पटना,21 दिसम्बर (आर्यावर्त संवाददाता) आवासीय भूमिहीनों के लिए सरकारों ने कुछ नहीं किया है।इसके आलोक में गैर सरकारी संस्थाओं ने वासभूमि स्वामित्व कानून निर्माण करने की मांग करने लगे हैं। यह देखा जा रहे है कि सरकार के द्वारा गैर सरकारी संस्थाओं की मांग वासभूमि स्वामित्व कानून निर्माण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।हालांकि पहलकदमी में मुख्यमंत्री ने भूमि सुधार आयोग गठित की थी,मगर आयोग के अध्यक्ष देववत्त बंद्धोपाध्याय की अनुशंसा को लागू करने में हिचकने लगी। मालूम हो कि बिहार भूमि सुधार कानून निर्माण करने में अव्वल रहा है।उस समय अनुसूचित समुदाय के अधिकांश परिवार भूमिहीन मजदूर थे जो आज भी कमोवेश है। उनके पास खेती की जमीन नहीं हैं।बताते चले कि ऐतिहासिक तौर पर वे परम्परागत जजमानी कमिया व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा के दौरान भू-मालिकों द्वारा दी गई भूमि पर बसे हुए, परन्तु बंधुआ मजदूर थे। हालांकि स्वतंत्रता के पश्चात विभिन्न परिस्थतियों के कारण सरकारी एवं सार्वजानिक भूमि, पर्वतीय, पठारी क्षेत्र, नदी के तट पर या गांव में आहार अथवा टाल के किनारे अनुसूचित समुदाय के लोगों ने अपनी बस्ती बनानी आरम्भ कर दी थी। इस समय विकास के नाम पर विस्थापित किया जा रहा है।
इस प्रकार की प्रवृत्ति के विकसित होने की मुख्य वजह भूमिहीनता, जनसंख्या दबाव, कृषि का आधुनिकीकरण , पूंजीवादी कृषि व्यवहार का विकास ,वं परम्परागत संरक्षक-आश्रित श्रम संबंधों के लोप होने के कारण हुआ। इनमें से अधिकांश अनुसूचित परिवारों के पास अपनी आवासीय भूमि की, जहां वे ,क लम्बे समय से रह रहे हैं, वैध दावेदारी नहीं है। हालांकि बिहार में पहले से बिहार प्रीविलेज्ड पर्सन्स होमस्टैड टेन्नेन्सी ,ऐक्ट (1947) तथा कई अन्य प्रावधान व नीतियों की व्यवस्था की गई है, जिससे कि भूमिहीनों को रैय्यती, गैरमजरूआ ,वं गैरमजरूआ खास व अधिशेष सरकारी जमीनों का कानूनी मालिकाना हक मिले। किन्तु अनुसूचित समुदाय के सदस्यों को इन प्रावधानों व कानूनों का कोई लाभ नही मिल सका है। सरकारी अधिकारी और संस्थानों का अनुसूचित समुदाय के अधिकारों और दावेदारी के प्रति रवैया निराशापूर्ण ही रहा है। इसलिए, क्रियान्वयन हेतु बने हुए, नियमों और कानूनों की उपेक्षा हुई है। आवासीय भूमि का अधिकार प्राप्त करने में संलग्न प्रशासनिक प्रक्रिया एवं प्रावधान तथा कागजी कार्यवाई इतनी जटिल व कठिन है कि भूमिहीन ग्रामीण अनुसूचित समुदाय के लोगों को इस प्राक्रिया को समझने तथा संयोजित करने और इसके माध्यम से कानूनी भू-अधिकार प्राप्त करने में अत्यन्त कठिनाई होती है।
पहले सामाजिक न्याय की सरकार और उसके बाद न्याय के साथ विकास की सरकार दोनों ने भूमिहीनों के लिए कुछ नहीं किया। भूमिहीनों को आत्मसम्मान की बजाए सरकारी व सामाजिक उपेक्षा मिली है। अब जरूरी है कि वासभूमि स्वामित्व कानून निर्माण बने। आवास की वैकल्पिक व्यवस्था के बगैर सड़क, रेलवे मार्ग, तटबंध, श्मशान में बसे लोगों को अपने घरों से बेदखल कर दिया जाना मानवाधिकार का उल्लंघन है। बिहार की आबादी में बहुत बड़ा हिस्सा एेसे लोगों का है, जिनके सिर पर अदद छत के लिए भूमि नहीं है। बिहार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की 65.55 प्रतिशत आबादी है, जिसमें 1 करोड़ 16 लाख 52 हजार 296 परिवारों के पास जमीन नहीं है। बिहार राज्य आवासीय भूमि अधिकार अधिनियम 2019 सभी ग्रामीण गरीब परिवारों को आवास के लिए कम से कम 10 डिसमिल भूमि का अधिकार देता है। राज्य में वास की भूमि स्वामित्व कानून बनाने, भूदान व सीलिंग की जमीन की समीक्षा कर शेष जमीन दलित भूमिहीनों को वितरित करने, सभी जमीनों का मालिकाना अधिकार परिवार के वयस्क महिला सदस्य के नाम पर देने की मांग रखी। जन संगठन एकता परिषद के बैनर नौबतपुर प्रखंड परिसर में टेबुल लगाकर जन संवाद कार्यक्रम किया। एकता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी, राष्ट्रीय नेत्री मंजू डूंगडूंग आदि ने सम्बोधित किए।
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