विशेष : अति विशिष्टों की सुरक्षा पर फिर सवाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

विशेष : अति विशिष्टों की सुरक्षा पर फिर सवाल

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अतिविशिष्टों की सुरक्षा पर निरंतर सवाल उठते रहते हैं। उन्हें कैसी सुरक्षा दी जाए, यह भी बड़ा सवाल है लेकिन जिसे सुरक्षा दी जाती है, वह खुद सुरक्षा घेरे को तोड़ देता है। सुरक्षा जवानों को विश्वास में लिए बगैर चल देता है। मतलब उसके लिए अचानक संकट पैदा कर देता है। यह स्थिति बहुत मुफीद तो नहीं है। पिछले दिनों जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की एसपीजी हटाई गई थी और जेड श्रेणी सुरक्षा दी गई थी तो पूरी कांग्रेस ने कोहराम मचाया था कि केंद्र सरकार इन तीनों की हत्या की साजिश कर रही थी लेकिन बिना किसी सुरक्षा के विदेश भ्रमण करने वाले इन तीनों नेताओं को किसी भी कांग्रेसी ने कभी रोका नहीं था। राहुल गांधी पहले ही इस बात का आरोप लगाकर अपनी एसपीजी सुरक्षा हटाने की कई बार मांग कर चुके थे कि  उनकी और उनके परिवार करी एसपीजी के जरिए सरकार निगरानी कराती है। लिहाजा एसपीजी हटा ली जानी चाहिए और जब एसपीजी हट गई तो पूरी कांग्रेस नेहरू—गांधी परिवार की सुरक्षा का रोना रोने लगी।
  
कांग्रेस के स्थापना दिवस समारोह वाले दिन प्रियंका वाड्रा ने जो कुछ भी किया, उससे तो ऐसा लगा कि इस परिवार को सुरक्षा की कोई जरूरत है ही नहीं। प्रियंका को जेड श्रेणी की अतिविशिष्ट सुरक्षा हासिल है लेकिन वे सुरक्षा दस्ते को विश्वास में लिए बगैर ही एक कांग्रेस नेता की बीमार धर्मपत्नी से मिलने निकल पड़ीं। वह नेता जो हाल ही में लखनऊ में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका था और जिसे पुलिस औरजिला प्रशासन वसूली का नोटिस पकड़ाने वाला था। प्रियंका को लखनऊ पुलिस ने सुरक्षा कारणों से रोक लिया तो वे एक कांग्रेस नेता की स्कूटी पर सवार हो गईं। इस बात का भी विचार नहीं किया कि स्कूटी चालक और खुद प्रियंका गांधी के पास हेलमेट नहीं है। यह यातायात नियमों का उल्लंघन है लेकिन  संविधान बचाने की बात करने वाले इस परिवार को देश के कायदे—कानून तोड़ने में ही सुख मिलता है। जब उन्हें स्कूटी से भी नहीं जाने दिया गया तो वे पैदल चलने लगी। उनका सुरक्षा दस्ता भी भटक गया था। जो आदमी जान—बूझकर अपनी सुरक्षा को खतरे में डाले, उसकी सुरक्षा कोई करे भी तो किस तरह? प्रियंका की पैदल यात्रा से लखनऊ को किस कदर जामजनित परेशानियों का सामना करना पड़ा, यह किसी से छिपा नहीं है। उन्होंने इस बात का भी विचार करना मुनासिब नहीं समझा कि उत्तर प्रदेश में निषेधाज्ञा लागू है।अगर वे इस बात का विचार करतीं तो भी आमजन, जिला और पुलिस प्रशासन के लिए परेशानी का सबब न बनतीं।
   
