नयी दिल्ली 21 दिसंबर, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश में राजनीतिक प्रदर्शनों के बीच देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े प्रोफेसरों, कुलपतियों, शोधार्थियों, वैज्ञानिकों एवं विधिवेत्ताओं समेत अकादमिक जगत के एक हजार से अधिक बुद्धिजीवियों ने इस कानून का समर्थन किया है और इसे भारत की सदियों पुरानी ‘शरणागत वत्सल’ होने की पहचान के अनुरूप करार दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. स्वदेश सिंह और प्रो. अभिनव प्रकाश ने एक सर्वेक्षण में 1100 से अधिक बुद्धिजीवियों से बात की और उस बातचीत में ये निष्कर्ष सामने आया। डॉ. सिंह ने कहा, “देश के कुछ दर्जन प्रोफेसर इस देश के चिंतक विचारक वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उनके द्वारा हिंसक विरोध प्रदर्शन का वैचारिक समर्थन निंदनीय है। सरकार द्वारा लाया गया नया नागरिकता कानून देश की सदियों पुरानी ‘शरणागत वत्सल’ होने की परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें हम सदा से ही पीड़ित समाज को शरण देते आये हैं।”
इन बुद्धिजीवियों ने एक संयुक्त ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं जिसमें कहा गया है कि यह कानून पाकिस्तान अफगानिस्तान एवं बंगलादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर देश में आये लोगों को शरण एवं नागरिकता देने की की बहुत पुरानी मांग को पूरा करता है। 1950 के लियाक़त नेहरू समझौते की विफलता के बाद से कांग्रेस एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) समेत विभिन्न विचारधाराओं वाले तकरीबन सभी दल पाकिस्तान एवं बंगलादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में शरण एवं नागरिकता देने की मांग उठाते रहे हैं जिनमें अधिकांश दलित हैं। बयान में कहा गया है कि हम भारत की संसद एवं सरकार का, धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को अभयदान एवं शरण देने के भारत के सभ्यतागत मूल्यों को बनाये रखते हुए, इन देशों के अल्पसंख्यकों के साथ खड़े होने के लिए समर्थन करते हैं और बधाई देते हैं। हम इस बात से भी संतुष्ट हैं कि पूर्वाेत्तर के राज्यों की चिंताओं का भी पूरा ध्यान रखा गया है। हमें लगता है नागरिकता संशोधन कानून भारत के सेकुलर संविधान के अनुरूप है और उससे धार्मिक आधार पर किसी की भारतीय नागरिकता प्रभावित नहीं होती है। बयान में इन बुद्धिजीवियों ने कहा कि हम इस बात से बेहद क्षुब्ध हैं कि देश में जानबूझ कर दुष्प्रचार एवं भय का माहौल बना कर हिंसा भड़कायी जा रही है। हम सभी पक्षों से संयम बरतने और सांप्रदायिकता एवं अराजकता के जाल में नहीं फंसने की अपील करते हैं। इस वक्तव्य का समर्थन करने वालों में नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति सुनयना सिंह, सोनीपत की बीपीएस यूनिवर्सिटी की कुलपति सुषमा यादव, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार, उस्मानिया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार गोपाल रेड्डी, मणिपुर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति आद्य प्रसाद पांडेय, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रजनीश शुक्ला, पटना विश्वविद्यालय के विधिविभाग के प्रो. गुरुप्रकाश, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में डीन प्रो. अनीउल हसन, आईसीएसएसआर की सीनियर फैलो मीनाक्षी जैन, विश्वभारती शांतिनिकेतन के डॉ. देबाशीष भट्टाचार्य आदि शामिल हैं।
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