मिथिला का पाग किसका सम्मान ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

मिथिला का पाग किसका सम्मान ?


mithila-pag
मिथिला में पुरुषों को सर पर पाग पहनने का रिवाज है. सच पूछिए तो धोती कुर्ते पर लाल पाग पहनकर पुरुष का व्यक्तित्व ही निखर जाता है पर कुछ वर्षों से यह भी विवाद के घेरे में आ गया है . कुछ लोग इसे मिथिला के आन बान शान से जोड़ने की राजनीति करने लगे हैं, इतना ही नहीं अब यह महिलाओं के बीच भी विवाद का कारण बन गया है . अब औरतें भी इसे अपने मान सम्मान से जोड़ने लगी हैं और कुछ को लगता है कि वे 50% की हकदार हैं तो पाग क्यों नहीं पहन सकतीं . क्या पुरुषों के बराबर में आने के लिए पाग पहनना जरूरी है ? 


 मिथिला में पुरुष पाग यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ही पहनते हैं . यज्ञोपवीत संस्कार यज्ञ संपन्न होने के तुरंत बाद उन्हें सारे नए कपड़ों के साथ पाग पहनाई जाती है और चुमावन होता है. बरुआ पाग पहन पहले भगवान को प्रणाम करते हैं फिर सभी बड़ों से भी आशीर्वाद लेते . यह पाग बरुआ के सम्मान में नहीं पहनाई जाती बल्कि उसके कर्म पूजा पाठ की उस दिन से शुरुआत होती है और ईश्वर को प्रणाम सर ढककर ही की जाती है इसलिए . 



पाग का आजकल राजनीतिकरण होने लगा है और इसे सम्मान से जोड़ दिया गया है. मैथिली के  प्रत्येक कार्यक्रम में कार्यक्रम शुरू होने से पहले मंच पर पाग सम्मान का आयोजन जरूर होता है . परंपरा के नाम पर ऐसे व्यक्ति का भी सम्मान कर देते हैं जिन्हें पाग के बारे में कुछ भी नहीं मालूम . वे सर पर पाग को संभाल भी नहीं पाते पर उन्हें बता दी जाती है, हमारे यहां पाग से सम्मानित करने की परंपरा है .



वैसे तो पाग का मतलब ही सम्मान होता है पर आजकल सम्मान और पुरस्कार की होड़ में इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है और संस्था पाग का भी राजनीतिकरण करने लगे हैं . किसी भी तरह के कार्यक्रम हो सम्मानित करन की व्यवस्था अवश्य होती है . औरतों को भी पाग पहना सम्मानित किया जा रहा है . औरतें भी पाग पहनकर गर्व महसूस करती हैं कि उन्हें भी पुरुष के बराबर का सम्मान दिया गया . मेरा एक प्रश्न क्या पाग पहनकर ही हमारा सम्मान हो सकता है या हम पुरुषों के बराबर हो सकते हैं ? हम पुरुषों का अनुकरण क्यों करें ? औरतों का भी सर पर पल्लू रखकर भगवान या अपने से बड़ों को प्रणाम करने का रिवाज है . यदि 50% हक़ लेना ही है तो पैतृक संपत्ति में लो. मान सम्मान का यदि इतना ही ख्याल है तो दहेज़ न लो न दो बल्कि अपने अधिकार के लिए आवाज उठाओ . वार्ना यह पुरुष प्रधान समाज  ऐसे ही छोटे छोटे सम्मान का ढोंग करते रहेंगे .

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