कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है।हैरानी की बात है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में देश भर में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का वायदा तो किया है, लेकिन तीन दशकों से विस्थापित कश्मीरी पंडितों पर इस घोषणापत्र में पार्टी एक भी शब्द नहीं बोली। कश्मीरी पंडित यह कैसे भूल सकते हैं कि कुछेक महीने पूर्व ही कांग्रेस अध्यक्ष ने राजस्थान के पुष्कर सरोवर में पूजा-अर्चना के दौरान अपने परिवार के गोत्र का खुलासा करते हुए खुद को दत्तात्रेय कौल ब्राहम्ण बताया था और कहा था कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अपने परिजनों की हित-चिंता को ध्यान में रखते हुए घोषणापत्र में यदि विस्थापित पण्डितों के पुनर्वास की भी चर्चा की गई होती तो कितना अच्छा होता!पण्डितों के घावों पर तनिक मलहम तो लगता। छितराए कश्मीरी पंडित ‘वोट-बैंक’ नहीं है,शायद इसीलिए घोषणापत्र में इस बात को तरजीह नहीं दी गयी।इसके उलट घाटी में रह रहे बहुसंख्यकों की तुष्टि के लिए घोषणापत्र में हर सम्भव प्रयास किये गए हैं। बातचीत से कश्मीर-समस्या का हल खोजा जाएगा,यह बात घोषणापत्र में जरूर कही गयी है।मगर,सवाल यह है कि अगर बातचीत से इस समस्या का हल निकलना होता तो कब का निकल गया होता।पहले भी तो प्रदेश में कांग्रेस समर्थित साझा सरकारें रही हैं।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें