रविवार को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने बिहार में दो विधायकों वाली पार्टी लोजपा के सामने घुटने टेक दिये। दो सांसदों वाली पार्टी के सामने पार्टी के शहंशाह ने पहले ही हथियार डाल दिये थे। रविवार को औपचारिक घोषणा हो गयी सीटों के बंटवारे की। अखाड़ा और पहलवान पर मंथन बाद में होगा। रामविलास पासवान भाजपाई भैंस पर ‘जोंक’ की तरह चिपका दिये गये, जिस पर सवार होकर राज्यसभा में जाएंगे। वैसे पुशपति पारस पहले से ही भाजपा को चमोकन के तरह ‘चूस’ रहे हैं। हरे लगे न फिटकीरी, सब कुर्सी घर में। रामविलास की किस्मत देखकर हमारी भी ‘अंतरात्मा’ जाग गयी। तीन प्रतिशत वाले पासवान को भाजपा माथे पर बैठा कर घुम रही है तो 15 फीसदी वाला अहीर पीछे काहे रहेगा। जिन अहीरों को भाजपा अभी ढो रही है, वे अहीर से ज्यादा भूमिहार की बात कर रहे हैं। यह तो हमारा प्लस प्वाइंट है कि हम अहीरवाद के लिए ‘बदनाम’ रहे हैं। भूमिहार टाईप अहीरों से ज्यादा हम लाठी में घी पिलाते रहे हैं। यह सब सपने का दौर था। थोड़ी नींद खुली, फिर सपना शुरू हो गया। हम लाठी लेकर भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय पहुंच गये। एकदम जाना-पहचाना जगह लग रहा था। सीधे अमित शाह के चैंबर के पास पहुंचे। भूपेंद्र यादव व संजय मयूख दरबानी कर रहे थे। थोड़ी देर ठहरने के बाद हमें अंदर जाने मौका मिला। पिछला विधान सभा चुनाव के पहले अमित शाह ने पटना के गेस्ट हाउस में हमारे कैमरे से खींची गयी तस्वीर को डिलीट करवा दिया था। इसलिए इस बार हम मोबाइल पैकेट में ही रखे रहे। अमित शाह ने लंबा इंटरव्यू लिया। जाति से लेकर जातीय समीकरण तक से जुड़े सवाल पूछे। सीट के बारे में भी पूछा। हमने कहा कि हम काराकाट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। हमने जातीय समीकरण बताया। हमने समझाया कि वहां पर ‘भूराबाल’ का पनपना संभव नहीं है। चुनना है आपको लाठी (अहीर) और खुरपी (कोईरी) में, तो हमको चुन लीजिए। हमारा दावा शहंशाह को पंसद आया। भूपेंद्र यादव व संजय मयूख ने भी सहमति जतायी और टिकट पक्का हो गया। सपना आगे बढ़ रहा था। भूपेंद्र यादव हमें लेकर हवाई जहाज से दिल्ली से पटना आये और पटना से प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय को लेकर काराकाट पहुंचे। हमने बिक्रमगंज में अहीरों की एक बैठक बुलायी। धीरे-धीरे बात फैल गयी कि वीरेंद्र यादव को भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया है। भीड़ बढ़ने लगी। लेकिन ये क्या, हम अपने समर्थन के लिए भीड़ बुलायी थी, लेकिन भीड़ हमारे खिलाफ ही खड़ी हो गयी। भाजपा के नाम पर सब भड़क गये। माहौल बिगड़ते देख हमने भूपेंद्र यादव व नित्यांनद राय को निकल जाने का इशारा किया। थोड़ी देर भीड़ को समझाने की हम कोशिश करते रहे कि भीड़ टूट पड़ी और अहीरों ने चुनाव लड़कर सांसद बनने की इच्छा धो डाली। हम कराहते रहे और भीड़ हाथ साफ करती रही। तब तक नींद टूट गयी। इस प्रकार एक सपने का अंत हुआ।
--वीरेंद्र यदव--
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