20 लाख आदिवासी परिवारों के समक्ष आवास और आजीविका का खतरा पैदा हो गयाकेन्द्र की उपेक्षा के कारण आदिवासियों के आवासीय और आजीविका के अधिकार पर प्रश्न
ग्वालियर। केन्द्र सरकार की उपेक्षा के कारण 20 लाख आदिवासी परिवारों के समक्ष आवास और आजीविका का खतरा पैदा हो गया है। उक्त बात एकता परिषद के अध्यक्ष रन सिंह परमार ने ग्वालियर में आयोजित भूमि अधिकार की मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की बैठक में कही। एकता परिषद के अध्यक्ष रन सिंह परमार ने कहा कि वन्यजीव समूह द्वारा दायर की गई याचिका में अदालत के आदेश के बेदखली के आदेश के बाद मूलनिवासियों के अधिकार पर खतरा और संकट पैदा हो गया है। इस मामले में केन्द्र सरकार की उदासीनता की निंदा करते हुए उन्हांेने कहा कि वन अधिकार मान्यता कानून के लागू हुए 10 साल पूरे हो रहे हैं जिसमें पूरे देश में 42 लाख से अधिक आदिवासियों के दाखिल दावे के सापेक्ष 38 लाख दावों पर कार्यवाही की गयी और उसमें से 18 लाख परिवारों को वनाधिकार मिला है। इस तरह से 20 लाख परिवार जो दूर दराज वन क्षेत्रों में रहते हैं और उनकी आजीविका का एक मात्र साधन खेती और वनभूमि है उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। मध्यप्रदेश के अनिल भाई ने कहा जिन परिवारों को अधिकार दिया गया वह उनके द्वारा काबिज वनभूमि से कम है और सबूतों के अभाव और प्रक्रियाओं की जानकारी के अभाव के कारण और वनविभाग द्वारा सबूत नहीं दिये जाने के कारण आदिवासियों ने अपनी पैरवी ठीक ढंग से नहीं कर पायी और उनके दावे निरस्त हो गये। उन पर पुनर्विचार किये जाने की आवष्यकता थी। छत्तीगसढ से आये अरूण भाई ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय में इस प्रकरण की सुनवाई हो रही थी उस समय केंद्र सरकार को आदिवासी और वनवासी समाज का पक्ष मजबूती के साथ रखना था लेकिन आदिवासी और वनवासी हितों के अधिकारों के लिए सरकार उदासीन रही जिसका परिणाम भी सामने है। प्रशांत पी.व्ही ने कहा कि सबसे बड़ा प्रष्न उन 20 लाख परिवारों के सामने होगा जो बेदखल होंगे क्या सरकार के पास इस तरह की कोई योजना है जिसमें उनको सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हक दिया जा सके। राजनांद गांव जिले से आयी बिरोहित आदिवासी ने कहा कि आदिवासियों के साथ किये गये ऐतिहासिक अन्याय को दूर करते हुए यह कानून यूपीए सरकार के समय लाया गया था, एनडीए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी को कमजोर कर आदिवासी अस्मिता के साथ खिलवाड़ की है। छत्तीसगढ़ से आये सीताराम सोनवानी ने कहा कि सरकार ने जो दावा स्वीकृत किया है वह उंट के मुंह में जीरा समान है, इससे आदिवासी और वनवासियों का हित बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा। मुरली भाई ने केन्द्र सरकार की उपेक्षा की भर्सत्ना की। भूमि अधिकार बैठक में शामिल सभी सदस्यों ने केन्द्र सरकार से मांग किया कि सरकार इस आदेश में रिव्यू पिटीशन दाखिल कर आदिवासी हितों को सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखे जिससे आदिवासी समाज का स्वाभिमान और सम्मान की सुरक्षा की जा सके। बैठक में मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ से शिवपुरी, ग्वालियर, रायसेन, उमरिया, डिंडौरी, राजनांद गांव, कोरिया, सरगुजा, रायपुर, गरियाबंद जिलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
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