दिव्य शब्द का मानव शरीर धारण करना व इस पृथ्वी पर मानव जन्म लेना मसीही विश्वासियों के लिए विज्ञान-भूगोल के ज्ञान से परे धार्मिक आस्था की घटना है। दरिद्रों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम मसीही विश्वासियों की प्रमुख पहचान व पवित्रता की निशानी है। असहाय और दरिद्रों के प्रति आदर भाव रखना और उनकी अस्मिता को स्वीकार करना, उनके प्रति हमारे प्रेम की पहली सीढ़ी है। गोशाला में चरनी पर लेटे बालक यीशु हमें इसे पहचानने की दृष्टि प्रदान करते हैं
हमारी बुराईयों को खत्म करने के लिए ईश्वर ने खुद को विनम्र किया, खुद को रिक्त कर दिया, एक गरीब, असहाय बच्चे का रूप लिया, जो एक गोशाले में जन्मे क्योंकि उन्हें मनुष्यों के बीच पैदा होने की जगह नहीं मिल सकी। वह शरणार्थी बने। क्रिसमस के पुण्यकाल में दुनिया भर में गरीबों और बेघर लोगों की देखभाल करने और उनके साथ साझा करने की भावना नजर आती है। पहाड़ी उपदेश के दौरान ईसा ने कहा- धन्य है वे जो मेल कराने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे। धार्मिक कट्टरपंथ, पूर्वाग्रह, घृणा एवं हिंसा कोई भी धर्म का आधार नहीं बन सकता है। दूसरों की गलतियों को माफ करना ईसाई धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत है। ईश्वर के निकट जाने के लिए दूसरों की गलतियों को हृदय से माफ करना नितांत आवश्यक है। ईसा ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर। ईसा के अनुसार दूसरों को माफ करने के लिए कोई शर्त नहीं रखी जाना चाहिए।
मुक्ति प्राप्त करना या ईश्वर के राज्य को प्राप्त करना मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है। जबकि धार्मिकता उस मंजिल तक पहुंचने का मार्ग है। धार्मिकता का मतलब ईश्वर, सृष्टि और मानव के साथ सही संबंध रखना है। इसी धार्मिकता में शांति का निवास है। जो प्रवृत्तियां, भावनाएं या कार्य ईश्वर के राज्य की ओर ले जाते है, वे शांति का मार्ग प्रशस्त करते है। जबकि अशांत हृदय बहुधा-भोग, विलास, ऐशो-आराम, धनार्जन या यश प्राप्ति जैसे नश्वर वस्तुओं की खोज में संलिप्त रहता है, जिनसे मात्र क्षणिक सुख ही मिलता है। इस तरह की खोज से उसकी बैचेनी रुकती नहीं, बल्कि बढ़ती ही जाती है। मानव हृदय में ऐसी बैचेनी बुरी आदतों जैसे मदिरा पान, नशीली पदार्थो का सेवन, अश्लीलता आदि को जन्म देती है। जिससे मानव मर्यादा की हानि होती है। परिवार दूषित होने लगता है और मानव समाज बिगड़ने लगता है। इस तरह मानव ईश्वर प्रयोजित मंजिल की राह से भटकने लगता है और शांति की प्राप्ति की उसके जिए आकाश के तारे तोड़ने जैसी बन जाती है। यीशु मसीह का जन्म सारी मानव जाति के उद्धारकर्ता के रुप में हुआ है। उनके जन्म के विषय में कई सौ साल पहले भविष्यवाणी की गयी थी। नबी इसायस के ग्रंथ में लिखा है, ‘हमारे लिए एक पुत्र उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया और प्रभुता उसके कंधे पर होगी और उसका नाम अद्भूत कार्य करने वाला, पराक्रमी परमेश्वर अनंतकाल का पिता और शांति का राजकुमार रखा जायेगा‘। कुंआरी मरियम से यीशु के जन्म के विषय में पहले से भी भविष्यबाणी की गयी थी। नबी इसाईयत के ग्रंथ में ही लिखा है, ‘‘इस कारण प्रभु एक चिरंजिव देगा? सुनो एक कुंआरी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी। इम्मानुएल का अर्थ है-ईश्वर हमारे साथ है।
