बिहार बंद से सूबे की थमी रफ्तार, कई जगह भिड़ंत, कई जगह ट्रेनें बाधित, पत्रकार और पुलिस भी रहे निशाने पर
पटना (मुरली मनोहर श्रीवास्तव) CAA और NRC के विरोध में पटना की सड़कों से लेकर बिहार के विभिन्न जिलों में बंद का व्यापक असर रहा। राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के नेतृत्व में महागठबंधन पूरी तरह से बिहार में बंद को सफल बनाने में पूरी तरह से सफल रहे। इस बंद को सफल बनाने के लिए राजद नेता तेजस्वी यादव, शिवानंद तिवारी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा, वीआईपी के मुकेश सहनी के अलावे अन्य दलों ने भी बंद में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। CAA और NRC को लागू नहीं करने को लेकर बिहार बंद के दौरान चारो तरफ सुबह से ही सन्नाटा पसरा रहा। यह सन्नाटा सचमुच CAA और NRC के विरोध में था या फिर राजद के दहशत में इसको लेकर आम से लेकर खास तक के लिए अनसुलझी गुत्थी बन गई है। दरअसल बिहार बंद को लेकर पहले से ही प्रचारित किया जा रहा था कि CAA और NRC के विरोध में बिहार बंद रहेगा। हलांकि खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग इसके खिलाफ एक दिन अशोक राजपथ इलाके में जमकर बवाल काटा था तो 19 दिंसंबर को वाम दलों के बंदी में भी जमकर भूमिका निभायी थी। इस बंद में पप्पू यादव, कन्हैया कुमार पर जहां एफआईआर दर्ज की गई वहीं इस बंद की भी मांग इन्हीं मुद्दों पर था। पहले महागठबंधन भी इसमें शामिल होने वाला था। महागठबंधन तो इसमें शामिल हुआ था मगर इसके सभी कदावर नेता 19 दिंसबर को बंद से खुद को अलग कर लिए थे। क्योंकि इस बंद से राजद ने शामिल नहीं होने का ऐलान कर दिया था। इसीलिए महागठबंधन के नेताओं में रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा दिल्ली, कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा दरभंगा तो हम नेता जीतनराम मांझी भी सामने नजर नहीं आए थे। इन नेताओं में सिर्फ वीआईपी के मुकेश सहनी ही दोनों बंदियों में शामिल नजर आए।
तेजस्वी के इंतजार में जमे रहे मदन और उपेंद्रः
वहीं राजद के नेतृत्व में हुई बंदी में उपेंद्र कुशवाहा, मदन मोहन झा भी सड़क पर उतर आए। इतना ही नहीं इस बंदी के दौरान पटना के डाकबंगला चौराहा पर तेजस्वी के आने के इंतजार में ये दोनों नेता घंटा आसान जमाए रहे और अपने नेता के पक्ष में पहले से ही माहौल बनाए हुए थे। इस तरह से देखा जाए तो महागठबंधन ने अपना नेता तेजस्वी को मान लिया है तभी तो महज तीन दिनों में हुई दो बार की बंदी में राजद के द्वारा हुई बंदी में ही शामिल होकर सारे दृश्य को साफ कर दिया है कि कहीं न कहीं तेजस्वी की अगुवाई में ही आगे की राजनीति की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है।
बंद के दौरान राजद समर्थक भैंस लेकर उतरेः
बिहार बंद के दौरान प्रदर्शनकारी अपनी भैंस लेकर एनएच पर उतर आए और भैंस के ऊपर पोस्टर टांग दिया था कि ‘काला कानून नहीं चलेगा, मैं भारतीय हूं’ तो पटना की सड़कों पर भी कुछ ऐसे समर्थक थे, जो अपनी भैंस को ही सड़क पर लेकर उतर गए और अपना विरोध जताते नजर आए तो जगह-जगह कार्यकर्ताओं ने टायर जलाकर भी प्रदर्शन किया।
ऑटो बंद से परेशान रहे पैसेंजरः
पटना जंक्शन पर ट्रेन से उतरने वाले लोगों को काफी जहमत उठानी पड़ी, क्यों कि एक भी ऑटो सड़कों पर देखने को नहीं मिला। इनके बंद करने के पीछे इनके डर को कहा जाए या फिर बंद का समर्थन ये तो वही जानें। लेकिन बिहार में बंद के लिए कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह ट्रेनों के परिचालन को बाधित किया तो सड़कों पर एक भी प्राइवेट या सरकारी वाहन को चलते नहीं पाया गया। हलांकि पुलिस प्रबंधन भी अपनी तरफ से पूरी तरह से मुस्तैद थी।
