जिंदगी अपने रफ्तार से दौर रही है, बस इस कश्मकश में हूँ कि ये पड़ाव है या मंजिल मेरी...
अगर पेट पूजा राजनीती सी होती तो सुबोध कक्का का रोल नंबर पहले से 100 नंबर पहला होता l सुबोध कक्का अपने सामने किसी को भेलूय नै देते थे... बच्चे से ही अगुआ थे हमारे सुबोध कक्का भोज-भात में... चालक इतने की खौकार शब्द को “मन-तृप्ति” शब्द रखवा दिया था l बारीक सब भोज-भात में कठ्पिन्ग्ल सा बिहेव करते हैं... बारीक़ भी दो-तीन प्रकार के होते हैं भोज में ... पहले जो जबरदस्ती खिलते हैं, दुसरे जो इशारे से दुसरे बारीक़ को बताते हैं “रे सबठो माउस इध्रे उझलेगा त चिखना खत्म हो जायेगा” और तीसरे जो कहते हैं “नै लेना है त जियान काहे करते हैं जी”.. खैर अपने सुबोध कक्का को इनसब बारिकों के बिहेव से खासा फर्क नहीं पड़ता था... पेट-पूजा माने “मन-तृप्ति” वाले सिधांत को धर्म मानते हुए वो भोग लगाते थे ... बिहार के भोज में सामान्यतौर पर भरपेट्टा बला हिसाब किताब रहता है और साथ मे “पारस” का भी प्रोविजन होता है l
अच्छा हाँ, मैं पेट-पूजा के राजनीती से सम्बंधित बातें बता रहा था... “खौकार टाइप के लोग अक्सर दल-बदलू स्वभाव के होते हैं... मतलब की उनका ऑब्जरवेशन और गेस भयंकर टाइप से सही होता है .. जैसे मानो किसी प्रोफेसर के दिए हुए गेस प्रश्न परीक्षा मे शर्तिया रूप से टकराते हैं, वैसे ही इन्हें पता होता है की फलना बाबु को गैस की बीमारी है, फलना बाबु को सुगर पकडे हुए है, और फलना बाबु का पेट का आकार बस इतना की थोडा चबा के किधर भी गुडक सकते हैं ... तो गूढ़ भोजनभट् लोग मौकापरस्त बनकर, बारिक को बियाह करवाने का लालच दे कर अपना वोट बैंक बना लेते हैं और फिर शुरू होती है वोटिंग... करीब 3 से 4 घंटे के रसगुल्ला और माउस खाने के बाद काउंटिंग शुरू होती है .. फिर शुरू होता है रुझान .... मंगल बाबु 300 रसगुल्ले से आगे चल रहे हैं, सुधीर बाबु अभी तक 4 किलो माउस देख चुके हैं, दिनेश मास्टर साहब 13 मटकुड़ी दही सुड़क चुके हैं.... हम फिर आयेंगे छोटे से व्यवसायिक विश्राम के बाद... आप देखते रहिये मंगल कुमार का बियाह मंगला कुमारी के साथ ... हालाँकि कुछ लोग ईमानदार और कर्मठ होते हैं ... जितना खायेंगे उतना ही पत्ता पर लेते हैं और उसे ईमानदारी से समाप्त भी करते हैं ... ऐसे लोगों का फ्यूचर डार्क है .. ये लोग कभी इस तरह के चुनाव नहीं जीत सकते, उल्टे खाने वाले लोगों को डिमोटिवेत करते हैं ... मतलब वोट काट लेते हैं ... चुनावी भाषा मे वोटकटुआ .... वैसे भी ऐसे अच्छे लोगों को आजकल पूछता ही कौन है... भोज के कई मौके होते हैं जो की इन राजनीती के जानकर के डेटाबेस में पहले से उपलब्ध होते हैं ...नौकरी लगने वाला भोज ,लड़की देखा-देखी बला भोज ,जमीन रजिस्ट्री बला भोज, ई बला भोज, ऊ बला भोज...
धूर यार हम फिर से मुद्दे से भटक गए थे ... बात राजनीती की हो रही थी ... तो भोज में बैठे लोग तब तक नहीं उठते जब तक अंतिम व्यक्ति का मन तृप्त ना हो जाये .. ये सही मायने मे हमारी संस्कृति है जो हर बिहारी के खून मे है ... सुबह के करीब तीन बज रहे थे और हमारे सुबोध कक्का 500 रसगुल्ले, 200 कालाजामुन, 4 किलो माउस और 6 मटकुड़ी दही से बढ़त बनाये थे .. सभी लोग इस प्रखर राजनीतिज्ञं की जयकार उद्घोष के साथ मनोबल बढ़ा रहे थे... लड़के के फूफा जी को आर्मी मे सूबेदार थे उन्होंने उनकी जीत की घोषणा करते हुए इस चुनावी संग्राम की समाप्ति की l फुल-माला के साथ लोगों ने सुबोध कक्का के साथ सेल्फी सेशन करवा के कंधे पर बिठा लिया (कंधे पर बैठने वाले युवा 201 बार दण्ड पेल कर आये थे )... सुबोध कक्का ने सोंफ फांकते हुए कहा... अब चीफ मिनिस्टर का कुर्सी के लिए फाइट करेंगे .....
--राजीव रंजन--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें