इस धर्मप्रांत में कार्यरत हैं पटना के कुर्जी पल्ली के पूर्व पल्ली पुरोहित फादर रेमंड केरोबिन।वाराणसी धर्मप्रांत इस वर्ष अपने 50वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। स्वर्ण जयंती समारोह का शुभारंभ नवंबर में हुआ था, जो अगले वर्ष अक्टूबर 2020तक चलेगा। इस दौरान विविध आयोजन किए जाएंगे। इस वर्ष का थीम 'शांति व एकता' है। इस धर्मप्रांत में 18,259 ईसाई हैं. 5 जून 1970 को धर्मप्रांत के स्वरूप में आया। इस समय वाराणसी धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष यूजीन जोसेफ हैं।30.05.2015 से पदस्थापित हैं।
वाराणसी, विश्व के कैथोलिक ईसाई समुदाय की आस्था का प्रमुख केन्द्र है सेंट मेरीज महागिरजा।दुनिया भर के भव्य चर्चो में अपनी अलग पहचान केवल इसलिए रखता है कि यह महज एक प्रार्थना स्थल ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक स्थल और गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल भी है। इसकी दीवारों पर गीता के श्लोक सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य:.. लिखा है, बाहरी दीवारों पर हिन्दी में दोहे। जो गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है। ऐसे ही अन्य धर्मग्रंथों के दोहे और श्लोक इसकी दीवार की शोभा बढ़ा रहे हैं। मैत्री भवन के निदेशक फादर चन्द्रकांत बताते हैं कि 8 अगस्त 1970 को फादर पैट्रिक डिसूजा बिशप बने थे, आज वो भले ही दुनिया में नही है मगर उन्होने महागिरजा समेत ना जाने कितने गिरजा, संस्था, स्कूल आदि का निर्माण कराया जिसके चलते उन्हे रहती दुनिया तक याद किया जायेगा। उनके प्रयास से गंगा जमुनी तहज़ीब कि मिसाल महागिरजा बना। वाराणसी धर्म प्रांत के बिशप यूज़ीन जोसेफ कहते हैं कि 1989 में जब इस महागिरजा का निर्माण शुरू उस समय देश में बदअमनी फैली थी। खासकर पूर्वाचल जल रहा था। इसलिए बिशप पैट्रिक डिसूजा ने आपसी सौहार्द और भाईचारगी के लिए 11 फरवरी 1993 में चर्च तैयार होने पर इसे आपसी सौहार्द के लिए समर्पित कर दिया। इसी उद्देश्य से इसमें गीता समेत विभिन्न धर्मग्रंथों के श्लोक और दोहे इसकी दीवारों पर उकेरे गये हैं। वे कहते हैं कि ईसा मसीह किसी एक धर्म के नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए शांति का संदेश लेकर आये थे। हिन्दू धर्म के कर्मकांडी पंडित रविन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि वास्तव में चर्च का यह प्रयास सराहनीय है। इससे मजहबी भेदभाव मिटेगा।
क्या है महागिरजा का इतिहास
यूं तो इस महागिरजा की संगे-बुनियाद एक अस्तबल में 1848 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हुईथी। मगर इस महागिरजा का लिखित इतिहास 1929 से मिलता है। जब यहां विजयानगरम् की महारानी भागीरथी देवी ने मन्नत पूरी होने पर मां मरियम की प्रतिमा स्थापित करायी थी, आज भी उस स्थान पर दूर-दराज से आये लोग मुराद मांगते हैं, इसे मरियालय का नाम दिया गया है। महागिरजा जिसे वाराणसी धर्म प्रांत के बिशप संचालित करते हैं इसको भव्य रूप 1970 में पहले बिशप बने पैट्रिक डिसूजा ने दिया था। मैत्री भवन के निदेशक फादर चन्द्रकांत बताते हैं कि 8 अगस्त 1970 को बिशप बने पैट्रिक डिसूजा के प्रयास से ही यह चर्च महागिरजा बना। पैट्रिक डिसूजा ने ही इसे भव्यता प्रदान करने के लिए 1989 में नये विशाल भवन का निर्माण शुरू कराया और परिणाम स्वरुप कुशल वास्तुविद् की डिजाइन पर यह कैथड्रल 11 फरवरी 1993 में तैयार हुआ।
पर्यटकों को करता है आकर्षित
इसकी खूबसूरती कैंटोमेंट इलाके से गुजरने वाले तमाम देशी-विदेशी सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर खींचती है। पल्ली पुरोहित फादर विजय शांतिराज बताते हैं कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अनूठी वास्तुकला व खूबसूरत साज-सज्जा के लिए महागिरजा मशहूर है। इसके भीतरी भाग में बाइबिल प्रदर्शनी की विद्या रची है। पवित्र बाइबिल में वर्णित श्रृष्टि की शुरुआत से लेकर मानव-मुक्ति योजना में प्रभु ईसा के जन्म, मुक्ति, मृत्यु तथा पुनरुत्थान तक की समस्त घटनाएं इस बाइबिल प्रदर्शनी में दिखाई गई है। फादर थोमस सी की माने तो यह महज़ गिरजाघर ही नहीं बल्कि इस मुल्क की गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल है। क्रिसमस में यहां लगने वाले मेले में क्रिश्चियन ही नहीं पूर्वाचल भर से सभी मज़हब के लोग ठीक उसी तरह जुटते हैं जैसे ईद और दशहरे के मेले में मजमा जुटता है। आज भले ही बिशप पैट्रिक डिसूजा इस दुनिया में नही है मगर उनके काम ही है जिसके चलते आज उन्हे पूरा देश नमन कर रहा है। रहती दुनिया तक बिशप पैट्रिक डिसूजा अपने काम के बूते याद किये जायेंगे। इस धर्मप्रांत में कार्यरत हैं पटना के कुर्जी पल्ली के पूर्व पल्ली पुरोहित फादर रेमंड केरोबिन।वाराणसी धर्मप्रांत इस वर्ष अपने 50वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। स्वर्ण जयंती समारोह का शुभारंभ नवंबर में हुआ था, जो अगले वर्ष अक्टूबर 2020तक चलेगा। इस दौरान विविध आयोजन किए जाएंगे। इस वर्ष का थीम 'शांति व एकता' है। इस धर्मप्रांत में 18,259 ईसाई हैं. 5 जून 1970 को धर्मप्रांत के स्वरूप में आया। इस समय वाराणसी धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष यूजीन जोसेफ हैं।30.05.2015 से पदस्थापित हैं।
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