सुबह सुबह की बात है, छठ पूजा के खूबसूरत भोर की लाली और ठेकुआ की मिठास से उभरी भी नहीं थी कि एकदम से दरवाज़े पर ज़ोर से बेल हुआ और एक बहुत करीबी क्लाइयंट रोते हुए अंदर आयीं और चिल्लाते हुए बोलीं – “मुझे अपने घर नहीं रहना । यहीं रख लीजिए मुझे अपने क्लिनिक पर।”
ये आपके लिए असामान्य और विचित्र हो सकता है । पर मेरे लिए बिलकुल नहीं । क्लिनिक से तो आप समझ ही गए होंगे की मैं एक clinician हूँ। विस्तार से बता दूँ मेरा नाम पल्लवी है और मैं एक मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हूँ। मनोचिकित्सा में समाज कार्य का कोर्स करने के बाद मैंने अपने 10 साल केवल मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित लोगों के चिकित्सा व सेवा में बिता दिया ।लगभग 10000 से ज़्यादा मरीज़ देखे हैं मैंने मानसिक रोग के – डिप्रेशन, घबराहट, OCD, BPAD, schizophrenia, ADHD, मानसिक मंदित, ऑटिज़म, और जाने कितने सारे ऐसे रोग से रोज़ नामकरण होने वाले मरीज़ । उनके पीछे निराश हताश माता पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी और दोस्तों को भागते दौड़ते देखा है । 70 साल के बूढ़े लोग और सात साल के छोटे छोटे बच्चे, अट्ठारह साल को जवान लड़के लड़कियों और नई शादी वाले दूल्हा दुल्हन । मटर्निटी वार्ड से नवजात शिशु को छोड़ कर सीधे हमारे यहाँ भर्ती होती माँ और बोर्ड परीक्षा को छोड़ कर अपने उग्र पिता को भर्ती के लिए किशोर को दौड़ते देखा है । ग्रैजूएशन, एंजिनीरिंग, मेडिकल के पढ़ाई को आधे में छोड़ते हुए, नौकरियों से बिना इच्छा के इस्तीफ़ा देते हुए, डिवॉर्स और शादियों के टूटने की कहानियों से रोईं हूँ हर वक्त ।और हद तब हुई जब ये आम सी बात हो गई कि अपना मरीज़ आत्महत्या से मर सकता है।
बहुत कोशिश की अपने मौजूदगी से इनके दर्द को थोड़ा सा कम कर सकूँ । इतने साल अपने दिलोजान से मेहनत करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैंने कुछ किया ही नहीं है । कोई नहीं समझता इस तकलीफ़ को । मानसिक बीमारी अभिशाप बन जाती है उस व्यक्ति के लिए, उस परिवार के लिए जो इस बीमारी को झेलते हैं । उनका दर्द, उनका हर महीने दवाख़ाना आना, अलग अलग डॉक्टर के चक्कर काटना कि कोई डॉक्टर तो बोले उनका मरीज़ पूरी तरह से ठीक हो जाएगा । सब बेमानी सी लगने लगी मुझे । ऐसा लगने लगा कि सच में मानसिक बीमारी का कोई इलाज नहीं है? हर रोज़ अपने अंदर के इस सवाल को दबाने लगी कि कुछ नहीं कर सकते हम ये लाचारी से जूझते लोगों के लिए ?
“जवाब था सिर्फ़ एक जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य की मज़बूती”
अब कर रहीं हूँ एक कोशिश इस रास्ते पर । आपकी मदद चाहिए इस बीमारी को जानने में समझने में और हो सके तो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचने में । तो आइए जानें की मानसिक स्वास्थ्य है क्या? मानसिक स्वास्थ्य यानि कि हमारे विचार, हमारे सोच, हमारे एहसास, हमारे व्यवहार इन सबका सही तल मेल । और मानसिक स्वास्थ्य के किसी भी एक पहलू – सोच, एहसास और व्यवहार में आकस्मिक बदलाव मानसिक बीमारी है । मानसिक विकार सिर्फ़ उछल कूद करना, नोचना, खसोटना, विचित्र व्यवहार करना, अजीबोग़रीब बातें करना जैसा पागलपन नहीं है । अचानक से रोने का मन करना, अपने पसंद की चीजों में मन नहीं लगना, जो दिनचर्या के काम है उसे करने की इच्छा भी ख़त्म हो जाना मानसिक विकार है।
दुनिया भर में लगभग प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति किसी ना किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है । अनिद्रा, घबराहट, उदासी, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, रुचियों में कमी ये सब मानसिक स्वास्थ्य के अस्वस्थ होने के लक्षण है । सही समय पर अपनी स्थिति को पहचानते हुए खुद के मन को सम्भाल लेना आपको हर प्रकार के मानसिक बीमारी से बचाता है। सबसे आवश्यक है खुल कर बात करना और अपने किसी प्रिय के साथ अपनी सारी समस्याओं को समाधान करना। फिर भी अगर मन शांत ना महसूस हो तो किसी मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या काउन्सिलर की मदद लेनी चाहिए। हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना अति आवश्यक है । जैसे टहलना, रोज़ दूध पीना, साग सब्ज़ी खाने के लिए खुद को प्रेरित करना, “an apple a day keep the doctors away” आदि के युक्तियों से अपने शरीर का ध्यान रखने का प्रयास करते हैं वैसे ही हमें अपने मन का ध्यान रखना चाहिए । समस्याएँ और तनाव जीवन के दो पहिये जैसे हैं; ज़रूरत है खुद की coping और ख़ुश रहने की इच्छा शक्ति को बना कर रखने की। आइए मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के लिए पहल करें और ये वचन लाइन कि अपने आस पास अगर कोई भी व्यक्ति उपर्युक्त लक्षणों से जूझ रहा है तो उसको पूरे सहानुभूति के साथ सही राह दिखाएँगे । तनाव से भागने को नहीं अब जूझने की ज़रूरत है।
पल्लवी गुप्ता ,
आँगन काउन्सलिंग सर्विसेज़,
सामनेघाट , वाराणसी।
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