प्रियंका गांधी ने कहा है कि जिस तरह उनकी कार को रोका गया, उससे दुर्घटना हो सकती थी। उनका आरोप है कि एक महिला पुलिसकर्मी ने उन्हें धक्का दिया। उनका गला दबाया। वे गिर गई थीं। कुछ ऐसा ही आरोप सीओ ट्रैफिक ने लगाया है कि उन्हें धक्का दिया गया। प्रियंका के साथ तो कोई बदसलूकी नहीं हुई लेकिन सुरक्षा कारणों से जब उसने प्रियंका गांधी वाड्रा को रोका तो उसे धक्का मारकर गिरा दिया गया। दोनों में कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, यह जांच  का विषय है लेकिन देश के सबसे बड़े दल की राष्ट्रीय महासचिव को क्या सुरक्षा नियमों की अनदेखी करनी चाहिए। उनका यह कहना जायज है कि वे कहां जाएंगी, क्या करेंगी, यह तय करने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए लेकिन वे क्या करेंगी, यह बताने की जिम्मेदारी तो उनकी ही बनती है। प्रियंका अकेले जहां चाहें जा सकती हैं लेकिन उनका अपना सुरक्षा प्रोटोकॉल भी है। वे उसकी अनदेखी कैसे कर सकती हैं? ईश्वर करें, उनके साथ कुछ न हो, वे स्वस्थ और सानंद रहें लेकिन अगर कुछ अप्रिय हो जाता है तो क्या होगा, इसकी उन्होंने कल्पना भी की है। नागरिकता संशोधन कानून पर वे पहले ही कांग्रेसियों को बढ़—चढ़कर आंदोलन करने की नसीहत दे रही हैं। लखनऊ में वे यह कहने से भी नहीं चूकीं कि सपा और बसपा डर रही हैं लेकिन हम इस कानून के खिलाफ लड़ेंगे। हालांकि गला दबाने वाले बयान को लेकर प्रियंका गांधी की जमकर आलोचना हो रही है। हर आम और खास की जुबान पर एक ही सवाल है कि एक अदने से पुलिसकर्मी में इतनी हिम्मत आ ही नहीं सकती कि वह हाईप्रोफाइल प्रियंका गांधी का गला दबा सके।
  
भाजपा के नेता उनके इस बयान के बहाने पूरे परिवार को ही झूठा हरा रहे हैं और अब तो कांग्रेस का नाम ही झूठी पार्टी रखने की सलाह दी जा रही है। राजनीति में रफू करने भर तो झूठ चलता है लेकिन पैबंद बराबर का झूठ दिखता भी है और चुभता भी है। इसमें संदेह नहीं कि कांग्रेस व्यक्ति और परिवार केंद्रित दल बनकर रह गई है। उसके नेता परिवार के कहे को ही ब्रहृमवाक्य मान लेते हैं और उसके पीछे चलने को ही धर्म मान बैठते हैं, इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा? प्रियंका गांधी का सुरक्षा व्यवस्था की अनदेखी का पहला और दूसरा मामला हो सकता है। मेरठ में भी उन्हें और राहुल गांधी को बिना किसी कार्यक्रम के जाने पर पुलिस ने रोका था। लेकिन राहुल गांधी तो सुरक्षा कानून तोड़ते ही रहते हैं। ब्रिटिश नेता डेविड मिलिबैंड के साथ वे एक दलित महिला के घर रात को पहुंच गए थे। वहीं भोजन किया था और एक ही खाट पर दोनों सो गए थे। अपनी न सही, मेहमान की सुरक्षा का तो विचार किया ही जाना चाहिए। इस हालात में ऐसे लोगों को सुरक्षा देने या न देने का वैसे भी कोई मतलब नहीं है क्योंकि करना तो उन्हें मनमानी ही है।

भाजपा और कांग्रेस में आजकल एक दूसरे के नेताओं को झूठा ठहराने की जंग चल रही है। भाजपा जहां राहुल गांधी को झूठ की मशीन बता रही है तो प्रियंका गांधी को झूठ की फैक्ट्री बताने में भी वह गुरेज नहीं कर रही है, वहीं कांग्रेस भाजपा सरकार को जोकर आफ दि र्अयर कह रही है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भी झूठों का सरदार कहा जा रहा है। राहुल गांधी भाजपा पर नफरत की राजनीति का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन जब वे कहते हैं कि असम नागपुर से नहीं चलेगा। भाजपा या संघ के लोग नहीं चलाएंगे तो इससे उनकी सोच का पता चलता है। देश कोई पार्टी नहीं चलाती। देश चलाती है जनता। पार्टी तो उसका प्रतिनिधित्व करती है। पार्टी भी नहीं, उसका एक प्रतिनिधि ही सही मायने में जनता का प्रतिनिधि होता है। इसलिए किसी भी दल को जनता पर शासन करने का मुगालता नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में जनता संप्रभु होती है।  
   
देश भर में कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया गया। सोनिया गांधी ने दिल्ली में, राहुल गांधी ने असम में और प्रियंका गांधी ने लखनऊ में कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया लेकिन इस स्थापना दिवस के केंद्र में भाजपा थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ था। इसमें न विकास था और न ही साथ। विश्वास तो था ही नहीं। भाजपा और संघ पर नफरत की राजनीति का आरोप लगाने वाले नेता खुद क्या कर रहे थे। नफरत की ही तो बात कर रहे थे।कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होता। कीचड़ साफ करने के लिए स्वच्छ जल जरूरी होता है। अराजकता और आंदोलन से देश मजबूत नहीं, कमजोर होता है।
   
