क्या हम अपने अपूर्व तत्व, उसकी अनन्त शक्ति,अनन्त वीर्य, अनन्त शुद्धता, और अनन्त पूर्णता को जानने की कभी कोशिश करते हैं,क्या हमारे संतान इन तत्वों को जानने के लिए कार्य करें ऐसा हम चाहते हैं, हम सर्व शक्तिशाली,खुद को नेक और महान कार्य के लिए कभी प्रोत्साहित करते हैं,क्या हमारे अंदर संसार भ्रमण और उसके अनुभव का भाव जागृत होता है,क्या हम अपनी श्रेष्ठता पर विश्वास रख पाते हैं,क्या हम अपने अंदर उमड़ते सूर्य लोक,चंद्र लोक की सैर को रोक पाते हैं, क्या हम अपने अंदर भ्रांत धारणाओं और दग्ध नारकाग्नि को सहस्र गुण, आत्म श्रद्धा और विश्वास के धर्मतत्व से रोक पाते हैं,क्या हम अपने उपहास और उपेक्षा की परवाह किये वगैर सत्मार्ग के प्रचार को उत्सुक होते हैं,हम लोगों में कितने हैं जो सतकर्म के प्रति उत्सुक हैं, अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो हमें ये समझ लेना चाहिए कि हमारा रक्त पानी जैसा हो गया है,मस्तिष्क मुर्दा और शरीर दुर्बल हो गया है और हमारे अंदर अनिष्टों का जड़ मजबूत हो रहा है,सदियों से हम अनेक प्रकार के सुधार, आदर्श आदि की बातें करते आ रहे हैं,किन्तु जब कर्म का समय आता है तो हम तो हम अपने स्वार्थ लिप्सा में खो जाते हैं,ज्ञान की कमी है ऐसा हम सोच भी नहीं सकते अतः इन अनर्थो का मूल कारण है कि हम दुर्बल हो जाते हैं,मन दुर्बल,शरीर दुर्बल,श्रद्धा दुर्बल, ब्यक्तित्व दुर्बल और सोच दुर्बल हो जाता है,और हमारे अंदर एक अत्याचारी का उदय हो जाता है जो सबकुछ चकनाचूर कर डालता है,हम स्वजनी हो जाते हैं,स्वजन हमारा बल हर लेते हैं,हमारा मेरुदंड झुक जाता है और हम पददलित हो जाते हैं,और अनेक भाग में बांटने लगते हैं ख़ुद को प्रशंशा का भाग,ऐश्वर्य का भाग,कार्य का भाग,जाति का भाग,चतुराई का भाग और यही भाग हमसे पाप करवाकर हमें पापी बना देता है अतः हमें इस विभक्ति से छुटकारा पाना होगा हत्या से कभी प्रशंसा नहीं मिलेगी ऐसा नहीं हो सकता, चोरी से सुकून नहीं खरीदा जा सकता इसलिए हमें अपने ज्ञान के प्रकाश को बढ़ाना होगा दुसरों के उन्नति का साधन एकत्र करना होगा,गरीबों में ज्ञान का विस्तार करना होगा,धनी लोगों को सही राह दिखाना होगा जैसे पौधे को बढ़ने के लिए जल,मिट्टी,वायु आदि पदार्थो की आवश्यकता होती है और वो अपने नियमानुसार ही उसको ग्रहण करता वैसे ही हम मनुष्यों को भी आवश्यकतानुसार ही प्रकृति का क्षरण करना होगा क्योंकि जीवन का श्रेष्ठ सौभाग्य यही है दुखी,कोढ़ी,बीमार,पागल ब्यक्ति की सेवा ही मुक्ति का सही मार्ग है और यही हमारे मुक्ति का सही माध्यम है,मेरे शब्द थोड़े अटपटे हैं किंतु मैं फिर दुहराता हूँ कि हमारा यही सौभाग्य है कि भिन्न-भिन्न रूपों में विराजमान जरूरत मंदो की सेवा करें और प्रभुत्व से किसी का कल्याण होगा ये धरना मन से निकाल दें हम मुक्त हो जाएंगे ।।
अभिजीत कुमार "मुन्ना"
बेगूसराय
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