नाम से दुर्गा मंदिर जाना जाता है।यहाँ पर पूजा-अर्चना करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग पहुँचते हैं।खासकर दुर्गा पूजा में बिहार,झारखंड ,बंगाल और उत्तर प्रदेश से हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।यहाँ झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन भी हेलीकॉप्टर से लखनपुर गांव पहुंचकर दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना किए थे।ऐसी यहाँ की मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से पूजा अर्चना कर मन्नतें मांगते हैं,उनकी सारी मनोकामनाएं दुर्गा माता पूरा करती हैं। लखनपुर  गांव स्थित  इस दुर्गा मंदिर का एक अलग ही इतिहास रहा है  :- आज से लगभग 400 वर्ष पहले बछवाड़ा प्रखंड के बेगम सराय गांव निवासी स्वर्गीय गोविंद प्रसाद सिंह के पूर्वज पहले बंगाल में रहा करते थे।जब वे अपने गाँव बिहार आने की बात सोचे तो उनके मन मे आया कि यहीं से माँ दुर्गा को भी ले जाकर वहाँ यतानी की अपने यहाँ बिहार में इनकी स्थापना कर पूजा अर्चना क्यों न किया जाय क्योंकि वे माँ की महिमा से अवगत थे।तो एक रात निद्रा में ही माताजी ने उन्हें एक स्वप्न देकर कहीं कि तुम मुझे उठा कर बिहार ले चलते हो तो तुम्हें प्रत्येक तीन कदम पर एक खस्सी की बलि देनी पड़ेगी।अगर मेरा यह शर्त तूम्हें मंजूर है तो मुझे उठा कर ले चल सकते हो।भक्तो के द्वारा माँ के इस शर्त को  मंजूर कर भगवती को उठाकर बंगाल से उनके पूर्वजों ने खस्सी की बलि देते हुए बिहार बेगूसराय जिला के लखनपुर गाँव आये और शर्त के मुताबिक प्रत्येक तीन कदम पर खस्सी की बाली देते हुए आ रहे थे,कुछ खस्सी की बलि पड़ी फिर बीच में खस्सी की बली देना बंद कर दिया। उसके बाद माँ दुर्गा वही रुक गई।वह यही जगह थी जहाँ बलि नहीं पड़ने के कारण माँ दुर्गा रुक गईं और मजबूरन यहीं पर उनकी स्थापना करना पड़ा।तब से यहीं लखनपुर में स्थापना के बाद पूजा-अर्चना प्रत्येक वर्ष होने लगा। इसलिए अभी भी खस्सी की बलि देने की प्रथा यहाँ पर चल रही है।जिसके कारण दुर्गा पूजा की नौवीं तिथि को भगवती के हाथ में पंडित पाँच ओड़हुल का कली फूल तोड़कर हाथ में देकर भगवती से फूलवायस होने तक भजन के साथ प्रार्थना करते है,और भगवती के हाथ से फूल पूरे खिलकर नीचे गिरने के बाद तब खस्सी की बलि देना शुरु की जाती है।ज्ञातव्य हो कि जबतक काली खिलकर गिरती नहीं है तबतक बलि नहीं होती है।यह क्रिया आज भी बरकरार है और यही माता की महिमा भी है।

इस दुर्गा मंदिर के प्रांगण में दुर्गा पूजा के नवमी तिथि के रात्रि से लेकर विजयादशमी के शाम तक लगभग 10,हजार की संख्या में खस्सीयों की बलि पड़ती है।  लखनपुर गांव के एक बूढ़े बुजुर्ग 75 वर्षीय श्याम नंदन प्रसाद बताते हैं कि माता दुर्गा की इतनी असीम कृपा यहाँपर है कि आज तक उनके सामने वाली बलान नदी के घाट में एक भी लड़का बच्चा कभी नहीं डुबा है।दुर्गा मंदिर का एक पुराना यह इतिहास लोग बताते हैं कि एक बार माँ के मंदिर के अंदर एक शादी शुदा लड़की छुप कर बैठ गई थी।जब पंडित के द्वारा मां को चक्षु प्रदान किया जा रहा था।जब माँ दुर्गा ने उस लड़की को मंदिर के भीतर देखी तो उस लड़की  पर क्रोधित हो गई और उसको सीधे अपने मुँह के अंदर निगल गई।जब पंडित ने मां के मुंह में लड़की के साड़ी का छोटा सा कोर मुंह में देखा। तो उसके बाद पंडित ने काफी माँ से अनुनय विनय किया,तब माँ ने अपने मुंह से बाहर उस लड़की को निकाली। जो बाहर निकले के बाद वह मृत अवस्था में लढ़की थी।तब से आज तक कोई भी मां दुर्गा जी के दर्शन करने के समय अपनी आंखों से आंखें मिलाकर कभी कोई भक्त नहीं लोग देखते है। क्या है यहाँ पूजा की विधि विधान इस बात को पूछने पर यहां के बुजुर्ग और तांत्रिक स्यामा नाथ बताते हैं कि जितिया पर्व के पारण यानी नौवीं तिथि के दिन  एक खस्सी की बलि देने के बाद से ही कलश स्थापना कर एक अखंड दीप को मंदिर के भीतर पंडित के द्वारा जलाकर रखते हैं और नियमित रूप से विजयादशमी तक पूजा अर्चना मंदिर के करते हैं। मंदिर के अंदर यह पंडित हमेशा ध्यान रखते हैं कि कभी भी अखंड का जल रहा दीपक विजयादशमी तक बुझे नहीं। दुर्गा पूजा के नौवीं और दसवीं तिथि को यहाँ सैकड़ों मुंडन संस्कार कराने के लिए भक्तजन दूर दूर से आते हैं। लखनपुर दुर्गा मंदिर के प्रतिमा के विसर्जन का विधि विधान के बारे में पूछने पर बताते हैं कि विजयादशमी के रात्रि में ही माँ भगवती की प्रतिमा को मंदिर से बाहर निकालकर बलान नदी में दो नाव पर सवार माता जी को किया जाता है सभीे भक्तगण माँ के प्रतिमा को  सबसे पहले बगड़स गांव ले जाते हैं।फिर वहाँ से वापस लौटा कर उन्हें बलान नदी के रास्ते से ही बनवाड़ीपुर,चकदुल्म,समस्तीपुर,मननपुर महेशपुर तथा गेहुँनी गाँव तक माता के प्रतिमा को देर रात्रि तक
  
घुमाने के बाद सुबह में प्रतिमा का विसर्जन कर देते हैं।
 इस पूजा में पूर्ण सहयोग और मंदिर का जीर्णोद्धार गाँव के ही सामाजिक कार्यकर्ता विमल घोष के द्वारा किया गया है।इस पूजा में उत्तर प्रदेश सरकार में कमिश्नर वर्तमान में रहे अमित कुमार घोष (आईएएस) उनके पिता सेवानिवृत्त कर्नल एम एम घोष, उनकी पत्नी गौरी घोष, दुर्गा पूजा के समय में बाहर से लखनपुर गांव पूजा अर्चना करने के लिए हर वर्ष आते है और पूजा अर्चना करते हैं।सही मायने में बंगाल से पधारीं माता की महिमा अवर्णातित है।

कोई टिप्पणी नहीं: