प्रयागराज, 02 जनवरी, तीर्थराज प्रयाग में श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा की पेशवाई में चल रहे वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ डमरू दल के युवकों ने गंगा किनारे देवाधिदेव भोलेनाथ के डमरू को कुछ इस तरह बजाया कि उसकी ध्वनि ने मानो पतित पावनी गंगा की लहरों में हलचल बढ़ा दी हो। डमरू दल के साथ चल रहे मनोज ने बताया कि हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म में मंदिर की घंटी, शंख, ढोल, नगाड़ा, मृदंग, चिमटा और डमरू की ध्वनियों को पवित्र माना गया है। भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है। साधुओं के पास अक्सर डमरू और नागाओं के पास चिमटा मिल जाएगा। पेशवाई में डमरू दल के करीब 51 युवक दोनो हाथों से विशाल डमरू को बजा रहे थे। एक साथ बजते डमरू से निकलने वाली ध्वनि इतनी तीव्र थी मानो कहीं सैकडों बम एक साथ फूट रहे हों। उन्होंने बताया कि जब डमरू बजता है तो उसमें से 14 तरह की ध्वनि निकलते हैं। पुराणों में इसे मंत्र माना गया। डमरू भगवान शिव का वाद्ययंत्र ही नहीं यह बहुत कुछ है। डमरू की आवाज यदि लगातर एक जैसी बजती रहे तो इससे चहुंओर का वातावरण बदल जाता है। यह भयानक होने के साथ सुखदायी भी। भगवान शंकर इसे बाजाकर प्रलय भी ला सकते हैं। यह बहुत ही प्रलयंकारी आवाज सिद्ध हो सकती है। डमरू की आवाज में कई रहस्य छिपे हुए हैं। पुराणों अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। कहते हैं कि यह मंत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। कोई भी कठिन कार्य हो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है एक तरफ लाडस्पीकर पर गंगा पुल पार करते समय “ गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाये” की कर्ण प्रिय स्वर लहरी बज रही थी तो दूसरी तरफ डमरू दल के युवकों द्वारा बजाया जा रहा डमरू से निकलने वाली तीव्र ध्वनी मानो गंगा किनारे शिव का आह्वान कर रही हो और उसकी कल-कल बहती धारा में तमाम स्वर लहरियां अठखेलियां करने लगी हों। काशी के पंड़ित द्वारा गंगा तट पर किया गया शंखनाद मानो असत्य और पाप का समूल नष्ट करने की चेतवानी दे रहा हो।
बुधवार, 2 जनवरी 2019
संगम में भोलेनाथ के डमरू की ध्वनि ने गंगा की लहरों में बढ़ाई हलचल
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