विजय सिंह ,आर्यावर्त डेस्क ,बेंगलुरु , 25 नवंबर,2018, अक्सर जब हम किसी चाय की दुकान पर जाते हैं तो चाय वाले को छोटा ही समझते, हैं और छोटा ही क्यों ,हम तो उन्हें कम पढ़े लिखे, अनपढ़ या गंवार तक समझने से परहेज नहीं करते. अब वातानुकूलित दफ्तरों में काम करने ,कार पर चलने और संभ्रांत जीवन जीने की शैली ने हमें ऐसे ही आवरण से घेर रखा है पर कई दफ़ा दावं उल्टा भी पड़ जाता है.ऐसा ही एक वाकया मुंबई में हुआ. पिछले दिनों अपने व्यस्ततम दिनचर्या से फुर्सत के कुछ पल निकाल कर एक मीडिया कंपनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी जुहू चौपाटी में सागर की लहरों के संग शाम बिताने पहुंची.चौपाटी पहुंचते ही उन्हें चाय की तलब हुई .उन्होंने एक चाय वाले से एक कप चाय ली और खुल्ले नहीं होने की वजह से 500 रुपये का नोट उसे थमाया. चाय वाले ने तुरंत खुल्ले नहीं होने का राग अलापा.अब कोई समाधान होता न देख उन्होंने चाय वाले से 5 सिगरेट देने को कहा,अतिरिक्त आय होती देख चाय वाले ने तुरंत भीतरी जेब में हाथ डाला और 100-100 रूपये के कई नोट निकाले. अधिकारी ने उससे पूछा -"जब तुम्हारे पास इतने सारे खुल्ले नोट थे ,तो तुमने पहले इंकार क्यों किया ? बस एक गर्वीले मुस्कान के साथ उसने जवाब दिया- "मैडम,700 रूपया हफ्ता देना पड़ता है,इसलिए नकद रुपये छुपा कर रखता हूँ.मेरा इस "बीच" पर प्रतिदिन का 1500- 2000 रुपये की कमाई है.इंसान बिज़नेस में शिफ्ट करता रहेगा तो डूब जायेगा. आज चाय,कल चना,परसों पाव भाजी बेचेगा तो सक्सेस कैसे मिलेगा.एक ही चीज करो और लगे रहो.सब्र और शांति नहीं होगा जिसके पास, वह बिजनेस नहीं कर पायेगा.सब्र रखने का और शांति कमाने का.अपने स्पीड से जाने का.चाय हो या कपडा,बिज़नेस तो बिज़नेस है.." हर्षमिश्रित स्तब्ध अधिकारी सोचने लगी--- "यार, मैंने तो चाय के लिए 500 रुपये का खुल्ला भर माँगा था...".ये तो पूरा बिज़नेस मॉडल ही समझा गया.
* यह एक सच्ची घटना है और इसका किसी अन्य "चायवाला " या राजनीति से कोई
सम्बन्ध नहीं है.
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