सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (जन्म: 7 जनवरी, 1851 - मृत्यु: 9 मार्च, 1941) का भारतीय विद्याविशारदों में, विशेषत: भाषाविज्ञान के क्षेत्र में एवं लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया के प्रणेता के रूप में अमर स्थान है। ग्राउस और बीम्स की भाँति वे भी 'इंडियन सिविल सर्विस' के कर्मचारी थे। उनका जन्म डब्लिन के निकट 7 जनवरी, 1851 को हुआ था। उनके पिता आयरलैंड में 'क्वींस प्रिंटर' थे। 1868 से डब्लिन में ही उन्होंने संस्कृत और हिंदुस्तानी का अध्ययन प्रारंभ कर दिया था। बीज़ (Bee's) स्कूल श्यूज़बरी, ट्रिनटी कॉलेज, डब्लिन और कैंब्रिज तथा हले (Halle) जर्मनी में शिक्षा ग्रहण कर 1873 में वे 'इंडियन सिविल सर्विस' के कर्मचारी के रूप में बंगाल आए और प्रारंभ से ही भारतीय आर्य तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन की ओर रुचि प्रकट की। 1880 में 'इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स', बिहार और 1869 तक पटना के 'ऐडिशनल कमिश्नर और ओपियम एजेंट', बिहार के रूप में उन्होंने कार्य किया। सरकारी कामों से छुट्टी पाने के बाद वे अपना अतिरिक्त समय संस्कृत, प्राकृत, पुरानी हिंदी, बिहारी और बंगला भाषाओं और साहित्यों के अध्ययन में लगाते थे। जहाँ भी उनकी नियुक्ति होती थी वहीं की भाषा, बोली, साहित्य और लोकजीवन की ओर उनका ध्यान आकृष्ट होता था।
1873 और 1869 के कार्यकाल में ग्रियर्सन ने अपने महत्त्वपूर्ण खोज कार्य किए। उत्तरी बंगाल के लोकगीत, कविता और रंगपुर की बँगला बोली, जर्नल ऑफ दि एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, राजा गोपीचंद की कथा, मैथिली ग्रामर, सैवन ग्रामर्स ऑफ़ दि डायलेक्ट्स ऑफ़ दि बिहारी लैंग्वेज इंट्रोडक्शन टु द मैथिली लैंग्वेज; ए हैंड बुक टु दि कैथी कैरेक्टर, बिहार पेजेंट लाइफ़, बीइंग डिस्क्रिप्टिव कैटेलॉग ऑफ़ द सराउंडिंग्स ऑफ़ दि वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑफ़ द जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी, कश्मीरी व्याकरण और कोश, कश्मीरी मैनुअल, पद्मावती का संपादन, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी के सहयोग से बिहारी कृत सतसई का संपादन, नोट्स ऑन तुलसीदास, दि मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ़ हिंदुस्तान आदि उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
ग्रियर्सन की ख्याति का प्रधान स्तंभ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया ही है। 1885 में प्राच्य विद्याविशारदों की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस ने 'विएना अधिवेशन' में भारतवर्ष के भाषा सर्वेक्षण की आवश्यकता का अनुभव करते हुए भारत सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया। फलत: भारत सरकार ने 1888 में ग्रियर्सन की अध्यक्षता में सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ किया। 1888 से 1903 तक उन्होंने इस कार्य के लिये सामग्री संकलित की। 1902 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात 1903 में जब उन्होंने भारत छोड़ा सर्वे के विभिन्न खंड क्रमश: प्रकाशित होने लगे। ग्रियर्सन का सर्वेक्षण 21 जिल्दों में है और उसमें भारत की 179 भाषाओं और 544 बोलियों का सविस्तार सर्वेक्षण है। साथ ही भाषाविज्ञान और व्याकरण संबंधी सामग्री से भी वह पूर्ण है। ग्रियर्सन कृत सर्वे अपने ढंग का एक विशिष्ट ग्रंथ है। उसमें हमें भारतवर्ष का भाषा संबंधी मानचित्र मिलता है और उसका अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व है। दैनिक जीवन में व्यवहृत भाषाओं और बोलियों का इतना सूक्ष्म अध्ययन पहले कभी नहीं हुआ था। बुद्ध और अशोक की धर्मलिपि के बाद ग्रियर्सन कृत सर्वे ही एक ऐसा पहला ग्रंथ है जिसमें दैनिक जीवन में बोली जानेवाली भाषाओं और बोलियों का दिग्दर्शन प्राप्त होता है।
साभार:विजय कुमार मलहोत्रा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें