अरुण कुमार (बेगूसराय) अन्य वर्षों की भाँति इस वर्ष भी बेगूसराय का गौरव तीर्थ व पर्यटक स्थल जय मंगला गढ़ जो कि आज की नहीं पौराणिक मंदिरों में से एक है।यह स्थान काँवर झील के नाम से पाए हुए प्रसिद्धि को भी अब बड़े बड़े जमींदार,नेताओं जिसे राजिनीतिज्ञों ने भी नजरअंदाज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है,कभी यहाँ साइबेरिया आदि विदेशों से पक्षी उड़कर आया करते थे,यहाँ की झील अपने आप में अलग प्राकृतिक सौंदर्यता को दर्शाती थी आज यहाँ वही झील वही पर्यटन स्थल अपने आप पर आँसू बहा रही है।आँसू बहाने का मतलब ये नहीं कि यहाँ पर्यटकों का आना जाना नहीं है,अन्य वर्षों की भाँति इस वर्ष भी बहुतायत में पर्यटकों का जमावड़ा रहा किन्तु जहाँ लाखों की भीड़ जमती थी वहाँ हजारों में सिमट कर राह गई।कारण यह कि बाहर गाँव से आनेवाले पर्यटकों को वह नजारा नजर नहीं आता था इसलिये बाहरी पर्यटकों का आना न्यून ही रहा क्षेत्रीय पर्यटक 100/200 किलोमीटर के दूरी वाले ही आ सके बाकी और कोई नहीं।मैं अरुण कुमार इस आलेख,लेख के माध्यम से उन राजनेताओं का ध्यान इस तरफ आकृष्ट करना चाहूँगा की इस मृतप्राय पर्यटन स्थल को पुनः जीवित करने के लिये खड़े हों।ये अलग बात है कि मंझौल निवासी वरिष्ठ पत्रकार "राजेश जी" के प्रयास से जयमंगला महोत्सव भी यहाँ मनाया जाने लगा है विगत दो-तीन वर्षों से जिसमें बड़े बड़े सांसदों का भी आगमन होता है भाषण में तो बहुत कुछ कहते भी हैं मगर करते कितना और क्या हैं ये तो दृष्टगत ही नहीं होता,और जयमंगला महोत्सव भी जयमंगला स्थान में नहीं मनाकर मंझौल या जैसा स्थान जिला प्रशासन और जिले के गण-मान्य व्यक्तियों द्वारा तय होता है वहीं पर जयमंगला महोत्सव मना कर खानापूर्ति कर ली जाती है।इसपर सिर्फ बिहार सरकार ही नहीं केन्द्र सरकार को भी ध्यान देनी चाहिये।जय मंगला गढ़ और बेगूसराय बिशनपुर का नौलखा मन्दिर ये दोनों ही धरोहर है सिर्फ बेगूसराय ही नहीं,सिर्फ बिहार ही नहीं यह तो गौरव है सम्पूर्ण भारतवर्ष का एकबार इस ध्यान तो देकर देखें यहाँ के लिये सड़क निर्माण और झील की पुनरुत्थान करके तो देखें कि यहां से कितनी राजस्व की प्राप्ति होती है और कितने गरीबों का कल्याण हो जाएगा।बस आवश्यकता है ध्यान देने की।
बुधवार, 2 जनवरी 2019
बेगूसराय : अपने आप पर बिलखती जय मंगला गढ़।
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