पटना/नयी दिल्ली, 20 दिसंबर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को घोषणा की कि प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) राज्य में लागू नहीं होगा। इसके बाद इस विवादास्पद फैसले का विरोध करने वाले वह सत्तारूढ़ राजग के पहले प्रमुख सहयोगी बन गये हैं। कई गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री पहले ही इसका विरोध कर रहे हैं। जदयू नेता ने एनआरसी लागू करने के खिलाफ आवाज उठाई तो केंद्र सरकार ने भी इस व्यापक कवायद को लेकर आशंकाओं को खारिज करने का प्रयास किया। गृह मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि जिस किसी का जन्म भारत में एक जुलाई, 1987 से पहले हुआ हो या जिनके माता-पिता का जन्म उस तारीख से पहले हुआ हो, वे कानून के अनुसार भारत के वास्तविक नागरिक हैं और उन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम या संभावित एनआरसी से चिंता करने की जरूरत नहीं है। नये संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में प्रदर्शनों के बीच नीतीश ने अपनी पार्टी का रुख साफ किया और इस बारे में पत्रकारों के सवालों का सीधा जवाब दिया। पटना में भारतीय सड़क कांग्रेस के 80वें वार्षिक अधिवेशन से इतर मीडियाकर्मियों ने जब एनआरसी पर सवाल पूछा, “काहे का एनआरसी? बिलकुल लागू नहीं होगा।” राजग में शामिल दलों में से जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने एनआरसी को अखिल भारतीय स्तर पर लागू करने के खिलाफ आवाज उठाई है।
भाजपा की एक और सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी ने भी एनआरसी पर विरोध का संकेत देते हुए नागरिकता कानून पर केंद्र सरकार से दूरी बनाने का प्रयास किया। लोजपा ने कहा कि देशभर में हो रहे प्रदर्शन बताते हैं कि केंद्र सरकार समाज के एक बड़े वर्ग के बीच भ्रम को दूर करने में नाकाम रही है। संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करने वाली लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा कि देश के अनेक हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं और लोग एनआरसी को संशोधित कानून के साथ जोड़कर देख रहे हैं। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी एनआरसी का विरोध कर चुके हैं। एक दिन पहले ही नीतीश ने गया में एक जनसभा में साफ किया था कि वह गारंटी देते हैं कि उनके सामने अल्पसंख्यकों के साथ अनुचित बर्ताव नहीं किया जाएगा। पूरे देश में एनआरसी लागू करने की संभावना के सवाल पर गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि इस पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘हम लोगों से यह अपील भी करते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की तुलना असम में एनआरसी से नहीं की जाए क्योंकि असम के लिए कट ऑफ अलग है।’’ सीएए पर विरोध जताते हुए कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस शासित राज्यों में यह ‘असंवैधानिक’ कानून लागू नहीं किया जाएगा। उन्होंने कोच्चि में पीटीआई से कहा, ‘‘कांग्रेस शासित राज्यों में इस कानून को लागू करने का सवाल ही नहीं है। यह एक असंवैधानिक कानून है। राज्यों को एक असंवैधानिक कानून को लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।’’ सीएए को उच्चतम न्यायालय में चुनौती के संदर्भ में वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘राज्यों की किसी असंवैधानिक कानून को लागू करने की जिम्मेदारी नहीं है।’’ लेकिन केंद्र ने कहा कि राज्य सरकारों के पास सीएए के क्रियान्वयन से इनकार करने का अधिकार नहीं है क्योंकि कानून को संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के तहत लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) को भी लागू करने से इनकार नहीं कर सकतीं जो अगले साल लाया जाना है। उनका बयान पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की उस घोषणा के बाद आया जिसमें उन्होंने सीएए को ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया और कहा कि उनके राज्यों में इसके लिए कोई जगह नहीं है। अधिकारी ने कहा, ‘‘राज्यों को केंद्रीय कानून को खारिज करने की शक्ति प्राप्त नहीं है जो संघ सूची में शामिल है।’’ संविधानी की सातवीं अनुसूची की संघ सूची में रक्षा, विदेश मामले, रेलवे और नागरिकता समेत 97 चीजें शामिल हैं। अगले साल जनगणना की कवायद के साथ लाए जाने वाले एनपीआर के संदर्भ में अधिकारी ने कहा कि कोई भी राज्य इससे इनकार नहीं कर सकता क्योंकि यह नागरिकता कानून के अनुरूप किया जाएगा।
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