सींचता क्यों है इतना भी अपने खून से
सोचो के सांचे में बसी यादों को।
गुजर गया प्रसंग उसका,
कल के मलबे से निकल रच नया आज।
और जी भर कर जी इन क्षणों में जो रेत सा
सरकता जा रहा है तेरी बेबश मुट्ठी से।
जान ले कि तेरी जिंदगी का मकसद बहुत बड़ा है।
व्यर्थ मत भयभीत हो काल्पनिक कल से।
जड़ता की जकड़ तोड़, सोच की सीमा से बाहर आ,
बढ़, गढ़ नया भविष्य अपने दृढ़, सतत कर्मों से।
संजय कुमार झा की कलम से...
सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (एचआर),
महिंद्रा फर्स्ट च्वाइस व्हील्स, मुंबई।
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