नयी दिल्ली 08 जनवरी, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश से आकर भारत में रह रहे हिन्दु, सिख, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने से संबद्ध ‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019’ कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बहिर्गमन बीच लोकसभा ने आज ध्वनिमत से पारित कर दिया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के सदस्यों ने मत विभाजन की माँग की, लेकिन अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उनकी माँग अनसुनी करते हुये विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह विधेयक वर्ष 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विभिन्न विपक्षी दलों की माँग को देखते हुये विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था। समिति की रिपोर्ट के अनुरूप तैयार नये विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को अपनी स्वीकृति दी थी। विधयेक पर करीब पौने तीन घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुये गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने असम के लोगों को आश्वासन दिया कि उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान अक्षुण्ण रखी जायेगी तथा शरणार्थियों का बोझ सिर्फ असम पर नहीं आयेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विधेयक विशेष तौर पर असम के लिए नहीं है। तीनों पड़ोसी देशों से यहाँ आने वालों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी और वे देश में कहीं भी रहने और काम करने के लिए स्वतंत्र होंगे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में अल्पसंख्यकों का काफी उत्पीड़न हो रहा है और इसलिए जो भी कभी भारत का मूल नागरिक रहा हो उसे नागरिकता देना हमारी जिम्मेदारी है और इसलिए यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बंगलादेश बनते समय उन देशों में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए वहाँ की सरकारों के साथ भारत की तत्कालीन सरकारों ने समझौते किये थे, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढँग से वहाँ अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न लगातार जारी है। गृह मंत्री ने असम के लोगों का आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार उनके साथ खड़ी है और उनकी हर समस्या सुनने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा “आपकी संस्कृति, परंपरा और भाषाई पहचान का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। इसका बोझ पूरा देश वहन करेगा।”
मंगलवार, 8 जनवरी 2019
नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित
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