भदोही में सपा की डूबती नैया को बचाने के लिए अखिलेश पहले ही दिखा चुके है बाहर का रास्ता
भदोही (सुरेश गांधी)। गुंडागर्दी, आतंक एवं माफियाओं को पनाह देने वाली सपा का यूपी से सफाया हो गया। लेकिन अब भाजपा उन्हीं माफियाओं, बाहुबलियों या यूं कहे अपराधियों के बूते चुनावी नैया पार करना चाहती है। खासकर वो बाहुबलि खनन माफिया विजय मिश्रा, जिसके चलते भदोही में सपा सफा हो गयी। उसके आतंक से सपा की साख पर बट्टा लगते देख अखिलेश यादव ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन अब उसी आतंकी के दौलत पर रहम कर भाजपा पिछले दरवाजे या यूं कहे सहयोगी दल निषाद पार्टी के जरिए न सिर्फ पनाह देना चाहती है, बल्कि लोकसभा भदोही से प्रत्याशी बनाना चाहती है। जबकि उसे संरक्षण देने के चक्कर में भाजपा के सांसद रहे वीरेन्द्र सिंह की किरकिरी पहले ही हो चुकी है। श्री सिंह का विरोध इस कदर हुआ कि पार्टी को उन्हें बलिया भेजना पड़ा। बता दे, एक दौर वो भी था जब बाहुबलि विजय मिश्रा के दौलत पर मुलायम सिंह यादव से लेकर उनका पूरा कुनबा मेहरबान था। मेहरबानी इस कदर थी कि उसे लोग यूपी का मिनी चीफ मिनस्टर तक कहने लग गए थे। भदोही में कौन सपा से लड़ेगा, किसे पार्टी से निकाला जायेगा, इसे मुलायम नहीं वो खुद तय करता था। उसके कहने पर ही मुलायम ने भदोही के कद्दावर नेता एवं दो बार सांसद रहे रामरति बिन्द को खो दिया। उसी के कहने पर ही रामरति बिन्द की जगह मुलायम ने पहले शारदा बिन्द, फिर छोटेलाल बिन्द और उसके खुद की बेटी सीमा मिश्रा को लोकसभा प्रत्याशी बनाया, लेकिन तीनों बार पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। हाल यह हुआ कि कभी सपा गढ़ रहा भदोही से जब उसके आतंक से पार्टी का जनाधार लगतार कम होता गया, तो कमान मिलने के बाद अखिलेश यादव ने उसे बाहर का रास्ता तो दिखा दिया। मायावती पहले ही उसके आतंक से उबकर जेल भेजवा चुकी है। योगीराज में जब खनन माफियाओं के खिलाफ डंडा चला तो वो सांसद विरेन्द्र सिंह की शरण में पहुंचा, जहां से अपने काले कारनामों को अंजाम देता रहा। वीरेन्द्र सिंह के जरिए पार्टी में पैठ इस कदर बना ली कि उसे योगी के साथ मंच साक्षा करने का मौका भी मिला। लेकिन कहते है न माफिया किसी के नहीं होते, खासकर उस माफिया जिसके लिए भदोही में कहावत है विजय मिश्रा किसी का सगा नहीं, कोई ऐसा बचा नहीं, जिसे उसने ठगा नहीं। वीरेन्द्र सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ और उसके साजिश में पार्टी को उन्हें बलिया भेजना पड़ा। ऐसे में सवाल यही है कि क्या चाल, चेहरा, चरित्र का दंभ भरने वाली बीजेपी भी सपा की राह पर हैं। कहीं ये माफिया भाजपा के लिए कब्रगाह तो नहीं बनेंगे? लेकिन अफसोस है ऐसे माफिया में पिछले दरवाजे के रास्ते बीजेपी अपना भविष्य देख रही है। माना वह ऐसे कुकर्मियों को सीधे पार्टी में इंट्री ना दें, लेकिन पिछले दरवाजे या यूं कहें सहयोगी संगठनों के जरिए पार्टी में तरजीह तो दे ही रही हैं। हो जो भी लेकिन सच तो यही है जिस तरह भाजपा में योग्य, निष्ठावान, ईमानदार व साफ-सुथरे टिकट दावेदारों की उपेक्षा हो रही है, वह घातक साबित होने वाली है। आगे विजय मिश्रा जैसे हत्यारे को पिछले दरवाजे से इंट्री या यूं कहें प्रत्याशी बनाने की तैयारी है। उससे भाजपा के समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं को बुरी तरह से निराश कर दिया है। भाजपा ने अभी तक प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है उसको देख कर यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि स्वयं को दूसरों से अलग का दावा करने वाली यह पार्टी भी सपा के रास्तों पर चल पड़ी हैं। अपने कर्मठ कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा करते हुए उसने बाहुबली, माफिया, चोर-उचक्कों, शूटरों, दलबदलुओं को जिस कदर प्रमुखता दी है, उसने उसकी चुनावी सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। फिरहाल, अभी भी देर नहीं हुआ है। समय रहते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो भदोही जैसी सीट पर जीती बाजी हार सकती है। खासकर विजय मिश्रा जैसे हत्यारे को तो पार्टी में शामिल कराने का मतलब अपने लिए कब्र खोदने के बराबर होगा। गौरतलब है कि रुंगटा अपहरणकांड से सुर्खियों में आएं विजय मिश्रा पर भदोही, इलाहाबाद समेत अन्य जनपदों में लूट, हत्या, डकैती, चोरी आदि के कुल 105 मामले दर्ज है। इसमें सबसे बड़ा जघन्य अपराध साल 2002 के चुनाव में ज्ञानपुर विधानसभा से बीजेपी से चुनाव लड़ रहे गोरखनाथ पांडेय के भाई रामेश्वर पांडेय की 22 फरवरी को मतदानबूथ पर हत्या किए जाने की है। हालांकि तीन-तिकड़म से इस घटना से वह बरी हो गया है। इलाहाबाद में अमवा निवासी कांस्टेबिल महेन्द्र मिश्रा व राकेशधर त्रिपाठी के भाई धरनीधर त्रिपाठी की नृशंस हत्या, पूर्वमंत्री नंदगोपाल नंदी पर आरडीएक्स विस्फोटक से प्राणघातक हमले का आरोपी है। ऐसे अपराधी को पिछले दरवाजे से ही सही अगर भाजपा पार्टी में शामिल करती है तो कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी को गहरा झटका लग सकता है। माफिया विजय मिश्रा के चलते पार्टी को सिर्फ ज्ञानपुर-भदोही ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में जीती हुई बाजी हाथ से निकल सकती हैं। सत्ता की भूखी पार्टी शायद भूल चुकी है कि 2014 लोकसभा चुनाव में देश ने किसी प्रत्याशी को नहीं सिर्फ नरेंद्र मोदी को वोट दिया था।
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