कांग्रेस को आत्ममंथन करना चाहिए। उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात भी सुननी चाहिए जो अपने विपरीत होते माहौल को भी अपने पक्ष में करने का माद्दा रखता है। उन्होंने कहा है कि नई पीढ़ी को अराजकता पसंद नहीं है। आने वाला दशक दशक न केवल युवाओं के विकास का होगा, बल्कि, युवाओं के सामर्थ्य से देश का विकास करने वाला भी साबित होगा और भारत आधुनिक बनाने में इस पीढ़ी की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है।आज के युवा व्यवस्था को पसंद करते हैं, हालांकि कभी-कभी वे बैचैन भी होते हैं। युवा व्यवस्था का अनुसरण भी करना पसंद करते हैं और कभी कहीं व्यवस्था ठीक ढंग से प्रत्युत्तर न करे, तो वे बैचेन भी हो जाते हैं और हिम्मत के साथ व्यवस्था से सवाल भी करते हैं।वे यहीं नहीं रुकते, युवाओं को नसीहत भी देते हैं। समझाते भी हैं कि  आगामी 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर प्रत्येक युवा अपने दायित्व का चिंतन जरूर करे और इस दशक के लिए कोई संकल्प ले।

उनका मानना है कि इस देश के युवाओं को अराजकता से नफरत है। अव्यवस्था, अस्थिरता से भी उनको बड़ी चिढ़ है। वे परिवारवाद, जातिवाद, अपना-पराया, स्त्री-पुरुष, इन भेद-भावों को पसंद नहीं करते हैं। युवाओं को सकारात्मकता से जोड़ने का इस तरह का प्रयोग आज का कोई भी कांग्रेसी करता नजर नहीं आता। वे बात तो देशहित की करते हैं लेकिन उनकी पूरी ऊर्जा भाजपा और संघ का विरोध करने में ही चुक जाती है। ऐसा नहीं कि कांग्रेस में प्रतिभाओं की कमी है। वहां विचारकों का अकाल है। संभावनाओं का विराट आकाश है कांग्रेस के पास। उसने लंबे समय तक इस देश का प्रतिनिधित्व किया है लेकिन यह कहने में शायद ही किसी को गुरेज हो कि आज कांग्रेस भटक गई है। उसकी चिंता एक परिवार विशेष तक ही सिमट गई है।
   
देश के विकास के लिए जरूरी है कि समस्याओं की जड़ तक जाया जाए। जड़ को समाप्त किया जाए। इसके लिए अध्ययन—मनन और निदिध्यासन की जरूरत है। राजनीति फुनगियों का चिंतन नहीं है। समस्याएं उस रक्त—बीज की तरह है जो मिटाते ही फिर प्रकट हो जाती हैं। मौजूदा समय बौखलाहट का नहीं है, कांग्रेस के लिए चिंतन—मनन का है। उसे सोचना होगा कि क्या उसका मार्ग देश हित में है। किसी पार्टी का 135वां स्थापना दिवस मायने रखता है। यह अवसर खामियों को तलाशने और बेहतरी के अवसर तलाशने का है। कांग्रेस को आगे बढ़ना है तो जिन राज्यों में उसकी सरकार है, वहां विकास में तेजी लानी होगी। विकास के क्षेत्र में केंद्र सरकार और पूर्व की सरकार द्वारा खींची गई रेखा से बड़ी रेखा खींचनी होगी। जनता के दिल में उतरने का यही मार्ग है। शार्टकट से तो बिल्कुल भी काम नहीं चलने वाला। जननेता को सरकार से अधिक, जनता का संरक्षण होता है लेकिन इसके लिए जनता का मन समझने, उसका काम करने की जरूरत होती है। जो नेता ऐसा करता है, जनता के दिल पर राज करता है।
  
कांग्रेस ही क्यों सभी विरोधी दलों को, देश के विकास के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। विकास के उचित प्रस्ताव भेजने चाहिए। और जहां विकास हो रहे हैं, वहां हो रही गड़बड़ियों का विरोध करना चाहिए। यह विरोध हिंसात्मक ही हो, जरूरी तो नहीं। अच्छा होता कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल, एक दूसरे के कपड़े उतारने की बजाय, विरोध के तौर—तरीकों पर मंथन करते। विकास कार्यों में सरकार का साथ देते और जहां उसे गलत पाते, उसकी आलोचना करते। विपक्ष इस तरह की पहल कर सरकार पर नकेल भी कस सकता है और देश की प्रगति में सहायक भी बन सकता है। पक्ष और विपक्ष भारतीय लोकतंत्र की दो आंखें हैं, एक भी विकारग्रस्त हुई तो विवेक और तर्क का, श्रम और निष्ठा का, ज्ञान और पराक्रम का दुर्ग ढहता है। अब यह पक्ष और विपक्ष पर निर्भर करता है कि उसे कैसे लोकतंत्र की दरकार है?  




सियाराम पांडेय 'शांत'

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