लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद विपक्ष ने ईवीएम के इस्तेमाल पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। रविवार को 21 पार्टियों ने नई दिल्ली में लोतंत्र बचाओ बैनर के तले प्रेस कांफ्रेंस कर ईवीएम को लेकर गंभीर आरोप लगाए। विपक्षी दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग को ईवीएम की गड़बड़ी के विरोध में ज्ञापन दिया।निस्तारण नहीं हुआ तो मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की घोषणा भी की। ईवीएम पर संदेह करने वाले नेताओं में दिल्ली के मुख्यमंत्री भी हैं,जिन्हें इन्हीं ईवीएम मशीनों ने "छप्परफाड़" 70 में से 67 सीटों पर जीत दिला कर मुख्यमंत्री बनवा दिया था।तब शायद मशीनें सही थीं! कौन नहीं जानता कि आंध्र और पश्चिमी बंगाल के मुख्यमंत्री भी इन्हीं मशीनों द्वारा दर्ज किए गए वोटों से जीतकर मुख्यमंत्री बने हुए हैं! कांग्रेस भी इन्हीं मशीनों के वोटों से जीत कर पंजाब में सरकार बना चुकी है। हाल ही में जब मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इन्हीं मशीनों ने विपक्ष को जीत दिलाई तो कोई भी विपक्षी नेता यह नहीं बोला कि ईवीएम (मशीनों) के साथ छेड़छाड़ हुई है। सत्तारूढ़ पार्टी ने आदरपूर्वक जनता के निर्णय को स्वीकार किया। कितना अच्छा होता यदि उसी समय विपक्ष भविष्य में होने वाले चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर चुनाव आयोग को ज्ञापन देता! जीत-हार मशीने नहीं मतदाताओं की साझी सोच निर्धारित करती है।जीते तो हमारी हवा थी,हारे तो ईवीएम में लोचा था।एक कहावत याद आ रही है: "मीठा मीठा लप लप,कडुआ कडुआ थू थू।"
शिबन कृष्ण रैणा
अरावली विहार,अलवर
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