'कविता और कला में अमूर्तन' विषयक परिसंवाद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

'कविता और कला में अमूर्तन' विषयक परिसंवाद

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नई दिल्ली।  असग़र वजाहत रंगों के साथ प्रयोग करते हैं और अपने अमूर्त चित्रों में रंगों तथा परतों से विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को प्रकट करते हैं। सुप्रसिद्ध कला समीक्षक और कवि प्रयाग शुक्ल ने ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी की कला वीथी में चल रही चित्र प्रदर्शनी में कहा कि उनके चित्रों में हमें गहरी मानवीय उष्मा मिलती है। प्रदर्शनी के समापन की पूर्व संध्या पर 'कविता और कला में अमूर्तन' विषयक परिसंवाद में शुक्ल ने प्रख्यात कवि नवीन सागर की एक कविता का पाठ भी किया। परिसंवाद में  असग़र वजाहत ने कहा कि रंग बोलते हैं। उनकी आवाज़ सुनाई देती है। रंग हँसते हैं। उनकी हँसी सुनाई देती है। रंगों का संसार हमारे संसार की तरह विचित्र संसार है। बस एक शब्द है जो स्थिर को गति देता है और गति को तीव्रता देता है। उन्होंने निराला के प्रसिद्ध प्रगीत 'बांधो न नाव इस ठाँव बंधु!' को कविता में अमूर्तन का सुन्दर उदाहरण बताया। परिसंवाद में चित्रकार सीरज सक्सेना, कवि पंखुरी सिन्हा, फिल्म विशेषज्ञ शरद दत्त, फोटोग्राफर सर्वेश, युवा आलोचक पल्लव सहित अनेक चित्रकार और लेखक उपस्थित थे। 

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