प्रयागराज, 01 जनवरी, विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ मेला से पहले महानिर्वाणी अखाड़ा की सनातन धर्म की समृद्ध परम्परा और संस्कृति के दिव्य, भव्य और अलौकिक हाथी, घोड़ा, पालकी और बैंड बाजों से सजी लकझक पेशवाई झूंसी स्थित शिविर पहुंची। पेशवाई का नेतृत्व अखाड़ा के महामंत्री जुमनापुरी और रवीन्द्र पुरी महराज कर रहे थे। जगह जगह पेशवाई में चल रहे नागा, साधु और महात्माओं का स्वागत फूलो की वर्षा करके की गयी। रथ पर आरूढ़ आराध्य कपिल मुनि की मूर्ति थी जिसपर महात्मा चंवर डुला रहे थे। बीच बीच में रथ पर सवार साधु-महात्मा दर्शन के लिए कतार में खड़े श्रद्धालुओं पर जल में डूबोकर पुष्प ड़ाल रहे थे। दूसरी तरफ लम्बे समय से सड़क के दोनों तरफ खड़े श्रद्धालु भी साधु-महात्माओं पर पुष्प चढा रहे थे। मंगलवार को प्रयागवासियों को सनातन धर्म की समृद्ध परम्परा और संस्कृति के दिव्य, भव्य और अलौकिक दर्शन उस समय हुए जब महानिर्वाणी अखाड़ा की पेशवाई बाघम्बरी गद्दी के पास जमात बाग में 10 बजे वैदिक मंत्रों से पूजा पाठ के बाजे 11 बजे हाथी, घोड़ा, पालकी, रथ और बैंड़ बाजों के साथ गंगा पार झूंसी स्थित सेक्टर 16 में बने शिविर के लिए रवाना हुई थी। पेशवाई बक्शी बांध से दारागंज की पक्की सड़क, गंगा भवन, मोरी मार्ग होते हुए मेला क्षेत्र पहुंची। बाधम्बरी मठ पर अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने पेशवाई का स्वागत किया। अखाड़े की पेशवाई में श्रद्धा, परंपरा और वैभव का समागम नजर आया। सबसे आगे अखाड़े के लहहराते हुए 20 फिट लम्बे ध्वज पताका को पांच लागों ने सम्हाल रखा था। नागाओं की फौज में कुछ नागा करतब दिखा रहे थे। उनके तलवारबाजी और लाठी भांजने के करतब देख श्रद्धालु आश्चर्य चकित रहे गये। पेशवाई में परम्परा के मुताबिक ही हाथी, घोड़े,ऊंट और बैंड बाजे के साथ जूना अखाड़े के आचार्य महामणडलेश्वर, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर और नागा साधुओं ने शिरकत की। नागा साधुओं ने अपने अस्त्र शस्त्र के साथ पेशवाई के बीच में जगह-जगह रुककर युद्ध कौशल का भी प्रदर्शन किया।
सड़क के बीचो बीच एक घोड़े पर सवार नागा सन्यासी नगाड़ा बजाते हुए चल रहे थे। इसके बीच में साधु, महात्मा, सन्यासी, नागा चल रहे थे। पेशवाई में छह हाथियों और आठ ऊंटों पर साधु और महात्मा, 10 घोडों पर नागा सवार थे। पेशवाई में रथ पर सबसे आगे राजगुरू निर्वाणी पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोका नंद भारती , अटल पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर विश्वात्मानंद महराज, महामंडलेश्वर शिव चैतन्य प्रभु जी, महामंडलेश्वर गीता भारती जी समेत पचासों साधु,संत महात्मा रथ पर आरूढ़ थे। बीच में चल रहे श्री श्री 1008 विश्वगुरू महामण्डलेश्वर परमहंस श्री स्वामी महेश्वरानंद पुरी जी महराज के रथ पर पांच विदेशी महिला भक्त बैठी थी जबकि उनके रथ के आगे इतनी ही संख्या में विदेशी महिलाओं का समूह चल रहा था। महेश्वरानंद महराज रथ पर शाही अंदाज में सिर पर हैट लगाये बैठे थे। पेशवाई में हालैंड, अमेरिका, आस्ट्रीया, हंग्री, और चेकास्लोवाकिया आदि मुल्कों के श्रद्वालुओं ने पेशवाई में शिरकत किया। पेशवाई में जम्मू, काशी, हरिद्वार और इलाहाबाद के संस्कृत विद्यालयों के छात्र अलग अलग परिधान पहने शामिल थे। जम्मू के छात्रों का पीला परिधान रंगबिरंगे माहौल में लागों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। पेशवाई की शान बैंड बाजे थे। सहारनपुर, लुधियाना, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरिद्वार और प्रयागराज के 12 बैंड़बाजों ने पेशवाई की शान में चारचांद लगा दिया था।
पेशवाई के साथ साथ चल रही मध्यपद्रेश के इंदौर से आयी भक्ति रस में डूबी महिलाओं ने भी नृत्य कर पूरे पेशवाई का लुत्फ उठाया। दूसरी तरफ भंगड़ा बैंड़ पर नृत्य ने सडक के दोनो किनारों खडे श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। पेशवाई त्रिवेणी मार्ग पुलिस अधिकारियों द्वारा आराध्य देव सिद्ध विनायक गणपति जी पर फूल चढ़ाया और उसके बाद महात्माओं और नागा सन्यासियों को गुलाब और गेंदे की माला पहनाकर स्वागत किया। त्रिवेणी मार्ग गुलाब के फूलों से पट गयी। पेशवाई में सबसे आगे अखाडा का ध्वज लहरा रहा था। उसके बाद नागा सन्यासियों का समूह करतब दिखाते आगे -आगे बढ़ रहा था। पेशवाई का स्वागत हरिहर गंगा आरती समिति, मेला प्रशासन और अटल अखाड़ा के संतों ने पेशवाई में चल रहे महामण्डलेश्वर, मडलेश्वरों को गुलाब का हार पहनाया और त्रिपुण्ड लाकर स्वागत किया। संगम क्षेत्र से ही हाथियों को वापस कर दिया गया। उसपर बैठे साधु महात्मा को रथ में बैठकर गंगापार झूंसी क्षेत्र स्थित शिविर पहुंचे। इस दौरान पेशवाई मार्ग के दोनों ओर हजारों लोग साधु संतों का फूल मालाओं से स्वागत भी कर रहे थे। पेशवाई के साथ ही महानिर्वाणी अखाड़ा कुम्भ मेला क्षेत्र में बाघम्बरी रोड़ हाेते हुए त्रिवेणी मार्ग से अपने शिविर में प्रवेश कर गया। नागा सन्यासियों समेत सभी साधु,महात्मा शिविर में पहुंचने के बाद वहां की मिट्टी को माथे से लगाया। वहीं पर महात्माओं ने अपने आराध्य कपिल मुनि की मूर्ति स्थापित की। छावनी में अखाड़े के प्रवेश के बाद पूरे मेले के दौरान साधु संत वहीं रहेंगे और कुम्भ के दौरान पड़ने वाले प्रमुख स्नान पर्वों पर शाही स्नान भी करेंगे।
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