बिहार : रेंगकर गया और तिपहिया साइकिल पर चलकर आया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

बिहार : रेंगकर गया और तिपहिया साइकिल पर चलकर आया

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कुर्सेला। वह दोस्त के सहारे साइकिल पर बैठकर स्कूल जाता था। दोस्त से अनबन हो गया। तो उसका स्कूल जाना बंद हो गया। उसे नौवीं का छात्र था। वह दोस्त की बेवफाई से हिल गया। थैक्स प्रगति ग्रामीण विकास समिति के वरिष्ठ कार्यकर्ता को। जिसके समक्ष परेशानी बयान करने से तिपहिया साइकिल दिलवाने का प्रयास करने लगा। आज विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर बल्थी महेशपुर,कुर्सेला से रेंगकर कटिहार गए थे। वहां तिपहिया साइकिल पर चलकर घर आया। बहुत खुश है। विश्वास व्यक्त किया कि तिपहिया साइकिल से पंख लग जाएगा और उड़ने लगेगा। कुर्सेला प्रखंड के दक्षिण मुरादपुर पंचायत के वार्ड नम्बर-8 में है बल्थी महेशपुर मुसहरी। यह वार्ड नम्बर-8 में पड़ता है। यहां पर बिगो ऋषि और लीला देवी रहते हैं। इनके पुत्र हैं नन्दू कुमार ऋषि। नन्दू दिव्यांग हैं। 90 प्रतिशत विकलांता से पीड़ित हैं। जब 1999 में द्वितीय क्लास में पढ़ते थे। इसके बाद 1.1.2012 को निःशक्तता सामाजिक सुरक्षा पेंशन स्वीकृति की गयी। अभी नन्दू कुमार ऋषि नौवीं कक्षा में पढ़ते हैं। तिपहिया साइकिल नहीं रहने के कारण वह पढ़ाई छोड़ दी है। उसका दोस्त साइकिल पर बैठाकर स्कूल ले जाता और स्कूल से घर ले आता था। उस ख्याल को पूर्ण करने के लिए कहता है तिपहिया साइकिल मिल जाएगा तो पढ़ाई जारी कर देगा।

वह कहता है कि जब इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी के साॅल थ्री के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता आए थे। बैठक समाप्त कर प्रस्थान कर रहे थे। उसी समय भइया जी से आपबीती सुनाएं। उन्होंने कुर्सेला प्रखंड कार्यालय आने को कहा। यहां पर नन्दू कुमार ऋषि का कार्य नहीं बना तो वह भइया जी जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग, कटिहार चले गए। वहां पर तिनपहिया वाहन प्राप्त करने के लिए आवेदन जमा कर दिए। जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग में दस्तुर नहीं है कि कोई आवेदक आवेदन दें तो उसको पावती दें। परंतु यहां पर दस्तुर नहीं है। यहां आवेदन प्राप्त करने का प्रमाण नहीं दिया जाता है। कुछ भी कर ले पर बड़ा बाबू  देते ही नहीं हैं। यहां तक द्वितीय पत्र पर भी हस्ताक्षर नहीं करते हैं। हस्ताक्षर करने की मांग करने पर बड़ा बाबू लाल हो जाते हैं। गुस्से में तनमना कर आवेदन ही वापस करने लगते हैं। अब आवेदक क्या करें? बिना पावती के ही आवेदन दे दिया जाता है। अब आपकी मर्जी है आवेदन भूला दो या काम बना दो। कोषांग के प्रधान सहायक हैं रामाशीष पोद्दार। इनका कहना है कि यहां पर हमलोग आवेदनों का जिला स्तर पर संग्रह करते हैं। इसी तरह प्रखंड स्तर पर भी होता है। सेंचुरी अप होने के बाद आवेदन को पटना भेजा जाता है। किसी कम्पनी के द्वारा वाहन तैयार करने बाद  दिव्यांगों की मांग पूर्ण कर पाते हैं।

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