सीटू प्लस आधार पर किसानों के लागत डेढ़ गुणा मूल्य व कर्ज माफी पर बजट खामोशबटाईदार-छोटे व सीमांत किसानों को वार्षिक अनुदान से भी वंचित रखा गया.मनरेगा मजदूरों की मजदूरी वृद्धि पर बजट में कुछ भी नहीं.शिक्षा-स्वास्थ्य-ग्रामीण विकास योजनाओं की राशि में भारी कटौतीमध्य वर्ग के लिए कर में छूट लेकिन उनके बेरोजगार बच्चों के लिए रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं.स्कीम वर्करों के 18000 रु. न्यूनतम मजदूरी की बजट में उपेक्षा.ठेका-मानेदय पर बहाली खत्म कर सम्मानजनक रोजगार के सवाल पर भी बजट है चुप.
पटना 1 फरवरी 2019, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने केंद्र सरकार द्वारा पेश अंतरिम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि देश के आंदोलनरत मजदूरों-किसानों-बेरोजगारों-स्कीम वर्करों के साथ छलावा है. बजट में 2 हेक्टेयर यानि 5 एकड़ तक के किसानों को 6000 रु. वार्षिक अनुदान का आश्वासन दिया गया है जबकि देश के किसान सीटू प्लस आधार पर लागत मूल्य के डेढ़ गुणा कीमत और तमाम कर्जों की माफी पर लंबे समय से आंदोलित थे. बजट में इसकी घोर उपेक्षा करके मोदी सरकार ने अपने किसान विरोधी चरित्र का ही परिचय दिया है. इस सीमा निर्धारण से छोटे-सीमांत किसान एकदम से बाहर ही हैं. खेती आज बुनियादी तौर से बटाईदारों के जरिए हो रही है लेकिन सरकार अभी भी बटाईदारों को किसान नहीं मान रही है और उन्हें इस अनुदान से बाहर रखा गया है. बटाईदार किसानों के लिए तमाम प्रकार की सरकारी सहूलियतों की मांग एक लोकप्रिय मांग रही है, लेकिन अंतरिम बजट इस पर एक शब्द भी नहीं बोलता. अंतरिम बजट में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को पेंशन देने की बात भी महज भी छलावा है. इस पेंशन योजना की हकीकत यह है कि जब कोई मजदूर 18 साल की उम्र से प्रतिमाह 55 रु. और 28 साल के बाद प्रतिमाह जब 100 रु. जमा करेगा तब 60 साल की उम्र में जाकर सरकार उसे 3 हजार रु पेंशन देगी. यह घोर मजाक है. असली समस्या रोजगार की है. सरकार उनके लिए न्यूनतम मजदूरी की कोई गारंटी नहीं कर रही है. बजट में रोजगार सृजन की भी उपेक्षा की गई है. मनरेगा जैसी योजना में मजदूरी में कोई वृद्धि नहीं की गई है जबकि मनरेगा मजदूरों की मजदूरी 500 रु. प्रतिदिन करने लोकप्रिय मांग रही है. आज तमाम क्षेत्रों में ठेका आधारित वर्करों की बहाली की जा रही है. 18 हजार रु. मानदेय के सवाल पर भी सरकार ने चुप्पी साध ली है और स्कीम वर्करों की मांगों की उपेक्षा की गई है. सम्मानजनक रोजगार, न्यूनतम मजदूरी व रोजगार के नए अवसरों के सृजन पर बजट में कुछ भी नहीं दिया गया है. शिक्षा बजट में भी कटौती करके शिक्षा के निजीकरण के अभियान को ही मजबूत बनाया गया है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट में पिछले बजट की तुलना में राशि घटा दी गई है. सरकार स्वास्थ्य बीमा की बात कह रही है लेकिन देश में सरकारी अस्पतालोें की हालत बेहद खस्ता है. इसका मतलब है कि स्वास्थ्य को भी सरकार निजी क्षेत्रों के हवाले कर रही है. ग्रामीण विकास के भी मद में कटौती कर दी गई है. मध्य वर्ग के लिए कर में छूट की बात तो की गई है लेकिन उन समुदायों से आने वाले बेरोजगार युवाओं के लिए बजट में कुछ भी नहीं कहा गया है.
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