बिहार विधान सभा के प्रेस दीर्घा का कायाकल्प हो गया है। गद्देदार बेंच और टेबुल का डिजाइन बदल गया है। देखने में पहले से अधिक आकर्षक लग रहा है। गद्दी भी बदल गया है। प्रेस दीर्घा में जाने का पहले सिर्फ एक दरवाजा था, अब तीन दरवाजे हो गये हैं। इसलिए अब दीर्घा से आवागमन आसान हो गया है। पत्रकारों के लिए जारी प्रवेश कार्ड का भी डिजाइन बदल हुआ है। कार्ड का फीता भी मॉडर्न हो गया है। संसद और विधानसभाओं में पत्रकारों के बैठने की व्यवस्था सदस्यों के ‘कपार’ पर ही होती है यानी ऊपर बने दीर्घा में होती है। विधायक नीचे बैठते हैं और पत्रकार ऊपर। कवरेज में आसानी का भी ख्याल रखा जाता है। पिछले 17-18 वर्षों से विधायकों के ‘कपार’ पर यानी प्रेस दीर्घा में बैठते-बैठते मन भरुआ गया है। अब तो विधायकों के साथ बैठने का मन होने लगा है। वह भी लॉबी में नहीं, हाउस यानी सदन में। इस इच्छा को आप मजाक में भी ले सकते हैं। इच्छा होना गुनाह थोड़े है। अहीर हैं, खून में राजनीति है। राजनीति कर भी लें तो कौन-सी ‘भैंस’ भागी जा रही है। विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने शीतकालीन सत्र की पहली बैठक को संबोधित करते हुए सदस्यों से सदन की कार्यवाही में सहयोग का आग्रह किया। इसी क्रम में विधान सभा के सचिव बटेश्वर नाथ पांडेय ने सदन को बताया कि डिहरी विधायक मो. इलियास हुसैन की सदस्यता 27.09.18 के प्रभाव से समाप्त हो गयी है। उन्होंने कहा कि रांची स्थित सीबीआई के विशेष न्यायालय के निर्णय के आलोक में जन प्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 की धारा 8 तथा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (ई) के प्रावधानों के तहत उनकी सदस्यता समाप्त की गयी है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, 27 मार्च, 2019 से पहले डिहरी विधान सभा का चुनाव कराया जाना अनिवार्य होगा। यदि किसी सदन का कार्यकाल 1 साल से अधिक बचा हो तो उस सदन की रिक्त हुई सीट के लिए छह माह के अंदर चुनाव कराया जाना अनिवार्य है। इसी संदर्भ में माना जा रहा है कि डिहरी का चुनाव लोकसभा से पहले करा लिया जाएगा। हम तो अपने ‘मन की बात’ बता रहे हैं। डिहरी विधान सभा हमारे लोकल विधान सभा ओबरा से लगा हुआ है। दोनों की सीमा में सोन नदी है। चुनाव लड़ना है तो अपना दावा भी जताना पड़ता है। हममें सबसे बड़ी योग्यता है कि हम अहीर हैं, जिसके वोटरों की संख्या डिहरी विधान सभा क्षेत्र में 70 हजार से अधिक है। अहीर हैं तो ‘हाथ-गोड़’ से भी मजबूत होंगे। जो टिकट के लिए दूसरी सबसे बड़ी योग्यता है। 18 साल से विधायकों के ‘कपार’ पर बैठ रहे हैं तो ‘पढ़ल-लिखल’ होंगे ही। हालांकि राजनीति के लिए यह कोई योग्यता नहीं है। लेकिन संकट है कि ‘टिकटवा’ कौन देगा। 3-B की पार्टी में जातीय समीकरण में फीट नहीं बैठते हैं तो MY वाली पार्टी में कुछ ‘मिलता’ ही नहीं। ‘नयका भविष्य’ वाली जो पार्टी है, वह पहले ही अछूत मान लिया है। खैर, टिकट नहीं मिले तो भी, ‘बेटिकट यात्रा’ का भी अपना आनंद है।
---वीरेंद्र यादव---
पटना
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