माले के दिवंगत महासचिव काॅ. विनोद मिश्रा स्मृति दिवस पर भाजपा को देश की सत्ता से उखाड़ फेंकने का ंसकल्प18-20 दिसंबर तक आरा में माले की केंद्रीय कमिटी की होगी बैठक.
पटना 18 दिसंबर 2018, भाकपा-माले के दिवंगत महासचिव काॅ. विनोद मिश्र के 20 वें स्मृति दिवस को आज पूरे देश में भाकपा-माले ने संकल्प दिवस के रूप में मनाया और इस अवसर पर केंद्र की सत्ता से फासीवादी भाजपा को उखाड़ फेंकने व नए भारत के निर्माण का संकल्प लिया. इस मौके पर आरा में माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने क्रांति पार्क का लोकार्पण किया और उसे भोजपुर की जनता के नाम समर्पित किया. क्रांति पार्क में भोजपुर आंदोलन के शिल्पीकार मास्टर जगदीश प्रसाद, काॅमरेड रामनरेश राम, काॅमरेड रामेश्वर यादव, भाकपा-माले के दूसरे महासचिव काॅ. सुब्रत दत्ता व काॅ. विनोद मिश्र की मूर्ति की स्थापना की गई है. पार्क के लोकार्पण के पूर्व संकल्प मार्च का भी आयोजन किया गया. आज शाम से ही आरा में पार्टी की केन्द्रीय कमिटी की बैठक भी आरंभ हो गई. संकल्प मार्च में माले महासचिव के अलावा पार्टी के पोलित ब्यूरो, केंद्रीय कमिटी, राज्य कमिटी और जिला स्तर के नेतागण शामिल थे.
राज्य के दूसरे हिस्सों में भी संकल्प दिवस का आयोजन किया गया. राज्य कार्यालय पटना में काॅ. विनोद मिश्र को श्रद्धांजलि देते हुए समकालीन लोकयुद्यद्ध के संपादक प्रदीप झा ने कहा कि आज फासीवादी मोदी शासन के खिलाफ मोर्चेबंदी और तीखी हो गई है. जहां एक ओर फासीवादी शक्तियों ने अपना हमला तीखा कर दिया है, वहीं हम देख रहे हैं कि फासीवाद और लोकतंत्र के बीच इस महासंग्राम में जनता भी बड़ी दृढ़तापूर्वक अपनी दावेदारी पेश कर रही है. चरम तीखे आर्थिक संकट के कमरतोड़ बोझ को, भारतीय राजसत्ता की दमनकारी शक्ति को, मीडिया के भटकाने वाले प्रचार और साम्प्रदायिक भीड़-हत्यारे गिरोहों की दमघोटू हिंसा को धता बताते हुए जनता अत्यंत प्रेरणादायक रूप से जवाबी प्रहार कर रही है. जन-प्रतिरोध के बढ़ते संकेत और बढ़ती शक्ति अब तक भाजपा शासन में रहे तीन राज्यों में भाजपा की पराजय में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं. भाजपा को छत्तीसगढ़ में तो करारी हार मिली और लगभग सफाया ही हो गया, और राजस्थान में उनको बड़ा धक्का लगा है और मध्य प्रदेश में भी जोरदार चोटें खानी पड़ी हैं. अन्य वक्ताओं ने कहा कि 1970 के तूफानी दशक में भाकपा (माले) ने लोकतंत्र के लिये संग्राम के दौर में ही खुद को पुनरुज्जीवित किया था. इमरजेन्सी के दौर में चले बर्बर राज्य दमन का मुकाबला करते हुए भाकपा (माले) देश के सबसे दबे-कुचले लोगों के अधिकारों एवं सम्मान के लिये लड़ाई में अविचल डटी रही. 1990 के दशक में जब भाजपा ने अपना फासीवादी एजेन्डे को अंजाम देना शुरू किया तो उसके खिलाफ सशक्त जवाबी हमले की तैयारी करने के लिये हमारी पार्टी खुलकर सामने आ गई. बाबरी मस्जिद के शर्मनाक विध्वंस के बाद दिसम्बर 1992 को कोलकाता में आयोजित भाकपा (माले) के पांचवें महाधिवेशन से लेकर छह वर्ष बाद लखनऊ में आयोजित केन्द्रीय कमेटी की बैठक तक, जब उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली, कामरेड विनोद मिश्र ने भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के सामने खड़े इस सबसे बड़ी चुनौती का मुकाबला करने में अपनी समूची ऊर्जा और अपना सारा ध्यान लगा दिया था. आज हमें भाकपा (माले) की इसी गौरवमय विरासत को अपनी पूरी शक्ति से बुलंद करना है और फासीवाद को परास्त करने तथा भारत को जनता के लोकतंत्र के रास्ते पर आगे बढ़ाने के कार्यभार में अपना सर्वस्व योगदान करना होगा. इस मौके पर पार्टी की राज्य कमिटी के सदस्य कुमार परवेज, संतन कुमार, संतोष आर्या, सुधीर कुमार, विभा गुप्ता, ब्रजेश कुमार, युगल किशोर शर्मा, दिनेश कुमार, निखिल आदि लोग उपस्थित थे.
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