नयी दिल्ली, 26 नवम्बर, दिल्ली सहित देश के कई बड़े शहरों में प्रदूषण की समस्या के विकराल रूप लेने के बीच राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा है कि स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी भी सामाजिक न्याय के दायरे में आता है और इनका नहीं मिलना सामाजिक न्याय में कमी को इंगित करता है। राष्ट्रपति ने देश के संविधान को लागू करने के दिन 26 नवम्बर 1949 की वर्षगांठ के मौके पर साेमवार को यहां उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि संविधान में संभवत: सबसे महत्वपूर्ण शब्द न्याय है। न्याय एक शब्द है लेकिन यह एक जटिल और स्वतंत्रता प्रदान करने वाली अभिव्यक्ति है। न्याय, हमारे संविधान और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का साधन और साध्य है। न्याय को समाज के विकास, बदलती मान्यताओं , जीवन शैली और प्रौद्योगिकी के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। सामाजिक न्याय राष्ट्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण विचार है। सरलतम शब्दों में यह समाज के असंतुलन को समाप्त करने पर केन्द्रित है। सामाजिक न्याय का अर्थ समान अवसर प्रदान करना भी है। न्याय की यह मान्यता 1949 में मान्य थी और यह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि देश में सामाजिक न्याय की धारणा का दायरा बढ़ाते हुए इसमें आधुनिक समाज के स्वच्छ हवा, कम प्रदूषित शहर ,कस्बे, नदियां, नहरें , साफ-सफाई , हरा-भरा और पर्यावरण के अनुकूल विकास जैसे मानदंडों को भी शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि ये सभी सामाजिक न्याय की रूपरेखा के तहत जलवायु और पर्यावरणीय न्याय से संबंधित हैं। यदि एक बच्चा वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा से ग्रसित है तो यह सामाजिक न्याय प्रदान करने में कमी मानी जायेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी के बढ़ते इस्तेमाल से न्याय की धारणा भी प्रभावित हुई है। इससे न्याय का दायरा तो बढ़ता है लेकिन यह अपने साथ चुनौती भी लेकर आयी है। प्रौद्योगिकी आधारित न्याय को आर्थिक न्याय के उपसमूह के रूप में देखा जाना चाहिए। श्री कोविंद ने कहा कि नवोन्मेष ने समाज के वंचित वर्गों को लाभ पहुंचाया है और आधार तथा प्रौद्योगिकी से जुड़ा प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण इसका उदाहरण है। इससे कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार तथा चोरी (लीकेज) में कमी आई है। श्री कोविंद ने कहा कि नवोन्मेष और प्रौद्योगिकी से फायदा हुआ है लेकिन इसने निजता को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। उदाहरण के लिए लोक कल्याण के कार्यों में आंकड़ों के उपयोग के मामले में उनकी गोपनीयता बनाये रखने की दुविधा है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी अनिवार्यताओं के बीच न्याय के प्रतिस्पर्धी विचार हैं और 21वीं सदी में ऐसे मुद्दों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि संविधान अनुच्छेदों तथा नियमों/उपनियमों का संग्रह मात्र नहीं है बल्कि स्वतंत्र भारत का आधुनिक ग्रंथ है। इसका स्थान सर्वोच्च है, यह सभी नागरिकों के लिए प्रेरणादायी और सजीव दस्तावेज है। समाज के लिए यह एक आदर्श है। राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ भीम राव अम्बेडकर और संविधान परिषद में उनके सहयोगियों ने उदारवादी रुख अपनाते हुए संविधान में संशोधन का लचीला रवैया अपनाया और इसमें विभिन्न विचारधाराओं का समावेश किया। स्वतंत्रता, न्याय, भाईचारा,निष्पक्षता तथा समानता की धारणा को विस्तार देने के लिए संविधान निर्माताओं ने आने वाली पीढ़ियों की बुद्धिमत्ता पर भरोसा जताया। उन्हें विश्वास था कि आने वाली पीढ़ियां न सिर्फ संविधान का संशोधन करेगी बल्कि वह बदलते समय के अनुसार इसकी पुनर्व्याख्या भी करेंगी। राष्ट्रपति ने कहा कि नागरिक ही संविधान के अंतिम संरक्षक हैं, उनमें ही इसकी सम्प्रभुता समाहित है और नागरिकों के नाम पर ही संविधान को अंगीकृत किया गया है। संविधान नागरिक को सशक्त बनाता है साथ ही नागरिक भी संविधान का पालन कर अौर इसे संरक्षित कर अपने शब्दों तथा कार्यों से इसे अधिक सार्थक बनाकर सशक्त बनाते हैं।
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