देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण ने सभी को सकते में ला दिया है। हल्दी सर्दी के दस्तक के साथ ही वायु प्रदूषण का खराब स्तर अपने चरम पर पहुंच गया। तमाम प्रयासों के बाद भी हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते नज़र आए। तकरीबन डेढ़ माह होने को जा रहा है लेकिन दिल्ली की आबोहवा के साफ होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं। यहां प्रदूषित हवा में सांस लेना लोगों के लिए दूभर होता जा रहा है। दिल्ली के बढ़ते वायु प्रदूषण पर लोकल सर्किल नाम की एजेंसी द्वारा कराए गए आनलाइन सर्वे में चैंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोग दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण से परेशान होकर कहीं और बसना चाहते हैं। सर्वे में शामिल 53 प्रतिशत लोगों का कहना है कि बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से परिवार का कोई न कोई सदस्य प्रभावित हुआ, मगर उन्हें अस्पताल नहीं जाना पड़
विश्व की 91 प्रतिशत जनसंख्या उन इलाकों में रहती हैं जहां वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन दिशा निर्देश सीमा से अधिक है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार विश्व भर में तकरीबन 4.2 मिलियन मौतें बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। आंकड़ों को देखकर एक बात साफ हो जाती है कि पूरी दूनिया समेत भारत में भी वायु प्रदूषण एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। पिछले कई सालों से देखने को मिल रहा है कि राजधानी दिल्ली में अक्तूबर की शुरूवात से लेकर दिसंबर तक स्मॉग का आतंक बना रहता है। इस दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक अपने खतरनाक स्तर पर रहता है। इस साल दिवाली से पहले सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की ब्रिकी में कमी लाने और वायु प्रदूषण को कम करने के मकसद से आदेश दिया कि लोग दिवाली पर सिर्फ रात 8 बजे से 10 बजे के बीच ही पटाखे फोड़ सकेंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असर कम ही देखने को मिला और हर साल की तरह इस साल भी दिवाली के अगले दिन राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर से भी ऊपर दिखाई दिया। दिवाली के दिन राजधानी के कई इलाकों में लोगों ने रात आठ बजे से दस बजे के बीच पटाखा फोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई समय सीमा का उल्लंघन किया।
एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने के संबंध में 562 एफआईआर दर्ज की गई और 323 लोगों को हिरासत में लिया गया। इसके अलावा पटाखों की वजह से आग लगने की 300 से अधिक घटनाएं सामने आईं। राजधानी दिल्ली में अकेले पटाखों को ही बढ़ते वायु प्रदूषण का एक मात्र कारण नहीं माना जा सकता। पटाखों के साथ-साथ निकटवर्ती राज्यों पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों का पराली जलाना भी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। दिल्ली में वाहनों की बढ़ती भीड़ भी वायु प्रदूषण में खासा इज़ाफा कर रही है। इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में भारी पैमाने पर चल रही निर्माण साइटें भी यहां वायु की गुणवत्ता को खराब कर रही हैं। इन सभी कारणों के चलते दिल्ली की आबोहवा खराब हो रही है। ऐसे में त्यौहारों के मौकों पर फोड़े जाने वाले पटाखे दिल्ली के वायु प्रदूषण में इज़ाफा करके, आग में घी डाले जाने वाला काम करते हैं।
इस साल दिवाली से पहले दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए युध्द स्तर पर तैयारियां हुईं। लेकिन दीवाली के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक अपने खतरनाक स्तर या उससे उपर रहा। दिल्ली में वायु की गुणवत्ता का सूचकांक अभी भी खराब स्थिति में बना हुआ है। वायु की गुणवत्ता को सुधारने के लिए दिल्ली-एनसीआर में कृत्रिम बारिश कराने की बात हो रही है ताकि हवा से ज़हरीले प्रदूषकों को दूर किया जा सके। अगर दिल्ली-एनसीआर में कृत्रिम वर्षा का प्रयोग सफल होता है तो इसको दूसरी जगहों पर भी आज़माया जा सकता है। पर्यावरण मंत्रालय, आईआईटी कानपुर व इसरो, कृत्रिम बारिश कराने की योजना को अंतिम रूप दे चुके है। इसी के तहत दिल्ली-एनसीआर के कुछ स्थानों पर बहुत जल्द कृत्रिम बारिश करायी जा सकती है।
अगर यह प्रयोग सफल होता है तो हम इसे वायु प्रदूषण को कम करने के लिए, एक शार्ट कट तरीके के तौर पर देख सकते है। हमें दिल्ली-एनसीआर समेत देश के दूसरे शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने के ऐसे रास्तों को खोजना है जिससे हम निश्चित तौर पर वायु प्रदूषण को कम कर सकें। सवाल यह है अगर निकटवर्ती राज्यों में किसान हर साल पराली जलाते हैं तो राज्य व केंद्र सरकारें मिलकार इसका कोई स्थायी समाधान क्यों नहीं खोजती हैं? इसके अलावा वायु प्रदूषण को कम करने की सारी ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकारों की नहीं है, हमें भी वायु प्रदूषण को कम करने के अपने निजी स्तर पर कुछ कदम उठाने होंगे। उदाहरण के तौर हम अपने निजी वाहन का कम से कम इस्तेमाल करके पब्लिक परिवाहन का इस्तेमाल कर वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम कर सकते हैं। अपनी रसोई में कम प्रदूषण वाले ईंधन का प्रयोग करके भी हम वायु को गंदा होने से बचा सकते हैं । इसके अलावा कूड़ा-कचरा व प्लास्टिक को न जलाकर हम एक ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाते हुए इसका निपटान कर सकते हैं। वायु प्रदूषण एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। अगर हमने जल्द ही इसका कोई समाधान न खोजा तो यह महामारी हमारे देश के लिए जानलेवा बन सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल वायु प्रदूषण के कारण 2 मिलियन से अधिक मौतें समय से पहले होती हैं जो खराब हवा से होने वाली वैश्विक मौतों का 25 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में एक लाख बच्चों की मौते वायु प्रदूषण के कारण हुईं थी। वायु प्रदूषण आज एक वैश्विक समस्या बन चुकी है और इसने हमारे देश की भी एक बड़ी आबादी को अपनी जकड़ में लिया हुआ है। राज्य व केंद्र सरकारों को इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने की ज़रूरत है। इससे पहले यह समस्या और जानलेवा हो जाए, इसका स्थायी समाधान खोजा जाना ज़रूरी है।
--गौहर आसिफ--
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