नई दिल्ली 15 अक्टूबर, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी 'आयुष्मान भारत' योजना को शुरू हुए कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन मरीजों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। दूसरे राज्यों के निजी अस्पताल इससे अपना हाथ पीछे खींचने लगे हैं। सोशल ज्यूरिस्ट और दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल का कहना है कि देश में आयुष्मान योजना ही काफी नहीं है, बल्कि सरकार को शिक्षा के अधिकार की तरह ही लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार भी देना चाहिए। अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा, "केंद्र सरकार की 'आयुष्मान भारत' योजना लागू होने के बाद भी बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों से रोजाना 40 से 45 मरीज उनके पास आ रहे हैं। मुझे तो इसका प्रभाव नजर नहीं आ रहा, क्योंकि इन राज्यों में इलाज है ही नहीं।" उन्होंने कहा कि होता दरअसल यह है कि गांव का सरकारी चिकित्सक मरीज को तहसील में भेज देता है, तहसील वाला चिकित्सक उसे जिला अस्पताल में भेज देता है और जिला अस्पताल उस मरीज को राज्य के किसी बड़े अस्पताल में भेज देता है और वहां से मरीजों को दिल्ली भगा दिया जाता है। अग्रवाल ने कहा, "दूसरे राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत खस्ता है, इसमें कोई शक नहीं है। दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में आने वाले 45 फीसदी मरीज उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार जैसे अन्य राज्यों के होते हैं क्योंकि वहां सुविधाएं ही नहीं हैं।" अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा, "इसके लिए हमने एक तरीका सुझाया है, क्योंकि जब बात फंड की आती है तो राज्य सरकार हाथ खड़े कर देती है, और जन स्वास्थ्य का मुद्दा राज्य सरकार की कार्यसूची में आता है। किसी राज्य ने आज तक लोगों को जन स्वास्थ्य का अधिकार दिया ही नहीं, तो केंद्र सरकार को शिक्षा के अधिकार की तरह स्वास्थ्य के अधिकार को समवर्ती सूची में लाना चाहिए। साथ ही जनस्वास्थ्य अधिकार को मौलिक अधिकार बनाना चाहिए।" उन्होंने कहा, "इसके अलावा केंद्र को एक राष्ट्रीय कानून बनाना चाहिए, जिसके तहत राज्यों को निर्देश दिया जाए कि वह दो से तीन साल में तहसील, जिला और राज्य स्तर पर इतना बुनियादी ढांचा विकसित करें कि वहां के लोग सुविधाएं न मिलने पर अदालत में जा सकें । लेकिन आज लोगों की मजबूरी है कि उन्हें यहां दिल्ली आना पड़ता है, क्योंकि वह राज्य के किसी अस्पताल में इलाज न मिलने पर उसके खिलाफ अदालत में नहीं जा सकता।"
स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी अस्पतालों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने वाले अशोक अग्रवाल ने कहा कि यही एक तरीका है। अगर आप चाहते हैं कि पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हो तो आप जनता को अधिकार दीजिए फिर वह हर एक को अदालत में घसीटेंगे। दरअसल, केंद्र सरकार ने जनवरी 2015 में जो नेशनल हेल्थ पॉलिसी का मसौदा तैयार किया था, उसमें लिखा था कि शिक्षा के अधिकार की तरह स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया जाएगा, लेकिन जब अंतिम मसौदा तैयार कर सरकार नीति लाई तो उस बिंदु को पूरी तरीके से बाहर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि जब तक आप लोगों को अधिकार नहीं देंगे तो देश में हालात बेहतर होंगे ही नहीं। यह बताइए कि सरकारी अस्पतालों में कौन जाता है, बेशक गरीब ही जाता है अमीर तो निजी अस्पतालों में इलाज करा लेते हैं, गरीब के पास न तो बीमा है, न पैसे हैं और न वह निजी अस्पतालों में जा सकते हैं। आयुष्मान योजना के तहत देश भर के पात्र गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक निशुल्क उपचार मिलता है। वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार के अस्पतालों में बेड आरक्षित करने के फैसले को रद्द किए जाने के सवाल पर अशोक अग्रवाल ने कहा, "हमारे पास पहले खबरें आ रही थीं कि अस्पताल वाले कोई न कोई बहाना बनाकर दिल्ली के बाहर के लोगों को वापस कर रहे हैं और उन्हें इलाज देने से मना कर रहे हैं। इसके बाद हमने तीन अक्टूबर को याचिका दाखिल की और अगले दिन सुनवाई में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को साफ-साफ कहा था कि यह बिल्कुल गलत है और बाद में अदालत ने इस पर रोक लगा दी।" उन्होंने कहा, "अगर उच्च न्यायालय यह आदेश नहीं देता तो प्रत्येक राज्य सरकार इस तरह की बंदिशें लगा देती और पूरे देश में एक अजीब सा माहौल बन जाता, लोग मरने लगते। लोगों को जहां इलाज मिलता है तभी वे वहां जाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि देश में स्वास्थ्य सेवाएं खस्ताहालत में हैं तो अन्य राज्य के आधे लोग तो यहां पहुंच भी नहीं पाते हैं।"
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