धार्मिक आस्थावानों, सैलानियों, प्रकृति प्रेमियों व पर्यावरणविद्ों के आकर्षण का केन्द्र बना दुमका
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) प्रति वर्ष उप राजधानी दुमका के अलग-अलग कई धार्मिक स्थलों सहित पिकनिक स्पाॅट प0 बंगाल, बिहार, झारखण्ड व उड़ीसा के हजारों-लाखों सैलानियों के लिये आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। धार्मिक स्थलों के रुप में जहाँ एक ओर फौजदारी बाबा बासुकिनाथ, शुंभेश्वरनाथ, दानीनाथ, चूटोनाथ, सिरसानाथ, भालसूमर, मलूटी, शिवपहाड़, पंचवाहिनी शिवमंदिर (शिकारीपाड़ा) धर्मस्थान (दुमका) महर्षि मेही आश्रम (दुमका) इत्यादि की ओर पूजा-अर्चना के लिये भक्तों व सैलानियों की पिछले कई वर्षों से भारी भीड़ जारी है, वहीं दूसरी ओर मसानजोर (भारत व कनाडा के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 1954 में निर्मित) डैम, वानस्पतिक उद्यान सृष्टि (कुरुवा), श्री साईं शिरडीधाम (ननकू कुरुवा), तातलोई (बारापलासी) वक्रेश्वर (रानेश्वर) नूनबिल (मसलिया) मयूराक्षी नदी तट (हिजला) हमेशा सैलानियों के आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। प्रति वर्ष दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से लेकर नूतन वर्ष के प्रवेश माह जनवरी के अंतिम सप्ताह तक स्कूल व काॅलेजों के छात्र-छात्राओं, बच्चों सहित उनके अभिभावकों, तीर्थ यात्रियों, पुरातात्विक विश्लेषकों व पर्यावरणविद्ों के लिये भ्रमण का यह अनूठा अवसर होता है। इस प्रकार क्रिसमस से लेकर गणतंत्र दिवस तक पूरे उत्साह के साथ आस्थावानों व सैलानियों का भ्रमण दुमका परिक्षेत्र में देखने को मिलता है। पूरी विविधता के बावजूद एकता का बेजोड़ संगम इस क्षेत्र की अपनी एक खास विशेषता रही है। संताली, बंग्ला, हिन्दी, खोरठा व नागपुरी भाषा-भाषी लोगों के हुजूम से गुंजायमान दामिन-ई-कोह (पहाड़ों की गोद में बसे क्षेत्र) की भाषाई, वैचारिक व आध्यात्मिक समृद्धि की स्वर्णिम पहचान का ही प्रतिफल है कि वर्षों-वर्षों तक अपने शिष्ट आचरण व आतिथ्य सत्कार से इस क्षेत्र के निवासी यहाँ पहुँचने वालों की आत्मा में घर कर जाते हैं। यूँ तो दुमका का सर्वाधिक आकर्षक वाला स्थान फौजदारी बाबा बासुकिनाथ सहित मसानजोर व मलूटी है किन्तु शिकारीपाड़ा प्रखण्ड मुख्यालय से 8 कि0मी0 दक्षिण पहाड़ व जंगल के बीच ब्राहमनी नदी तट पर कामना सिद्ध के रुप में प्रसिद्ध महादेव भी कम ख्यातिप्राप्त नहीं हैं। इसी तरह दानीनाथ मंदिर का इतिहास भी काफी रोचक है। दुमका-पाकुड़ मार्ग पर काठीकुण्ड में अवस्थित इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि एक भक्त को भगवान ने स्वप्न देकर खुद को प्रतिष्ठापित करने का आग्रह किया था। दुमका से तकरीबन 45-50 कि0मी0 की दूरी पर स्थित टेराकोटा शैली में निर्मित व प्रसिद्ध 108 मंदिरों का समूह गाँव मलूटी इन दिनों पूरे देश के लिये आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। अन्तरराष्ट्रीय टूरिज्म क्षेत्र के रुप में मलूटी का नाम दर्ज हो इसके लिये केन्द्रीय पुरातत्व विभाग से लेकर झारखण्ड सरकार ने कई अहम फैसले लिये हैं। मंदिरों के पुनर्निर्माण का कार्य जारी है। राज्य सरकार ने दीवानी बाबा बैद्यनाथ (देवघर) से लेकर फौजदारी बाबा (बासुकिनाथ) और फिर वहाँ से मलूटी (शिकारीपाड़ा) तथा आगे प0 बंगाल के तारापीठ तक एक टूरिज्म काॅरीडोर बनाने का निर्णय लिया है जिसके लिये प0 बंगाल सरकार के साथ वार्ता की पहल जारी है। तकरीबन पौने दो सौ कि0मी0 की दूरी तक टूरिज्म काॅरीडोर बनने से आस्थावानों सहित प्रकृति व पर्यावरण प्रेमियो के लिये यह इलाका अन्वेषण व शोध का क्षेत्र हो सकता है। मसानजोर डैम में प्रतिवर्ष हजारो की तादाद में सैलानियों का पहुँचना, डीजे व अन्य अत्याधुनिक वाद्य यंत्रों, उच्च तकनीक साउण्ड व म्यूजिक पर डांस तथा प्रकृति प्रदत्त मनोहारी दृश्यों का अवलोकन पूरे वर्ष के लिये मन में ताजगी व संतुष्टि का पैगाम लिये होता है। बन्दरजोरी मिशन, सालदाहा मिशन, बेनागुड़िया मिशन, दुधानी मिशन व मोहुलपहाड़ी मिशन के तत्वावधान में यूएस, ब्रिटेन, नार्वे, व अन्य देशों से ट्राईबल सोसायटी, देयर लिविंग व एजुकेशन एण्ड अदर्स के लिये प्रतिवर्ष विदेशी लोगों का एक विशाल समूह भी इस क्षेत्र की यात्रा व अनुसंधान के लिये संताल परगना आना नहीं भूलता। क्रिसमस से लेकर नूतन वर्ष के प्रारंभिक महीनें जनवरी तक येन-केन-प्रकारेण छुट्टियों में भ्रमण व मौज-मस्ती में ही अपना पूरा वक्त गुजार देते हैं। ईश्वर की अराधना, पूजा-अर्चना व आध्यात्मिक गतिविधियों ंमें जहाँ एक ओर कुछ अपना समय व्यतीत करना उचित समझते हैं वहीं दूसरी ओर देशी-विदेशी शराब, मांसाहारी खाद्य पदार्थों, नृत्य, गीत-संगीत, आमोद-प्रमोद में कुछ का समय व्यतीत होता है। फेसबुक, ट्वीटर, गुगल्स, ओरकुट, यू-ट्यूब, इत्यादि जैसे संचार-प्रसार व्यवस्था जिसे सोशल मीडिया के नाम से लोग जानते हैं के इस जमाने में युवाओं का खासा ध्यान चीजों को कम्प्यूटर, लैपटाॅप के अन्दर कैद कर इंटरनेट के जरिये उसे दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने की रहती है। पूरी विविधता में आपसी सौहार्द, एकता व भाईचारे के साथ इस क्षेत्र मंे पहुँचने वाले लोग मनाते हैं खुशियाँ तथा देते है एक-दूसरे को क्रिसमस व नूतन वर्ष की बधाईयाँ।
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