बनमनखी (आर्यावर्त संवाददाता) : कभी नेताओं के लिए चुनावी वैतरणी पार लगाने का जरिया रही चीनी मिल इस बार चुनावी वादों से दूर रही। लिहाजा बनमनखी के लोगों के लिए इस बार का चुनाव काफी खास रहा। खास इस मायने में कि लोकसभा चुनाव को लेकर प्रचार अब थम गया लेकिन बंद पड़ी मिल पर सत्ता और विपक्ष दोनों की चुप्पी सधी रही। मिल की तकदीर संवारने का वादा कर चुनावी वैतरणी पार लगाने की जुगत लगाने वाले नेताओं के लिए इस मामले में जुबान इसकी दुर्दशा को देखकर नहीं खुली। गौरतलब है कि दशकों तक बनमनखी की नाक रही मिल की दुर्दशा ने पिछले चार सालो में रफ्तार पकड़ ली। मसलन विधानसभा चुनाव तक नेताओं को मुद्दा देने वाली मिल इस बार उनकी जुबान पर जगह तक नहीं बना पाई। हालांकि राहत भरी बात यह रही कि इसके कामगारों का बकाया चुका कर उनके साथ सरकार ने सहानुभूति जरूर दिखाई, लेकिन पूरी तरह अपनी अस्मिता लूटा चुकी मिल का भविष्य लगभग तय हो गया है।
...होती रही चोरी, बंद रही जुबान :
वैसे तो बंद होने के कुछ साल बाद से ही मिल से सामान गायब होने लगे थे। लेकिन हाल के तीन चार सालों में इसपर पूरी तरह चोरो को कब्जा हो गया। प्रशासनिक अकर्मणता का बेहतरीन उदाहरण बनी मिल से होती रही चोरी पर नेताओं की जुबान भी बंद रही। जिससे मिल को बचाने के लिए उठने वाली आवाज भी दफन होती रही। रूस और जापान से मंगाई स्वचालित मशीनों एवं उत्पादन के लिए स्वबिजली उत्पन्न करने वाले संयंत्रों से लैस मिल आज अपने ढांचे को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रही है। लेकिन बनमनखी में विकास की इबारत लिखने का वादा करने वाले नेताओं की आह तक यहां के गौरव रही मिल के प्रति नहीं निकल पाई है। परिणामस्वरूप बेखौफ चोर अब दिन के उजाले में ढांचे तक को गिराने में लगे हैं।
...गौरवशाली रहा इतिहास :
मिल का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। बंदी के वर्ष तक मिल कुल 833 कामगारो के परिवारों का आसरा थी। इनमें मौसमी 543, स्थाई 240 एवं 50 कैजुअल कामगार थे। इसके साथ साथ ही अनुमंडल तथा कोसी इलाके के अलावा असम एवं नेपाल तक के किसानों के लिए गन्ना विक्रय का मुख्य केंद्र रही थी। तब लगभग एक हजार हेक्टेयर में अकेले बनमनखी के किसान गन्ना उत्पादन कर मिल को आपूर्ति करते थे। कम लागत की यह फसल इलाके का मुख्य कैश क्राॅप रहा करता था। मिल की कुल 119 एकड़ जमीन मे से पचास फीसदी पर गन्ना का उत्पादन होता था। इसके अलावा मिल के आसपास दुकान लगाकर भी यहा के लोग रोजगार पाते थे। लेकिन 1998 के बाद से यह गुजरे जमाने की बात हो गई।
...कहते हैं लोग :
अभाविप के प्रदेश सहमंत्री शशिशेखर कुमार का कहना है कि एशिया की सबसे बड़ी इस मिल के बंद हो जाने के कारण एक बड़ा तबका बेरोजगार है। ईमानदार प्रयास होता तो मिल खुल सकती थी। खैर मिल की 119 एकड़ जमीन अब बची हुई है, जिसपर मक्का अथवा आलू आधारित उद्योग लगाकर यहां के किसानों तथा युवाओं को रोजगार का अवसर प्रदान किया जा सकता है। ग्रामीण सुशील कुमार का कहना है कि मिल को मुद्दा बनाकर चुनावी वैतरणी पार लगाने वाले नेताओं को वास्तव में यहां की बेरोजगारी से कोई मतलब नहीं रहा। तभी रोजगार का केंद्र रही मिल अपनी अस्मिता को बचाने के लिए चीखती रही और यहां की एक बड़ी आबादी पलायन को मजबूर होती रही। मिल के कर्मी रहे अमरेंद्र यादव ने कहा कि मिल के बंद हो जाने के बाद बनमनखी की रौनकता समाप्त हो गई। खासकर मिल कामगार तथा यहां के किसानों की हालत बद से बदतर हो गई।
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