बिहार : अखिल भारतीय खेत मजदूर सभा का 6 ठा राष्ट्रीय सम्मेलन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 20 नवंबर 2018

बिहार : अखिल भारतीय खेत मजदूर सभा का 6 ठा राष्ट्रीय सम्मेलन

  • मोदी राज में मनरेगा और समाज कल्याण कारी योजनाओं को कमजोर किया गया : ज्यां ड्रेज.
  • खेग्रामस के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां ड्रेज ने कहा - क्रांति और रोजी-रोटी की लड़ाई साथ लड़नी होगी
  • छठे राष्ट्रीय सम्मेलन में महासचिव धीरेन्द्र झा की रिपोर्ट पर बहस - मजदूर विरोधी और कारपारेटपरस्त है मोदी सरकार.
  • 13 सदस्यीय अध्यक्षमंडल की अध्यक्षता में गांधी मैदान में खेग्रामस का राष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन.


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जहानाबाद 20 नवंबर 2018 , अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के 6 ठे राष्ट्रीय सम्मेलन के खुले सत्र को प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर ज्यां ड्रेज ने संबोधित किया. खुले सत्र में भाकपा-माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य, वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य, पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद, भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, विधायक महबूब आलम सहित कई वरिष्ठ नेता उपस्थित थे. खुले सत्र के उपरांत 13 सदस्यों की अध्यक्षता में सम्मेलन की कार्रवाई आरंभ हुई. अध्यक्षमंडल में यूपी से श्रीराम चौधरी, तमिलनाडु से बालासुंदरम, आशा देवी, शनिचरी देवी, बिहार खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, पश्चिम बंगाल से देव जानकी, कार्बी से प्रतिमा, झारखंड से मीना दास, पंजाब से हरविंदर , विधायक सत्यदेव राम, तिरूपति गोमांगों, अर्जुन राव, गुजरात से लक्ष्मण भाई छगन भाई शामिल हैं. संचालन समिति में सजल अधिकारी, अरूप मोहंती, अजय कुमार, बसवा प्रसाद, अनिल पासवान, पंकज सिंह, दिलीप सिंह, कल्याण भारती, परमेश्वर भारती, रसीदा खातून व उपेन्द्र पासवान शामिल हैं. खुले सत्र को संबोधित करते हुए प्रोफेसर ज्यां ड्रेज ने कहा कि मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, जनवितरण प्रणाली आदि योजनायें भारी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं. सत्ता में जो लोग बैठे हैं उनकी प्रतिबद्धता मजदूरों-आम लोगों के प्रति नहीं बल्कि कारपोरेटों के प्रति है. मोदी राज में तो इन योजनाओं की हालत और भी खराब हुई है और इसलिए आज पूरे देश में भूख से लगातार मौतें हो रही हैं. गरीबों-आदिवासियों-दलितों को अनाज चाहिए, लेकिन उनके घरों में अनाज नहीं है. कम से कम दो शाम खाना बन सके इसकी तो गारंटी होनी चाहिए. खाने की सुरक्षा का सवाल सबसे महत्वपूर्ण सवाल है. इसीलिए खाद्य सुरक्षा कानून लाया गया था लेकिन इसके नाम पर मजाक हुआ. हम इस सवाल पर गरीबों को गोलबंद कर सकते हैं. हमें इसको लेकर उनके बीच गंभीरता से काम करने की जरूरत है. 

जनवितरण प्रणाली में जो व्यापक भ्रष्टाचार है, उसे खत्म करना होगा. डीलर से लेकर उपर बैठे लोग इस योजना में गरीबों के लिए आ रहे अनाज-राशन को खा जा रहे हैं. इसलिए इन बिचौलियों को इन योजनाओं से बाहर करना होगा. जनवितरण प्रणाली पूरी तरह सेल्फ मैनेजमंट से चलाना चाहिए. न केवल जनविरण प्रणाली बल्कि आर्थिक व्यवस्था में भी सेल्फ मैनेजमेंट के नियम  को  लागू करने के लिए संघर्ष करना चाहिए. इसी से चोरी रूक सकती है. लेकिन हमें कहा जा रहा है कि अपना मत सोचो, यह प्रवृति बहुत खतरनाक है. रोजगार गारंटी कानून को लेकर खेग्रामस के राजामुंद्री सम्मेलन में काफी बात हुई थी. इसने मजदूर वर्ग को संगठित करने का मौका दिया. आज 12 साल बाद देखते हैं तो कुछ रोजगार मिंला है लेकिन जिस तरह कानून लागू होना था, वह बहुत दूर की बात है. लोगों को आज भी संघर्ष करना पड़ता है. न्यूनतम मजदूरी तो शायद ही कहीं मिल रही है. जो लोग कानून लागू करने वाले हैं वे बेहद मजदूर विरोधी हैं. ठेकेदार-राजनीतिक नेता के गठजोड़ को तोड़ना होगा. जहां लोग मनरेगा को लेकर संगठित होने की कोशिश की, वहां बेहद दमन हुआ है. इसलिए हमें वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा, भ्रष्टचार आदि सवालों पर व्यापक आंदोलन छेड़ना होगा. सामाजिक बदलाव-क्रांति व रोजी-रोटी दोनों सवालों को उठाना हागा. यह खुशी की बात है कि आइरला इन दोनों सवालों पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है.

खुले सत्र के उपरांत खेग्रामस के महासचिव कॉ. धीरेन्द्र झा ने आज की राजनीतिकि परिस्थिति पर संगठन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. रिपोर्ट में मोदी राज में दलित-मजदूरों की रोजी-रोटी, वास-चास, शिक्षा-स्वास्थ्य, प्रवासी मजदूरों पर हमले, बरसो से जमीन के छोटे टुकड़े पर बसे गरीबों को उजाड़ने की चल रही लगातार कोशिशों, आदिवासियों-वनवासियों के अधिकारों पर लगातार हो रहे हमले आदि प्रश्नों को उठाया गया है. इसके साथ-साथ विगत 3 वर्षों में संगठन के कामकाज की समीक्षा भी की गई है और देश के तमाम राज्यों में आंदोलन व संगठन को फैलाने पर जोर दिया गया है. नोटबंदी से तबाह हुए खेती किसानी व असंगठित क्षेत्र में नष्ट हुए दसियों करोड़ रोजगार, मजदूरों व किसानों के दरिद्रीकरण, मनरेगा में काम व भुगतान को बाजार की दैनिक मजदूरी से काफी कम निर्धारित करने की साजिश, काम नहीं मिलने पर मजदूरों को लिए बेरोजगारी भत्ता आदि के भी सवाल उठाए गए हैं. महासचिव के प्रतिवदेन पर कई प्रतिनिधियों ने बहस में हिस्सा लिया और अपने अनुभवों को शेयर करते हुए रिपोर्ट को समृद्ध किया. सम्मेलन से 10 सूत्री प्रस्ताव भी पारित हुआ और आने वाले दिनों में संघर्ष को मजबूत करने पर जोर दिया गया. खेत व ग्रामीण मजदूरों के सम्मेलन ने आने वाले 29-30 नवंबर को दिल्ली में आयोजित किसान महापड़ाव के प्रति अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए उसे अपना समर्थन दिया है. 8-9 जनवरी 2019 को मजदूर वर्ग की देशव्यापी हड़ताल में बढ़-चढ़कर भाग लेने और फासीवादी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया. 

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