भाजपा के खिलाफ बन रही विपक्षी दलों की एकता में विश्वसनीयता होनी चाहिए.विपक्षी दलों से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वार्ता के लिए तीन सदस्यों की कमिटी का गठन.पाला बदलने वाली पार्टियां पहले देश की जनता से माफी मांगें.आशाकर्मियों के आंदोलन के साथ भाकपा-माले की एकजुटता, सरकार उनकी मांगों को अविलंब पूरा करे.
पटना 21 दिसंबर 2018, भाकपा-माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम देश के लिए अच्छे संकेत हैं. खास तौर पर छतीसगढ़ में जहां सबसे ज्यादा दमन था, जल-जंगल-जमीन कारपोरेट घरानों के हवाले किए जा रहे थे और चुनाव के वक्त ‘अर्बन नक्सल’ कहकर लोगों को आतंकित किया जा रहा था, यूपी के मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार के दौरान लगातार सांप्रदायिक जहर उगल रहे थे, दो जियो के अधिकारी स्ट्रांग रूम में बैठे हुए थे, इन सब के बावजूद ‘ग्रीन हंट’ की लेब्रोरटरी में भाजपा का पूरी तरह सफाया हो जाना पूरे देश के लिए अच्छे संकेत हैं. मध्यप्रदेश व राजस्थान में भी पूरी कोशिशों के बावजूद भाजपा को निराशा हाथ लगी. भाजपा द्वारा पूर्वी भारत को हथिया लेने के अभियान को मिजोरम ने रोक दिया. तेलंगाना में भी यही हाल रहा. यह लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए अच्छे संकेत हैं. अब हम सबको 2019 की तैयारी करनी है और छत्तीसगढ़ की ही तर्ज पर पूरे देश से भाजपाइयों का सफाया कर देना है.
भाजपा ने देश के आदिवासियों के साथ मजाक किया. इसलिए आज पूर्वी भारत हो या छत्तीसगढ़, आदिवासी समुदाय ने हर जगह भाजपा को सबक सिखाया है. एक बार फिर पश्चिम बंगाल में भाजपा रथयात्रा के नाम पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाना चाहती है. राजनीतिक प्रचार के नाम पर समाज को बांटने व हिंसा फैलाने का हम तीखा प्रतिरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि इस जीत का श्रेय कांग्रेस को जाता है. यह कहना सही नहीं है. अगर हम इन चुनाव परिणामों पर बारीक नजर डालें तो पता चलेगा कि यह कांग्रेस के हिंदुवादी रवैये के कारण नहीं बल्कि छात्र, बेरोजगार, कम तनख्वाह पाने वाले लोगों, दुव्र्यवहार के शिकार नौजवान, महिलाएं, दलित, आदिवासी, किसान, मजदूर और मध्यवर्ग के बीच बन रही एकता व संघर्श के कारण संभव हो सका है. मंदसौर गोलीकांड के बाद देश के किसान अपने अधिकारों के लिए लगातार लड़ रहे हैं और दिल्ली में दो-दो बार उन्होंने विशाल प्रदर्शन किया. किसानों की यह लड़ाई अब राजनीतिक आयाम ले चुका है. इनके अलावा देश के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सिविल सोसाइटी, विश्वविद्यालयों ने हिम्मत दिखलाई और मोदी के फासीवादी रवैये का डटकर विरोध किया. यही वजह है कि आज कई राज्यों में भाजपा की पराजय हुई है.
विगत 18-20 दिसंबर को आरा में केंद्रीय कमिटी की बैठक हुई. जिसमें हमने तय किया कि जनता के प्रतिरोध के इस तेवर को बरकरार रखना है. भारत के मजदूर वर्ग ने 8-9 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल का फैसला किया है. हम इसका समर्थन करते हैं. आज देश में बेरोजगारी चरम पर है. फरवरी महीने में छात्र-नौजवानों का एक बड्ा मार्च होगा. हमने तय किया है कि एआईपीएफ के जरिए 2019 के लिए एक नागरिक चार्टर तैयार किया जाएगा. बिहार में एक दिसंबर से आशा बहनों की हड़ताल है. मिड डे मिल वर्कर हों या झारखंड में पारा टीचर, सब के सब आंदोलित हैं. अब तक 7 हड़ताली पारा टीचर की मौत की खबर आ चुकी है. बिहार में आशा की जो हड्ताल है, वह बेहद व्यापक है. उनकी एकता व हिम्मत को सलाम करते हैं. आज भी उनके द्वारा पूरे राज्य में सड़क जाम किया गया है. 2015 में आशा आंदोलन के बाद नीतीश कुमार ने वादा किया था कि मानदेय के संबंध में एक कमिटी का गठन होगा. लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है. इसके कारण आशाओं का आक्रोश चरम पर है. मानेदय अथवा ठेके पर बहाल लोगों के साथ जबरदस्त विश्वासघात हो रहा है. इसके खिलाफ हमें चैतरफा संघर्श छेडना होगा.
बिहार व झारखंड. के लोगों की चाहत है कि विपक्ष की एक व्यापक एकता बने. इस दिशा में एक कदम आगे बढ़त हुए हमने विपक्षी दलों से वार्ता के लिए बिहार व झारखंड में अलग-अलग कमिटी का गठन किया है. बिहार की कमिटी में पोलित ब्यूरो सदस्य काॅ. धीरेन्द्र झा व राजाराम सिंह तथा केडी यादव शामिल हैं. झारखंड की कमिटी में वहां के राज्य सचिव काॅ. जनार्दन प्रसाद व पूर्व विधायक विनोद सिंह शामिल रहेंगे. यह कमिटी विपक्षी दलों से बातचीत के लिए पार्टी की ओर से अधिकृत है. असम में नागरिक संशोधन ने विभाजन पैदा कर दिया है. अब तक पांच लोगों की हत्या कर दी गई है, कैंप में प्रताड़ित किया जा रहा है. आज देश की नागरिकता की परिभाषा बदल देने की कोशिश हो रही है. इसके खिलाफ असम के सभी वामपंथी दल 28 दिसंबर को दिल्ली पहुंचेंगे. जो पार्टियां भाजपा छोड़कर विपक्ष के खेमे में आ रही है, उन्हें सबसे पहले देश जनता से माफी मांगनी चाहिए. एनडीए में रहते हुए इन्होंने एक बार भी सरकार की नीतियों का विरोध नहीं किया. ऐसे अवसरवादी लोगों को साथ लेकर भाजपा के खिलाफ मजबूत लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है. नीतीश कुमार के विश्वासघात से हम सब परिचित हैं और उसे झेल रहे हैं. इसलिए इस मामले में हम सबको सचेत रहने की आवश्यकता है. संवाददाता सम्मेलन में काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा व राजाराम सिंह, विधायक दल के नेता महबूब आलम तथा असम से रूबुल शर्मा उपस्थित थे.
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