ईश्वर द्रष्टा जीव भोक्ता एवं प्रकृति भोग्य है।
बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) , बरौनी , बेगूसराय अभेदानंद आश्रम स्थित आर्य समाज मंदिर बारो में देवयज्ञ के पश्चात चिंतन शिविर का आयोजन किया गया संतोष आर्य ने कहा ईश्वर जीव तथा प्रकृति अनादि सत्ताएं हैं। जीव व ईश्वर की शक्तियां अलग - अलग है। ईश्वर तो दृष्टा है, जबकि जीव भक्ता तथा प्रकृति के भोग्य है। यह महर्षि दयानंद जी की विशेष देन है ।यही वह सिद्धांत है जिस ने आर्य समाज को एक अलग पहचान दी है। इसी से ही ईश्वर, जीव व प्रकृति को समझने का मार्ग मिलता है । यह दृश्य जगत् सत्य स्वरूप प्रकृति है । समय-समय पर इसका स्वरूप बदलता रहता है । यह जगत् इसी प्रकृति से उत्पन्न होकर अंत में इसी में विलीन हो जाता है । इसका भोक्ता जीवात्मा इसे ज्ञान व नियमों में रहते हुए त्याग पूर्वक भोगता है ।इन भोगों से विरत हुए जीव को उस प्रभु की प्राप्ति ही उसका लक्ष्य है। भोग का नाम प्राकृति है ,भोगने वाला जीव है तथा जो सब ध्यान पूर्वक देख रहा है वह ईश्वर हैं । इस में यह समझना चाहिए कि तीनों स्वतंत्र अस्तित्व हैं। इस अवसर पर आचार्य अरुण प्रकाश आर्य, आचार्य भूपेंद्र आर्य, रामदेव आर्य, रविंद्रनाथ आर्य, कैलाश आर्य, राजेंद्र आर्य, रामप्रवेश आर्य ,ओम प्रकाश आर्य, अरुण आर्य, डॉक्टर सुधीर, अग्निवेश, ब्रह्मचारी निशांत, सुशांत इत्यादि सैकड़ों धर्म प्रेमी उपस्थित थे
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