समर्थकों ने पुलिस को बनाया निशानाः
बंद समर्थकों ने औरंगाबाद में बंद के दौरान पुलिस वालों को ही निशाना बनाया। पुलिस जब समझाने की कोशिश कर रहे थे उसी वक्त बंद समर्थकों ने पुलिस पर जमकर पथराव कर दिया। जिससे नगर थाना के दारोगा संजय कुमार को पत्थर लगने से उनकी सिर फूट गया। इस घटना की सूचना मिलते ही पूरा प्रशासन हरकत में आया और प्रदर्शनकारियों को कब्जा करने के लिए आंसू गैस भी छोड़ना पड़ा। वहीं नवादा में राजद कार्यकर्ताओं ने थाने पर ही हमला बोल दिया। वहीं नवादा के रजौली के बुंदेलखंड सहायक थाने पर जमकर पथराव किया। इसके बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों में जमकर भिंड़ंत हुई। जबकि मुंगेर में थाना इलाके में बंद समर्थकों और विरोधियों के बीच जमकर झड़प हुई जिसमें दोनों तरफ के लोग बूरी तरह से जख्मी हो गए। प्रदर्शनकारियों ने कई दुकानों में तोड़फोड़ कर समान को बर्बाद भी किया। फुलवारीशरीफ इलाके में बंद के दौरान टमटम पड़ाव के पास दो गुट आपस में ही भीड़ गए। दोनों तरफ से कुछ ही देर में फायरिंग होने लगी। इस फायरिंग में दो दर्जन से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। इसके अलावे बक्सर, आरा, जहानाबाद, गया, समस्तीपुर, मोहनिया, सासाराम, दरभंगा, भागलपुर, सहरसा, सुपौल, वैशाली, मुजफ्फरपुर सहित सूबे के विभिन्न जिलों में बंद समर्थकों ने ट्रेनों और बसों को भी घंटों बाधित किया, साथ ही जगह-जगह सड़कों को भी जाम कर दिया जिससे आवागमन में बहुत परेशानी हुई। बंद को लेकर बिहार के लगभग सभी नीजि स्कूल को प्रबंधकों ने सुरक्षा को अपनाते हुए पहले ही बंद का ऐलान कर दिया था। जबकि बंद समर्थकों की गुंडागर्दी से बचने के लिए शहर की लगभग दुकानें बंद पायी गईं।
लालू का लाल अहंकारीः
बिहार बंद कराए जाने पर जाप नेता पप्पू यादव ने तेजस्वी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि “लालू के लाल अंहकारी है” उन्होंने कहा कि यह बंद खुद के अंहकार के लिए तेजस्वी ने किया। पप्पू यादव ने आगे कहा कि कल बिहार में दारोगा बहाली की परीक्षा है, ऐसे में तेजस्वी यादव को बिहार बंद नहीं करना चाहिए था। राजद अपने अंहकार को सीमित रखें रेल और सड़क को अपने इस अहंकार से दूर रखें। तेजस्वी के नेतृत्व में नागरिकता कानून के खिलाफ बिहार बंद का ऐलान पर महागठबंधन के नेताओं ने समर्थन किया था। हलांकि राजद के बिहार बंद का असर शनिवार की सुबह से ही दिखने लगा था। बंद के दौरान कई छिटपुट घटनाएं भी हुईं। हलांकि इस बंद में तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाया निशाना।
मैदान से गायब रहे तेजप्रतापः
बिहार बंद के दौरान महागठबंधन के सभी दलों के कदावर नेता सड़कों पर तो दिखे लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि तेजस्वी यादव के बंद से उनके ही सहोदर और अपने भाई को दिल से मानने वाले तेजप्रताप ही बंदी के दौरान नजर नहीं आए। एक तरफ जहां तेजस्वी दल के वजूद की लड़ाई लड़ रहे थे साथ में नागरिकता कानून के लिए सड़क पर थे वहीं तेजप्रताप के मैदान से गायब होने को लेकर राजनीति का बाजार गरम हो गया है। बंदी के दौरान नेताओं का डाकबंगला चौराहा जहां केंद्र बना हुआ था, वहीं तेजप्रताप की अनुपस्थिति से एक नया सवाल खड़ा हा गया है। हम आपको बता दें कि तेजप्रताप यादव ने तेजस्वी यादव के साथ ट्वीटर पर एक तस्वीर शेयर की करते हुए पहले बंद को लेकर माहौल तो बना दिए मगर जब सड़क पर उतर कर अपने वजूद को कायम करने की नौबत आयी तो खुद ही सीन से नदारद नजर आए। तेजप्रताप जहां अपने अनुज को अर्जुन बताते रहते हैं वहीं राजनीति के युद्ध भूमि से युद्ध के दौरान अकेले मैदान में छोड़कर खुद ही आउट रहे।
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