बेशक, क्रिसमस एक ऐसा पर्व है जो हमें गरीबों, बेघर, निराश्रित, अनाथ, शरणार्थियों और अन्य कमजोर लोगों के प्रति अपना प्यार व चिंता प्रदर्शित करने का सबक देता हैं। क्रिसमस का जुड़ाव जहां प्रभु यीशु के जन्मदिन से है तो उनके संदेशों से भी है, सांता से है तो उनके उपहारों से भी, क्रिसमस ट्री से है तो उसकी महत्ता से भी, पारिवारिक ताने-बाने से है तो उनकी अनिवार्यता से भी और प्रकृति से है तो उसके व्यापक रूप को जानने के लिए भी है। मतलब साफ है क्रिसमस का त्योहार प्रेम व मानवता का संदेश तो देता ही है साथ ही यह भी बताता है कि खुशियां बांटना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। सांता क्लॉज द्वारा बच्चों को उपहार बांटना इसी बात का प्रतीक है। जब सांता क्लॉज की बात चलती है, तो मन में एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है जो दानशील है, दयालु है और सबके चेहरे पर खुशियां बिखेरने के लिए खासतौर पर नॉर्थ पोल से चलकर आता है। सांता केवल एक धर्म विशेष के नहीं बल्कि पूरी मानवता के जीवंत प्रतीक है। सांता का यह रूप हर किसी में दिखाई दे सकता है, बस जरूरत है उसे पहचानने की। अपने बच्चों व परिवार से ही इन खुशियों को बांटने की कोशिश करें, फिर देखिए खुशियां खुद-ब-खुद आपको ढूंढ लेंगी।
क्रिसमस के इस त्योहार में वह तमाम खुशियां शामिल हैं, जिनका इंतजार अमूमन हर व्यक्ति को अपने जीवन में होता ही है, तभी तो पूरे साल के इंतजार में से कुछ महीने सिर्फ इस त्योहार की तैयारियों में ही निकल जाते हैं। कुल मिलाकर क्रिसमस सुख और शांति का संदेश देता है। जिसमें उपस्थित हर चीज हमें सिर्फ खुशियां मनाने और खुशियां बांटने के लिए प्रवृत्त करती है। जिस तरह क्रिसमस के सितारे को पथप्रदर्शक माना जाता है। उसी तरह किसी भटके पथिक को राह दिखाकर देखिए, किसी जरूरतमंद की थोड़ी ही सही लेकिन जरूरत को पूरा करके तो देखिए इसके एवज में मिलने वाली खुशियां आपको ताउम्र सुखी रखने के लिए काफी है। इसलिए तो क्रिसमस को खुशियों का खजाना कहा जाता है, तो फिर आप भी खुशियों को भर लीजिए अपनी झोली में...।
खुशियों को अपनी पोटली में भरकर लाने वाला एक ऐसा फरिश्ता जो कठिन से कठिन मौसम में भी क्रिसमस की सुबह बच्चों के लिए विशेष खुशियां लेकर आता है। बच्चों की आकांक्षाओं से तो हम भली-भांति परिचित हैं, इसलिए वह सांता हममें से ही हर किसी एक के मन में छिपा होता है। कभी हमारे दादा-दादी के रूप में तो कभी नाना-नानी, मौसी, मामा, चाचा के रूप और कभी माता-पिता के रूप में मन के भीतर छिपा यह सांता अपने बच्चों को जीवनभर खुशियां देता ही रहता है। जिस तरह सांता बिना किसी भी स्वार्थ के सबके जीवन में खुशियां लेकर आता है। उसी तरह हमें भी उससे सबक लेना चाहिए कि हम किसी भी तरह अगर एक इंसान को भी खुशी दे सकें तो शायद हम भी इस क्रिसमस को सही मायने में मनाने में कामयाब हो सकेंगे। प्रभु यीशु का जन्म ही उनके दयालु स्वभाव को जानने के लिए हुआ है। आज के समय में स्वार्थ, लोभ और हर प्रकार के पाप व बुराइयों का बोलबाला है। इन परिस्थितियों में क्रिसमस हमें मसीह के इस दुनिया में आने के कारणों का स्मरण दिलाता है। यीशु इस जगत में सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने के लिए आए थे। इसलिए क्रिसमस के इस अवसर पर इसे आत्मसात करने की जरूरत है। मदर मैरी और यीशु हमारे लिए वो उदाहरण हैं, जो हमें विपरीत परिस्थितियों में भी जीने की राह दिखाते हैं। कहा जा सकता है मानव इतिहास की एक अनमोल और पवित्र घटना है यीशु का जन्म। या यूं कहे ख्रीस्त-जयंती अनादि शब्द के कुंवारी मरियम के गर्भ में देहधारी बनने और मनुष्य की तरह एक मां से जन्म लेने का रहस्य प्रकट करती है, जो शब्द अनादि काल से ईश्वर के साथ था, ईश्वर था और जिसके द्वारा सारी सृष्टि की रचना हुई, वह निर्धारित काल में इस्राइल देश के यहूदी समाज में मनुष्य बना, जो ईश-पुत्र था, वह मानव पुत्र बना। अपना ईश्वरीय वैभव छोड़ कर एक साधारण मनुष्य की तरह एक निर्धन परिवार की परिस्थितियों में पला।
