सामाजिक संस्था इजाद एवं किया के द्वारा महिला हिंसा के विरुद्ध 16 दिवसीय अभियान चलाने का निश्चय किया गया है। सोमवार को गांधी संग्रहालय, पटना में विचार विमर्श किया गया। यहां पर एक बिगड़ी हुई दुनिया को सवारने की पहल और बदलते हुए परिस्थितियों ने हमारे समाज के सामने समस्याएं बढ़ा दी हैं। जिन्हे सुरक्षा की जरूरत है, उन्हें भेद भाव, हिंसा,उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में विभिन्न समुदाय एवं धर्म की युवतियां गांधी संग्रहालय, पटना में आकर आज विचार विमर्श किए। इस अवसर पर महिला हिंसा के खिलाफ 16 दिवसीय अभियान के तहत शपथ ग्रहण किए।अभियान के दौरान लैंगिक असमानता व कम उम्र में जबरन विवाह आदि को रोकने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाएगा।सोमवार को सामाजिक संस्था इजाद की सचिव अख्तरी बेगम ने कहा कि महिला हिंसा के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है।अभियान का मुख्य उद्देश्य लैंगिक असमानता, कम उम्र में होने वाले जबरन विवाह को रोकने, घटते लिंगानुपात, घरेलू हिंसा और किशोर-किशोरियों के बीच शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाकर लोगों का समर्थन जुटाना है। अभियान के तहत लोगों को शपथ दिलाए गए। मैं एक जागरूक, सजग एवं संवेदनशील व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाऊंगा/बनाऊंगी। मैं समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे के खिलाफ कदम बढ़ाऊंगा/बढ़ाऊंगी।मैं महिलाओं एवं बालिकाओं के ऊपर होने वाले हिंसा के विरूद्ध बोलूगां/बोलूगी। मैं अपना घर में लिंग आधारित असमानता को दूर करने पहल करूंगा/करूंगी। मैं हर महिला एवं बालिकाओं के मान- सम्मान के लिए सजग रहूंगा/रहूंगी। मैं हिंसा न सहूंगा/सहंगी और न होने दूंगा/दूंगी। बताते चले कि 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 4) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में 15-49 आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारिरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। कुल मिलाकर NFHS 4 में कहा गया है कि उसी आयु वर्ग की 6 फीसदी महिलाओं को उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है। आमतौर पर बदनामी के डर से काफी बड़ी संख्या में ऐसे मामले दर्ज ही नहीं हो पाते, खासतौर पर तब जब पीड़िता को अपने पति, परिवार के सदस्य या किसी अन्य परिचित के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी हो।
भारत से इस बुराई को मिटाने के लिए महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को व्यापक सूचना-शिक्षा-संचार (IEC) के जरिए रोकने पर विचार किया जा सकता है। इस प्रकार के अभियान मौजूदा कानूनी प्रावधानों जैसे — घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष)अधिनियम, 2013 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354A, 354B, 354C और 354D का अनुपूरक हो सकते हैं और उन्हें पूर्णता प्रदान कर सकते हैं — ये सभी कानून यौन प्रताड़ना और दर्शनरति तथा पीछा करने जैसे दुर्व्यवहार के अन्य स्वरूपों से सम्बंधित हैं। हालांकि ये कानून तभी प्रभावी हो सकते हैं, जब महिलाएं आगे आएं और दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज कराएं, जो कभी कभार ही होता है। इस तरह, आमतौर पर बदनामी के डर से काफी बड़ी संख्या में ऐसे मामले दर्ज ही नहीं हो पाते, खासतौर पर तब जब पीड़िता को अपने पति, परिवार के सदस्य या किसी अन्य परिचित के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी हो। इसलिए, आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम के लिए बनाए गए ये कानूनी प्रावधान आमतौर पर अपराध होने के बाद पीड़िता को सदमे से उबारने के उपायों के तौर पर ही इस्तेमाल होते हैं। 2013 में, मुम्बई पुलिस ने ओआरएफ के साथ साझेदारी करके “मुम्बई को महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने” के अभियान के तहत एक विज्ञापन अभियान की शुरुआत की। इसके तहत महिलाओं को आगे आने और महाराष्ट्र पुलिस की हेल्पलाइन 103 पर शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उसी साल ओ एंड एम ने एक अन्य अभियान शुरू किया, जिसमें पुलिस ने पुरुषों को चेतावनी दी कि यदि वे महिलाओं के साथ किसी किस्म की हिंसा करेंगे, तो उन्हें उसका अंजाम भुगतना पड़ सकता है। यदि इस तरह के अभियानों को देश भर में बढ़ावा दिया जाता, तो ये अपराध के बाद पीड़िता को सदमें से उबारने का उपाय भर न होकर कानून प्रवर्तन एजंसियों की मदद करते और अपराध की रोकथाम करते।
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