नयी दिल्ली, 27 दिसंबर, लोकसभा में तीन तलाक विधेयक के पारित होने के बाद मुस्लिम संगठनों ने गुरुवार को इस पर मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कुछ ने इसे ‘‘बेहद खतरनाक’’ करार दिया तो अन्य ने इसका स्वागत किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की कार्य समिति के सदस्य एस क्यू आर इलियास ने कहा कि इस विधेयक की कोई जरूरत नहीं थी और इसे आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद खतरनाक विधेयक है जो दीवानी मामले को फौजदारी अपराध बना देगा। एक बार पति जेल चला जाएगा तो पत्नियों और बच्चों की देखभाल कौन करेगा।’’ इलियास ने कहा कि लैंगिक न्याय के बजाए यह विधेयक समुदाय के पुरुषों और महिलाओं के लिये ‘‘सजा’’ साबित होगा। उन्होंने सरकार से सवाल पूछा, ‘‘चार करोड़ महिलाओं ने याचिका पर हस्ताक्षर कर कहा कि वे विधेयक नहीं चाहतीं तब ये कौन मुस्लिम महिलाएं हैं जो इसे चाहती हैं।’’ एआईएमपीएलबी की कार्यकारी सदस्य असमा जेहरा ने कहा कि तीन तलाक विधेयक को पारित किये जाने का कदम ‘‘असंवैधानिक’’ है और यह मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप है। उन्होंने कहा, ‘‘कानून मंत्री (रविशंकर प्रसाद) बहस में विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे थे। वे घरेलू हिंसा अधिनियम के उदाहरण दे रहे थे लेकिन यह सभी धर्मों पर लागू होता है। सिर्फ मुस्लिमों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा कि इस कदम से ‘‘परिवार बर्बाद’’ होंगे और दावा किया कि यही सरकार का उद्देश्य है। अखिल भारतीय उलेमा काउंसिल के महासचिव मौलाना महमूद दरयाबादी ने कहा कि जब सरकार ने तीन तलाक को रद्द कर दिया तब इस पर यहां चर्चा क्यों की जा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के लिये कोष पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनके पास अपने पति के जेल जाने के बाद आय का कोई स्रोत नहीं रहेगा।’’ भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सदस्य जाकिया सोमन ने विधेयक का स्वागत किया और हिंदू विवाह अधिनियम की तर्ज पर मुस्लिम विवाह अधिनियम की मांग की जो बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दों से निपटेगा।
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
तीन तलाक विधेयक पर मुस्लिम संगठन बंटे
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