भारतीय संस्कृति में जिस तरह पेड़-पौधों की पूजा की जाती है उसी तरह का पर्यावरण प्रेम क्रिसमस ट्री के साथ भी जुड़ा है। क्रिसमस आयोजन में सबसे महत्वपूर्ण है क्रिसमस ट्री। क्रिसमस ट्री के लिए एक ऐसा पेड़ चुना जाता है जो हमेशा हरा रहता है। प्राचीन रोमन विश्वास के अनुसार यह पेड़ जीवन का प्रतीक माना जाता है। मिस्र और चीन से लेकर पूरे योरपीय देशों में इसके हरे रंग को नैसर्गिक जीवन का प्रतीक माना जाता है। जिसका वैज्ञानिक आधार भी है, जो पेड़ ऐसे प्रतिकूल मौसम में बर्फ से ढंके होने के बावजूद हरा बना रहता है, वह वास्तव में जीवन का ही संदेश देता है। क्रिसमस पारिवारिक जुड़ाव की भी एक अद्भुत मिसाल है। देश-दुनिया के कोनों में काम करने वाले ईसाई परिवार के सभी सदस्य इस त्योहार पर एकसाथ होने की पूरी कोशिश करते हैं। मीलों दूर का सफर करके वे अपने घर पहुंचते हैं क्योंकि एक-दूसरे के प्रति प्रेम और जुड़ाव का संबंध उन्हें अपनी ओर खींचता है। कम से कम त्योहार के बहाने ही सही लेकिन एक छत के नीचे सबके साथ अपने सुख-दुख बांटते हुए भोजन करना, पूरे साल के लिए लोगों के मन में एक खास जगह बना लेता है। इन अनुभवों और यादों के सहारे वे फिर मिलने के इंतजार में जुट जाते हैं।
क्रिसमस का संबंध प्रकृति से भी जुड़ा है। दरअसल 16 दिसंबर के बाद दिन बड़े होने लगते हैं और 25 दिसंबर को रात-दिन बराबर होते हैं। इसलिए प्राचीन रोम में 25 दिसंबर को ‘सूरज की विजय का दिन‘ मनाया जाता था। जिसका अर्थ है बड़े दिनों की शुरुआत और मौसम साफ होने का संदेश। भयानक शीत को चीरता हुआ सूर्य ऊपर चढ़ने लगता है और प्रकृति के लोगों को धीरे-धीरे जाड़ों के दिनों से राहत मिलने लगती है। हो जो भी लेकिन सच तो यही है ईश्वर के लिए सब कुछ संभव है। सवाल तो यह है कि मानव-उद्धार का कार्य ईश्वर अपने महिमामय रूप में संपन्न कर सकता था, तो उसके मनुष्य बनने का क्या औचित्य है? क्योंकि उद्धार कार्य पतित मानव स्वभाव से ग्रसित किसी मनुष्य से संभव नहीं था। इसीलिए पतित मानव स्वभाव को मर्यादित करने के लिए तथा विलुप्त जीवन लक्ष्य को फिर से वापस पानेे के लिए एक उन्नत मानव स्वभावधारी मनुष्य की ही जरूरत थी। अतः इसी ईश्वरीय प्रतिज्ञा के तहत समय पूरा होने पर अनादि शब्द ने कुंवारी मरियम से जन्म लिया। मानव की खोयी हुई मर्यादा को मर्यादित करने और मनुष्य की पहुंच से परे अनंत जीवन की पुनः प्राप्ति के लिए वह मानव बना। उसने चरनी से ले क्रूस-मरण तक पाप के सात दुष्परिणामों को अपने ऊपर लेकर सांप का सिर कुचल डाला। मानव बनकर उसने हर युग के प्रत्येक व्यक्ति से तादात्म्य स्थापित किया है, चाहे वह किसी भी राष्ट्र, जाति, धर्म, वर्ग या अवस्था का क्यों न हो। उसके मानव बनने से यह सिद्ध हो गया है कि मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में अति मूल्यवान प्राणी है।
--सुरेश गांधी--
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