‘निर्भया’ कहलाए जाने से पहले वो मेरी बच्ची थी, मेरी आँखों का तारा थी।
पटना,15 दिसम्बर। मैं उस लड़की की माँ हूँ जिसे पूरा देश ‘निर्भया’ बुलाता है। मेरा नाम आशा है पर इस देश के कानून में मेरी आशा हर दिन कम होती जा रही है! ‘निर्भया’ कहलाए जाने से पहले वो मेरी बच्ची थी, मेरी आँखों का तारा थी। अगले सोमवार, 16 दिसंबर को 7 साल हो जाएंगे जब मेरी बच्ची के साथ 6 हैवानों ने गैंगरेप किया और फिर चोट के कारण उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनमें से 4 को अभी भी सज़ा मिलनी बाकी है। मैं इंसाफ़ का इंतेज़ार करते-करते थक गई हूँ। अब मेरे पास सब्र नहीं बचा है। लाखों-करोड़ों भारतीयों के पास भी बलात्कारियों को देश पर हँसते देखने का सब्र नहीं बचा है। लेकिन मैं और सारा देश चैन से नहीं बैठेंगे जबतक मेरी बेटी के गुनहगारों को सज़ा नहीं मिल जाती। मैं सबकुछ खोकर भी अबतक इसलिए लड़ पा रही हूँ क्योंकि मेरे पास बस एक आशा ही बची है। आशा कि मेरी प्रार्थना सुनी जाएगी। इसी आशा में हूं, माननीय प्रधानमंत्री से अनुरोध करें कि वो निर्भया के केस में हस्तक्षेप करें और उसे जल्द से जल्द न्याय दिलाएं। साथ ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा के केस में फास्ट-ट्रैक ट्रायल के लिए एक समय सीमा तय की जाए। अभी कुछ दिन पहले हैदराबाद में देश की एक मासूम बेटी के साथ बर्बरता हुई। रोज़ ही देश में ऐसे अपराध होते हैं। मैं अच्छे से समझ सकती हूँ कि उन परिवारों पर क्या गुज़रती होगी। मैं सरकार को बताना चाहती हूँ कि हम अकेले नहीं हैं। लाखों-करोड़ों भारतीयों का सब्र अब खत्म हो चुका है और वो निर्भया को न्याय मिलते देखना चाहते हैं। निर्भया के गुनहगारों को सज़ा मिले। एक माँ को इंसाफ़ चाहिए। इस देश की हर माँ को ये हौसला चाहिए कि यहाँ बेटियाँ सुरक्षित हैं। मुझे ये आशा देने के लिए आपका दिल से धन्यवाद : आशा देवी।
इस बीच फांसी के फंदे बनाने के लिए प्रसिद्ध बिहार की बक्सर जेल को इस सप्ताह के अंत तक फांसी के 10 फंदे तैयार रखने का निर्देश दिया गया है। इस निर्देश के साथ ही बक्सर जेल में फांसी के फंदे बनाने का काम शुरू हो गया है। बक्सर जेल फांसी के फंदे बनाने में दक्षता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि संसद हमले के मामले में अफजल गुरु को मौत की सजा देने के लिए रस्सी के जिस फंदे का इस्तेमाल किया गया था, वह इसी जेल में तैयार किया गया था।
बक्सर जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा ने बताया, 'हमें पिछले सप्ताह जेल निदेशालय से फांसी के 10 फंदे तैयार करने के निर्देश मिले थे। हमें नहीं पता कि इन फंदों का इस्तेमाल कहां होगा। अभी तक चार से पांच फंदे बनकर तैयार हो गए हैं।' उन्होंने कहा कि संसद हमले के मामले में अफजल गुरु को मौत की सजा देने के लिए यहां के बने फंदे का इस्तेमाल किया गया था या नहीं, यह उन्हें नहीं पता है, लेकिन उन्हें सिर्फ यह याद है कि उस समय भी यहां से रस्सी के फंदे बनवाकर मंगाए गए थे। बक्सर जेल में फांसी के फंदे तैयार किए जाने का इतिहास कफी पुराना है। फंदे तैयार करने के लिए खास किस्म के धागों का इस्तेमाल किया जाता है और इसे बनाने में जिन कैदियों को लगाया जाता है, उसकी निगरानी दक्ष लोगों द्वारा की जाती है। उन्हीं की निगरानी में फंदे तैयार किया जाते हैं और फिर जहां जरूरत होती है, वहां भेज दिया जाता है। जेल अधीक्षक अरोड़ा ने बताया कि फंदे बनाने के लिए पिछली बार जिस रस्सी का इस्तेमाल किया था, उसे 1725 रुपये की दर पर बेचा गया था। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि महंगाई और इसमें इस्तेमाल होने वाले धागों की कीमतेंबढ़ी हैं, इसलिए इस बार फंदे वाली रस्सियों की कीमतें थोड़ी बढ़ सकती है। उन्होंने बताया, 'बक्सर जेल में लंबे समय से फांसी के फंदे बनाए जाते हैं और एक फांसी का फंदा 7200 कच्चे धागों से बनता है। एक लट में करीब 154 धागे होते हैं, जिन्हें मिलाकर 7200 धागों का कर लिया जाता है। एक रस्सी बनाने में तीन से चार दिन लगते हैं, और यह काम पांच-छह कैदी करते हैं। इसे तैयार करने में थोड़ा मशीन का भी उपयोग किया जाता है।' इसकी विशेषता के संदर्भ में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह रस्सी आम रस्सियों से ज्यादा मुलायम रहती है तथा इसकी क्षमता 150 किलोग्राम वजन उठाने की रहती है। बहरहाल, कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि दिल्ली में सात साल पहले हुए निर्भया कांड के दोषियों को इस महीने के अंत में फांसी दी जा सकती है, जिसमें यहां बन रही रस्सियों का उपयोग हो सकता है।
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