- स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने धर्मः कर्तव्य संचालित जीवन पर दिया उद्बोधन
- भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी एवं पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने ’द योग इंस्टीट्यूट: सद्भाव और एकता उत्सव’ में किया सहभाग
महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री चिन्नानेनी विद्यासागर राव जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडनवीस जी, आयुष मंत्री श्री श्रीपद् नाईक जी, श्रीमती सविता कोविन्द जी, योगा इंस्टीट्यूट मुम्बई की निदेशक डाॅ हंसा जी जयदेव योगेन्द्र, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, आचार्य लौकेश मुनि जी, पद्मश्री भारत भूषण जी, गौर गोपाल दास जी, पूर्व सीबीआई निदेशक डाॅ.कार्तिकेयन एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया सहभाग
ऋषिकेश/ मुंबई, 28 दिसम्बर। द योग इंस्टीट्यूटः सद्भाव और एकता उत्सव का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोंविद जी, श्रीमती सविता कोंविद जी, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया। इस दिव्य कार्यक्रम का आयोजन प्राचीन योग संस्थान योग इंस्टीट्यूट की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन बांद्रा कुर्ला काम्पलेक्स के एमएमआरडी मैदान में किया गया।
द योग इंस्टीट्यूट: सद्भाव और एकता उत्सव में योग को समर्पित कार्यशाला, आसन वर्कशाप, महिला स्वास्थ्य वर्कशाप, ध्यान वर्कशाप, संगीत वर्कशाप का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने द योग इंस्टीट्यूट: सद्भाव और एकता उत्सव के उद्घाटन अवसर पर ’’धर्मः कर्तव्य संचालित जीवन’’ पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होने कहा कि ’’ धर्म की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है लोग योगमय जीवन पद्धति के साथ-साथ धर्म का पालन करते हुये जीवनयापन करे। केवल आसन जीवन को आसान नहीं करेंगे, धर्म जीवन की मुश्किलों को आसान करता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि सच्चा योग तो प्रभु से खुद को जोड़ना है; आपनी शक्ति को समाज के साथ जोड़ना। योग परमार्थ है; योग स्वयं का समर्पण है। योग जोड़ता है और जो भी योग से जुड़ता है फिर वह जोड़ता ही चला जाता है खुद को प्रभु से; समाज से और फिर पूरा समाज एक परिवार बन जाता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि इस प्रकार के उत्सवों से बाहर की एकता और भीतर की एकता का प्रदुर्भाव होता है, योग तो है ही सद्भाव, एकता और समरसता का आधार।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’धर्म तो प्राणवायु की तरह है’। जैसे प्राणवायु न हो तो जीवन असम्भव है उसी प्रकार जब धर्म का महत्व समझ लिया जाता है तो सच्चे जीवन का रहस्य समझ में आ जाता है। धर्म जीवन में समता, समरसता और सद्भाव पैदा करता है। अब समय आ गया है कि हम लोग ’स्वच्छता को धर्म बनाये’, ’स्वच्छता को अपना संस्कार बनाये’ तथा स्वयं को पर्यावरण से जोड़े। उन्होने कहा कि पेड़ लगाना हमारा कर्म है लेकिन पेड़ बचे रहे इसका ध्यान रखना हमारा धर्म है इस पर हमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि आज समाज में योग ने जिसप्रकार जनाधार बनाया है, अब जल के लिये उसी जनाधार का उपयोग करके जल योग करने की जरूरत है। जल योग सबसे बड़ा योग होने वाला है क्योंकि जल नहीं होगा तो न योग होगा, न ध्यान होगा न कोई क्रिया होगी इसलिये जल को सुरक्षित और संरक्षित रखना नितांत आवश्यक है। आने वाले समय में जो समस्यायें बढ़ती जा रही है उसके लिये जल की शक्ति को बढ़ाने की जरूरत है। वाटर रिचार्ज, गाउंड रिचार्ज, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, जल का संतुलित उपयोग करे और जल बचाने का संकल्प ले।
जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा ’’योग जीवन पद्धति ही सच्ची साधना है। योगमय जीवन पद्धति ने समूचे विश्व को एक परिवार की तरह जोड़ कर रख है। उन्होेन कहा कि भारत और भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है; भारत की संस्कृति उदार संस्कृति है; सेवा, साधना और समसरता की संस्कृति है इस आत्मसात करना ही श्रेष्ठ जीवन है। द योग इंस्टीट्यूट: सद्भाव और एकता उत्सव मे योग के साथ धर्म, विज्ञान, समरसता, सद्भाव और व्यवहारिक जीवन पद्धति पर चर्चा हुई इसमें अनेक विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया।
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